1952 में हुए प्रथम आम चुनाव से 1977 तक सोनवर्षा राज विधानसभा से चार बार विधायक रहे जागेश्वर हाजरा आज के चुनावी सिस्टम को हास्यास्पद बताते हैं. कहते हैं कि अब नेता आमलोगों का प्रेम, सम्मान और सहानुभूति नहीं चाहते हैं. वे अपनी हैसियत दिखा कर वोट जुटाना चाहते हैं. जिनके पास जितनी गाड़ियां हैं, जिनसे मिलने में जितना समय लगे, वे उतने महान. जिस सफेदपोश के साथ जितनी बंदूकें लहरायी जाये, वे उतने प्रभावशाली नेता माने जाते हैं. पहले की तुलना में अब क्षेत्र छोटा हो गया है. फिर भी जनप्रतिनिधि एसी से बाहर नहीं निकलते हैं.
पहले आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर विधान सभा पहुंचने वाले जागेश्वर हाजरा ने अपना चुनाव प्रचार खुद साइकिल पर घूम-घूम कर किया था. 20 वर्षो तक जनप्रतिनिधि रहे जागेश्वर हाजरा को आज तक न तो अपनी गाड़ी नसीब नहीं हो पायी है और न ही आत्मरक्षा के लिए किसी हथियार का लाइसेंस ही ले पाये. पूर्व विधायक का पैतृक आवास आज भी फूस और बांस का ही बना हुआ है. कहते हैं कि जनता के लिए काम करने वालों को डर किससे होगा.
वह हमेशा जनता के बीच ही रहते हैं. उन्होंने अपने सभी चुनावों में प्रचार साइकिल से ही घूम-घूम कर किया था. थक जाने पर पांव-पैदल ही लोगों के पास जाते थे. घर नहीं बनाने की बात पर उन्होंने कहा कि जब वह एमएलए थे तब 70 दिनों का सत्र चलता था और दस रुपये रोज के हिसाब से मिलते थे. इसके अलाव दो सौ रुपये प्रतिमाह का भत्ता मिलता था. आज उन्हें 32 हजार रुपये पेंशन मिलती है, जिसमें से घर खर्च के बाद पैसा बचता ही नहीं है. सामान्य जीवन जीने वाले जागेश्वर हाजरा विधायक रहने के दौरान भी अखबार बिछाकर बरामदे में ही सोते थे. बताते हैं कि पटना के एमएलए फ्लैट में भी उनकी यही आदत थी. क्षेत्र से जाने वाले लोग अंदर कमरों में सोते थे और एमएलए साहब बाहर बरामदे में. हाजरा की पत्नी ही सबके लिए खाना बनाती थी. हाजरा बताते हैं कि कई बार इस बात की शिकायत सीएम से की जाती थी. आदत में सुधार नहीं लाने के कारण ही संभवत: 1962 में टिकट नहीं दिया गया.