देव से दानव बनने की योग्यता क्या है?लाइफ रिपोर्टर पटनासत्यनारायण भगवान की कथा चल रही थी. पंडित जी मंत्र पढ़ रहे थे. लोग हाथ जोड़ कर कथा भी सुन रहे थे. कथा खत्म हुई. लोगों ने रक्षा सूत्र धागा बंधवाने के लिए अपने-अपने हाथ आगे बढ़ाये. पंडित जी ने सभी के हाथों में रक्षा सूत्र बांधे, लेकिन जैसे ही पीछे से एक निर्धन अपना हाथ बढ़ाता है, लोग उसे मारने लगते हैं. लात-घूसा मारेन के बाद सभी लोग चले जाते हैं. वह इंसान रोता है, चिल्लाता है. तभी उसकी नजर उस पित्तल के लोटे पर पड़ती है, जिसमें रखा जल वह पीता है और फिर रोते हुए चला जाता है. यह दृश्य देखने को मिला कालिदास रंगालय में. यहां रविवार को 25वें पटना थियेटर फेस्टिवल अनिल मुखर्जी शताब्दी नाट्योत्सव के छठे दिन संस्था मुखातिब (भोजपुर) द्वारा ‘बाथे टू बर्लिन’ नाटक का मंचन किया गया. इस नाटक के कई दृश्य दर्शकों को काफी पसंद आये. नाटक मेें एक से बढ़ कर एक डायलॉग्स थे, जिसे सुन लोगों ने भरपूर तालियां बजा कर कलाकारों का हौसला बढ़ाया. इस नाटक का निर्देशन सुमन सौरभ द्वारा किया गया है.नाटक के बारे मेंनरसंहार हमारे सामाजिक चक्र का अहम हिस्सा रहा है. इसके मूल में कभी वर्ग विभेद रहा है, तो कभी सत्ता के लिए संघर्ष. महाभारत में कृष्ण से लेकर जर्मनी के हिटलर और बिहार के लक्ष्मणपुर बाथे तक इसका उदाहरण हैं. हर नरसंहार यह सोचने पर मजबूर करता है कि आखिर देव से दावन बनने की योग्यता क्या है? क्या सत्ता, अहम और वर्ग पायदान ही सर्वोपरि है? मानवता, समरसता, न्याय सिर्फ पढ़ने, सुनने-सुनाने तक सीमित है? इन्हीं विभिन्न कोनों से नरसंहार उसके कारण और परिणाम की पड़ताल के लिए नाटक दिखाया गया.मंच परअमरदीप कुमार, राजू कुमार, इरफान अहमद, धीरज कुमार, वैभव विशाल, रणविजय सिंह, सुमन सौरभ
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देव से दानव बनने की योग्यता क्या है?
देव से दानव बनने की योग्यता क्या है?लाइफ रिपोर्टर पटनासत्यनारायण भगवान की कथा चल रही थी. पंडित जी मंत्र पढ़ रहे थे. लोग हाथ जोड़ कर कथा भी सुन रहे थे. कथा खत्म हुई. लोगों ने रक्षा सूत्र धागा बंधवाने के लिए अपने-अपने हाथ आगे बढ़ाये. पंडित जी ने सभी के हाथों में रक्षा सूत्र […]
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