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चुनाव में बच गये थे तीन हजार, तो पार्टी को लौटा दिया

गांधीवादी नेता ब्रज किशोर सिंह चुनावी राजनीति से अब दूर हैं, लेकिन राजनीतिक घटनाओं पर उनकी पैनी नजर है. उम्र के 80 साल पार कर चुके ब्रज बाबू का ज्यादातर समय मोतिहारी के गांधी संग्रहालय के संरक्षण में बीतता है. शरीर के साथ नहीं देने के बाद भी वो रोज संग्राहलय आते हैं और वहां […]

गांधीवादी नेता ब्रज किशोर सिंह चुनावी राजनीति से अब दूर हैं, लेकिन राजनीतिक घटनाओं पर उनकी पैनी नजर है. उम्र के 80 साल पार कर चुके ब्रज बाबू का ज्यादातर समय मोतिहारी के गांधी संग्रहालय के संरक्षण में बीतता है.
शरीर के साथ नहीं देने के बाद भी वो रोज संग्राहलय आते हैं और वहां आनेवालों को गांधी के विचारों से अवगत कराते हैं. चुनावी बतकही के दौरान ब्रज बाबू 35 साल पहले 1980 के चुनाव की याद करते हैं. कहते हैं, तब हमारे पास एक जीप थी. हमने उसी से प्रचार किया था. मधुबन सीट से चुनाव लड़ा और जीता था.
इसके बाद वह कहते हैं- उस समय पार्टी फंड से 30 हजार रुपये चुनाव लड़ने के लिए मिले थे, लेकिन चुनाव में 27 हजार ही खर्च हुये. मैं तीन हजार रुपये वापस करने के लिए गया, तो उस समय के अध्यक्ष डूमरलाल बैठा ने मुझसे पूछा- यह क्या है? मैंने कहा कि चुनाव में इतना पैसा बच गया. इसपर उन्होंने कहा- चुनाव में मिला पैसा कोई वापस करता है क्या? उनकी इस बात पर मैंने जवाब दिया-तो मैं इसका क्या करूंगा. इसे आपको वापस लेना होगा. इसके बाद मैंने रुपये वापस कर दिये. यह पार्टी के रिकार्ड में दर्ज है.
ब्रज बाबू आज की राजनीति पर अफसोस करते हुए कहते हैं, अब तो चुनाव की कौन कहे, टिकट बेचने के ही आरोप पार्टी नेताओं पर लग रहे हैं. भ्रष्टाचार ऊपर से व्याप्त हो गया है. चुनाव में खर्च के क्या कहने? पहले नेता त्याग तपस्या की बात करते थे, लेकिन अब नेताओं की ओर से वोटरों को ही करप्ट (बिगाड़ने) करने की कोशिश होती है.
आज के नेता वोटरों से मिलते भी नहीं हैं. प्रत्याशी सिर्फ गाड़ी की खिड़की से हाथ जोड़कर निकल जाते हैं. उनके पीछे गाड़ियों का काफिला चलता है. पहले ऐसा नहीं था. चुनाव प्रचार पैदल होता था. गाड़ी बहुत कम लोगों के पास होती थी. प्रत्याशी आम लोगों से मिलते थे. उन्हें अपनी बात बताते और उनकी सुतने थे. अब ऐसे देखने-सुनने को नहीं मिलता है. बड़ा बदलाव आ गया है, तब और
अब में.
भीष्म नारायण ने किया था टिकट का विरोध
ब्रज किशोर सिंह अपने टिकट मिलने की कहानी भी सुनाते हैं. कहते हैं, मेरा नाम मधुबन विधानसभा के लिए प्रस्तावित था. केंद्रीय संसदीय दल की बैठक हो रही थी, जिसमें टिकट फाइनल होना था. उसमें हमारे समधी भीष्म नारायण सिंह थे. अध्यक्षता इंदिरा गांधी कर रही थीं. बैठक चल रही थी.
इसी दौरान भीष्म नारायण सिंह ने कहा कि ब्रज किशोर सिंह हमारे संबंधी हैं. इसलिए इनको टिकट नहीं मिलना चाहिये. इस पर बैठक में मौजूद केदार पांडेय ने कहा कि मैं ब्रज किशोर को जानता हूं. उन्होंने जिले की मंडल कांग्रेस से काम शुरू किया. इसके बाद जिला कांग्रेस व प्रदेश कांग्रेस संगठन में पदों पर रहे हैं, तब इनके टिकट पर विचार किया जा रहा है.
इसके बाद केदार पांडेय ने इंदिरा गांधी से हाथ जोड़ कर कहा कि मैडम अगर ब्रज किशोर सिंह को टिकट नहीं मिलेगा, तो कोई भी भला व्यक्ति बिहार में कांग्रेस नेताओं के यहां अपनी बेटी की शादी नहीं करेगा. यह सुन कर इंदिरा गांधी को हंसी आ गयी थी, उन्होंने मुङो टिकट दिया था. तब न मैं पटना गया था और न दिल्ली. आज तो टिकट के लिए लॉबिंग होती है. नेता अपने समर्थकों के साथ दिल्ली व पटना में डेरा डालते हैं.

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