एक अनुमान के मुताबिक पांच साल तक बच्चों के संपूर्ण टीकाकरण पर प्राइवेट क्लिनिकों में 30 हजार रुपये तक की राशि खर्च करनी पड़ती है. वहीं, ये टीके सरकारी अस्पतालों में मुफ्त में ही दिये जाते हैं. इसके साथ ही इंडियन एकेडमी ऑफ पेडिएट्रिक ने पेनलेस टीका देना पर पाबंदी लगा रखी है. क्योंकि, ऐसे टीकों से कोई विशेष फायदा नहीं मिलता है. इन सब बातों के बावजूद शहर में टीके के नाम पर अभिभावकों को प्राइवेट क्लिनिकों द्वारा लूटने का काम जारी है.
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प्राइवेट क्लिनिकों में टीकों के नाम पर लूट, बच्चों का टीका अभिभावकों को दे रहा दर्द
पटना: बच्चों को टीका लगवाने के नाम पर प्राइवेट क्लिनिकों में अभिभावकों को दर्द दिया जा रहा है. उनसे टीके की अनाप-शनाप कीमत वसूली जा रही है. इसका कोई बिल भी नहीं दिया जाता है. उनसे पेनलेस टीके के नाम पर भी अतिरिक्त वसूली होती है. बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ा मामला होने के कारण […]
पटना: बच्चों को टीका लगवाने के नाम पर प्राइवेट क्लिनिकों में अभिभावकों को दर्द दिया जा रहा है. उनसे टीके की अनाप-शनाप कीमत वसूली जा रही है. इसका कोई बिल भी नहीं दिया जाता है. उनसे पेनलेस टीके के नाम पर भी अतिरिक्त वसूली होती है. बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़ा मामला होने के कारण अभिभावक भी मुंहमांगी रकम देने को विवश रहते हैं.
24 बार पड़ते हैं इंजेक्क्शन
बच्चे के जन्म होने के बाद से जब तक वह पांच साल का नहीं हो जाये, उसे टीका व बूस्टर के नाम पर लगभग 24 बार इंजेक्क्शन दिये जाते हैं. उन टीकों की कीमत तय नहीं है. लेकिन, सूत्रों की मानें तो इन टीकों के लिए प्राइवेट क्लिनिकों में 30 हजार रुपये तक अभिभावकों से ले लिये जाते हैं. ये टीके डॉक्टरों के मुताबिक पेनलेस भी होते हैं और इनको लगाने से बच्चाें को दर्द व बुखार नहीं होता है.
नहीं मिलता है बिल
प्राइवेट क्लिनिकों में लगनेवाले टीकों का कोई बिल नहीं दिया जाता है. इससे अभिभावक यह भी समझ पाते हैं कि कौन-सा टीका कितने का है. बहुत से अभिभावक जब बिल मांगते हैं, तो उसे टाल दिया जाता है और अगली बार उन्हें परेशान किया जाता है. इस डर से अभिभावक भी पैसे की रसीद नहीं मांगते हैं.
पेनलेस टीका पर बैन
इंडियन एकेडमी ऑफ पेडिएट्रिक (आइएपी) के नये शोध के बाद यह माना है कि पेनलेस टीका से पेनफुल टीका बेहतर होता है और इसमें प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है. इस कारण से आइएपी ने देश भर के सभी शिशु रोग विशेषज्ञों से कहा है कि वह पेनलेस टीका देना बंद करें. ऐसे टीकों से कोई विशेष फायदा नहीं मिलता है.
ये बोले
टीका दिलाने के बाद अगर कोई अभिभावक रसीद मांगता है, तो उसे जरूर देना चाहिए. रही बात पेनलेस टीके की, तो शोध में यह बात सामने आयी है कि पेनलेस से अच्छा पेन देनेवाला टीका है. इस कारण अब अभिभावकों को भी पेनलेस के चक्कर में पड़ने की कोई जरूरत नहीं है.
– डॉ एनके अग्रवाल, सचिव, आइएमपी बिहार
टीका का रेट कंपनी के ब्रांड पर लिया जाता है. इस कारण इसका रेट अलग-अलग होता है, लेकिन ऐसा नहीं है कि टीका का रेट डॉक्टर बहुत अधिक लेते हैं.
– डॉ मनोज कुमार, शिशु रोग विशेषज्ञ
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