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सीमा क्षेत्र विकास योजना में खर्च नहीं हो रहे रुपये
पटना : राज्य के अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे सात जिलों में विकासात्मक कार्य कराने के लिए बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम (बीएडीपी) चलाया जाता है. परंतु इस योजना के अंतर्गत सीमा क्षेत्रों में विकास से जुड़े काम उस रफ्तार से नहीं हो रहे हैं, जिस अनुपात में इस मद में रुपये आते हैं. स्थिति यह है […]
पटना : राज्य के अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे सात जिलों में विकासात्मक कार्य कराने के लिए बॉर्डर एरिया डेवलपमेंट प्रोग्राम (बीएडीपी) चलाया जाता है. परंतु इस योजना के अंतर्गत सीमा क्षेत्रों में विकास से जुड़े काम उस रफ्तार से नहीं हो रहे हैं, जिस अनुपात में इस मद में रुपये आते हैं.
स्थिति यह है कि पिछले तीन-चार सालों से जितने रुपये आवंटित होते हैं, उसमें 30-40 फीसदी रुपये लौट जाते हैं. रुपये खर्च नहीं होने से इस योजना की स्थिति संतोषजनक नहीं है और न ही इससे आम लोगों को बहुत लाभ मिल पा रहा है. हाल में हुई इसकी समीक्षा बैठक में यह बात सामने आयी है कि चालू वित्तीय वर्ष में अभी तक पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी और अररिया तीन जिलों में 50 फीसदी से कम रुपये खर्च हुए हैं.
अन्य चार जिलों में 50 फीसदी से ज्यादा रुपये खर्च जरूर हुए हैं, लेकिन स्थिति संतोषजनक नहीं है. राज्य में नेपाल से सटे सात जिले पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीतामढ़ी, मधुबनी, सुपौल, अररिया और किशनगंज हैं. अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे होने के कारण इन जिलों में यह बीएडीपी योजना चलती है. यह योजना पूरी तरह से केंद्रीय प्रायोजित योजना है और हर वित्तीय वर्ष में इसके तहत पूरी तरह आवंटन केंद्र की तरफ से सीधे संबंधित जिलों को आता है.
बीएडीपी के बारे में : अंतरराष्ट्रीय सीमा से जुड़े राज्यों के संबंधित जिलों में बीएडीपी योजना चलायी जाती है. इसके तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा से 20 किमी की दूरी तक जन कल्याणकारी कार्य कराये जाते हैं. इस योजना के तहत स्कूल भवन, होस्टल, लाइब्रेरी, स्कूलों में अतिरिक्त क्लास रूम आदि विकास कार्य कराये जा सकते हैं. हैंडलूम जैसे अन्य लघु उद्योग भी स्थापित किये जा सकते हैं.
खर्च नहीं हो रहे शत-प्रतिशत रुपये
वर्तमान वित्तीय वर्ष 2015-16 में इस योजना के तहत 31 करोड़ रुपये आये हैं, जिनमें अभी तक 30 फीसदी रुपये ही खर्च हुए हैं. इसी तरह पिछले वित्तीय वर्ष 2014-15 में 60.84 करोड़ रुपये मिले थे, जिसमें 75 फीसदी ही खर्च हो पाये थे. इसी तरह 2013-14 में 31.96 करोड़ मिले, जिसमें 60 फीसदी ही खर्च हुए और 2012-13 में 66.64 करोड़ आवंटित हुए थे, जिसमें 70 फीसदी रुपये ही खर्च हुए थे.
इससे पहले 2011-12 में 55.77 करोड़ और 2010-11 में 37.15 करोड़ आवंटित किया गया था. इन दोनों वर्षो में भी पूरे रुपये खर्च नहीं हुए थे. हर साल शत-प्रतिशत रुपये खर्च नहीं होने से केंद्र इस योजना में आवंटन को कम ज्यादा करके देता है.
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