पटना: राजधानी की लाइफ लाइन कही जानेवाली सिटी बसें दम तोड़ रही हैं. अधिकांश बसों के शीशे टूटे हुए हैं, सीट फटी हुई है. अंदर और बाहर से बस के लोहे लगभग सड़ गये हैं. हेडलाइट कभी जलती है तो कभी नहीं.
ऐसी स्थिति में बस राजधानी की सड़कों पर फर्राटे से दौड़ रही है. इन बसों पर आरटीओ के अधिकारी कार्रवाई करने में आनाकानी करते हैं. ऐसे में बस में सवार यात्रियों की जिंदगी दावं पर है. यही नहीं इन बसों को चलाने वाले ड्राइवर भी अप्रशिक्षित हैं. खस्ताहाल बसों से होने वाले हादसों का अधिकृत आंकड़ा तो ट्रैफिक पुलिस के पास नहीं है, मगर यातायात अफसरों के अनुसार इससे हर माह आधा दर्जन छोटे-बड़े हादसे हो रहे हैं.
18 मार्गो पर 210 अधिकृत बसें
करीब 20-25 किमी के दायरे में फैले समूचे शहर में कुल 18 रूट इन बसों के लिए तय हैं. इन पर अधिकृत 210 बसें चलती हैं. लेकिन, कुछ बसें ऐसी भी हैं, जो सुबह-दोपहर स्कूलों के लिए और फिर सिटी बस के रूप में चलती हैं. अगर इन बसों को भी शामिल कर लिया जाये, तो इनकी संख्या 350 के करीब पहुंच जायेगी.
हवा से बात करते हैं अप्रशिक्षित चालक
सिटी बस चलाने वाले अप्रशिक्षित चालक हवा से बातें करते हैं. पिछले माह में एक सिटी बस बेली रोड में एलएन मिश्र इंस्टीट्यूट के पास तेज रफ्तार के कारण पलट गयी, जिसमें एक दर्जन लोग घायल हो गये थे. घटना के बाद पुलिस ने बस को जब्त कर लिया. पुलिस भी इस बात को दबे जुबान स्वीकार करती है कि सिटी बस के चालक लापरवाही से बस चलाते हैं.
खुद ही तय करते हैं फिटनेस
सिटी बस के मालिक को फिटनेस जांच के लिए एक निर्धारित समय में परिवहन विभाग से फिटनेस सर्टिफिकेट लेना जरूरी होता है. लेकिन ज्यादातर में इसकी अनदेखी ही की जाती है. अगर परिवहन विभाग या ट्रैफिक पुलिस इसकी ईमानदारी से जांच करें, तो कई सिटी बसें सड़क पर दौड़ने लायक ही नहीं हैं. कई सिटी बसें सड़कों पर धुआं छोड़ती चलती है, जिससे उसके पीछे चलनेवाले परेशान रहते हैं.