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पीतल नगरी के वजूद पर संकट

परेव के पीतल व्यापारी झेल रहे सरकारी उदासीनता का दंश बिहटा : परेव की पहचान राज्य में ही नहीं, बल्कि देश में पीतल बरतनों के बेहतर निर्माण के कारण रही है. लेकिन, आज यह उद्योग सरकार की उदासीनता के कारण संकट में है. परेव की पहचान परंपरागत तरीके से पीतल, कांसा, जस्ता, एलमूनियम, तांबा आदि […]

परेव के पीतल व्यापारी झेल रहे सरकारी उदासीनता का दंश
बिहटा : परेव की पहचान राज्य में ही नहीं, बल्कि देश में पीतल बरतनों के बेहतर निर्माण के कारण रही है. लेकिन, आज यह उद्योग सरकार की उदासीनता के कारण संकट में है. परेव की पहचान परंपरागत तरीके से पीतल, कांसा, जस्ता, एलमूनियम, तांबा आदि के बरतनों के निर्माण के रूप में रही है.
इस व्यवसाय से गांव के करीब दस हजार परिवारों व मजदूरों का पेट भरता है. लेकिन, सरकार ने कभी इस उद्योग पर नजर नहीं डाली. जिसके कारण यह उद्योग समुचित संसाधन के अभाव में दम तोड़ रहा है. आठ वर्ष पूर्व भारत सरकार के ऊद्योग मंत्रालय ने पहल शुरू की थी. पीतल नगरी की पहचान के लिए तब दो करोड़ की लागत से यहां सामान्य सुविधा केंद्र का निर्माण कराया था. लेकिन सफल नहीं रही.
क्या है कारण
सरकारी उपेक्षा के कारण यहां के व्यवसायी प्रतिस्पर्धा में अपनी व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं ला सके. उधर इसी कमी का फायदा उठा कर नेपाल में वहां की सरकार ने फैंसी बरतनों के बड़े कारखाने खोल दिये. चीन की ओर से सस्ते दर पर मिल रहे कच्चे माल के सहयोग से बरतन बना कर यहां से नेपाल भेजा जाने लगा.
क्या कहते हैं व्यवसायी
सरकार पहल करें, तो ये उद्योग राज्य में फिर से क्रांति ला सकती है. सबसे बड़ी समस्या अनवरत बिजली नहीं मिलनी है. साथ ही नेपाल की तरह अनुदानित दर पर कच्चा माल मिले, तभी जाकर वे लोग इस प्रतिस्पर्धा का मुकाबला कर सकेंगे.
जीवन कुमार, व्यवसायी

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