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निर्देश: सरकारी दफ्तरों में नलों का पानी शुद्ध, इसी का हो इस्तेमाल बोतलबंद पानी पर लगेगी रोक

पटना: सरकारी कार्यालयाें में तय मानक के अनुसार पानी सप्लाइ होने के बावजूद बोतलबंद पानी के इस्तेमाल को सरकार ने गंभीरता से लिया है. सरकार ने बोतलबंद पानी के इस्तेमाल पर रोक लगाने की सख्त हिदायत दी है. सरकार का मानना है कि इसके इस्तेमाल से न केवल पर्यावरण पर इसका असर होता है, बल्कि […]

पटना: सरकारी कार्यालयाें में तय मानक के अनुसार पानी सप्लाइ होने के बावजूद बोतलबंद पानी के इस्तेमाल को सरकार ने गंभीरता से लिया है. सरकार ने बोतलबंद पानी के इस्तेमाल पर रोक लगाने की सख्त हिदायत दी है. सरकार का मानना है कि इसके इस्तेमाल से न केवल पर्यावरण पर इसका असर होता है, बल्कि लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है. इसके अलावा बोतलबंद पानी के इस्तेमाल से आर्थिक क्षति भी होती है.

सरकार ने सरकारी बैठकों में बोतलबंद पानी के इस्तेमाल पर एक ओर जहां पाबंदी लगाने की बात कही है, वहीं पेट बोतल की जगह फ्लास्क, शीशा या स्टील के ग्लास का इस्तेमाल उपयोग करने के लिए कहा है. सरकारी कार्यालयों में लगे पाइप के नल में आपूर्ति होनेवाला पानी तय मानक के अनुसार ठीक है. पानी का तय मानक के अनुसार पीएच 6़ 5 से 8़ 5 होना चाहिए. सचिवालय के सभी कार्यालय में आपूर्ति होनेवाले पानी का पीएच मानक निर्धारित मानक के अनुसार है.

राज्यस्तरीय पानी जांच प्रयोगशाला से जारी रिपोर्ट में खुलासा हुआ है. इसके बावजूद सरकारी बैठकों में बोतलबंद पानी का इस्तेमाल किया जा रहा है.

पेट बोतल के इस्तेमाल से होनेवाले हानि को लेकर सरकार ने आगाह किया है. एक अनुमान के अनुसार सौ व्यक्तियों की बैठक में अगर पेट बोतल का इस्तेमाल होता है, तो केवल बोतल से 18 किलोग्राम कार्बन डायक्साइड निकलता है. तीन किलो नन बायेडिग्रेडेबल कचरा होता है. उतने बोतल के निर्माण पर 500 लीटर अतिरिक्त पानी का अनावश्यक खर्च होता है.

एक पेट बोतल का वजन लगभग 30 ग्राम होता है. पेट बोतल मनुष्य के स्वास्थ्य लिए जितना हानिकारक है. उतना ही जानवरों के लिए भी हानिकारक है. इतना ही नहीं पेट बोतल के ढक्कन का रिसाइकिल नहीं होने से जानवरों के उसे खाने पर उसकी जान को खतरा रहता है. जानकारों के अनुसार प्लास्टिक खाने के कारण एक साल में दस लाख पशु,पक्षी व मछलियों की मौत होती है.
पर्यावरण व वन विभाग करेगा मदद: सरकारी बैठक में पेट बोतल के धड़ल्ले से इस्तेमाल को रोकने के लिए पर्यावरण व वन विभाग ने उपयोग पर रोक लगाने के लिए कहा है. विभाग ने कहा है कि पेट बोतल की जगह फ्लास्क व शीशा या स्टील ग्लास का उपयोग किया जाये.
अगर विभाग द्वारा फ्लास्क व शीशा या स्टील ग्लास आदि की आपूर्ति विभागीय स्तर पर करने में परेशानी हो रही है तो पर्यावरण व वन विभाग मदद करेगा. सरकारी बैठक में पेट बोतल के इस्तेमाल पर पाबंदी लगने से इसका असर अन्य लोगों पर भी पड़ेगा.
मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए बिसफेनॉल ए रसायन हानिकारक
पेट बोतल के निर्माण में बिसफेनॉल ए नामक रसायन का प्रयोग होता है. यह रसायन मनुष्य के ग्रंथियों के लिए नुकसानदेह होता है. एक पेट बोतल के निर्माण से छह किलोग्राम कार्बनडायक्साइड निकलता है. इसके अलावा उसके निर्माण में पांच लीटर पानी का अलग से प्रयोग होता है. जानकारों का कहना है कि विश्व के कुल तेल खपत का छह फीसदी सिर्फ प्लास्टिक निर्माण में होता है.

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