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प्रिंटिंग अधूरी: बीटीबीसी के जिम्मे है पुस्तकों की छपाई का काम, इस साल भी बच्चे करेंगे इंतजार
पटना: इस बार भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को किताब के लिए इंतजार करना होगा. प्रिटिंग का काम पूरा नहीं होने के कारण इस वर्ष भी किताब समय पर नहीं मिलेगी. गत वर्ष की लेट-लतीफी को देखते हुए नौ माह पहले ही बिहार टेक्सटबुक कॉरपोरेशन (बीटीबीसी) को किताब छापने का टेंडर दिया गया […]
पटना: इस बार भी सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को किताब के लिए इंतजार करना होगा. प्रिटिंग का काम पूरा नहीं होने के कारण इस वर्ष भी किताब समय पर नहीं मिलेगी. गत वर्ष की लेट-लतीफी को देखते हुए नौ माह पहले ही बिहार टेक्सटबुक कॉरपोरेशन (बीटीबीसी) को किताब छापने का टेंडर दिया गया था. योजना के मुताबिक जनवरी से फरवरी में पुस्तक की छपाई कर किताबें मार्च तक स्कूलों में भेज दी जानी थी. बावजूद छपाई का काम पूरा नहीं हो सका.
अन्य राज्यों पर निर्भरता
कागज व किताब की प्रिंटिंग के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भरता के कारण प्रतिवर्ष किताबें समय पर नहीं मिल पाती हैं. पश्चिम बंगाल से जहां कागज मंगाया जाता है, वहीं उत्तर प्रदेश में प्रिटिंग करायी जाती है. कॉरपोरेशन की सुस्त चाल भी अलग. जुलाई में टेंडर के बाद भी पांच माह तक कोई कार्य शुरू नहीं हुआ. दिसंबर से कॉरपोरेशन द्वारा इसकी प्रक्रिया शुरू होने के कारण प्रतिवर्ष समय पर किताबें नहीं मिल रही हैं.
दो करोड़ बच्चों को मिलनी है किताब
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद हर साल बीटीबीसी से किताबें पिंट्र कराता है. पहली से आठवीं कक्षा की किताबों का अलग-अलग सेट तैयार कर स्कूलों में बच्चों को भेजा जाता है. सत्र 2015 के लिए दो करोड़ छह लाख 77 हजार 827 बच्चों को किताबें मिलनी थी. किताब समय पर मिले. इसके लिए 356 करोड़ का टेंडर नौ माह पहले हुआ था. पिछले कई वर्षो से लगातार सरकारी स्कूलों में समय पर किताबें नहीं पहुंच सकीं.
अलग-अलग तैयार हो रहे सेट
बिहार शिक्षा परियोजना परिषद के डॉ उदय कुमार ने बताया कि हर वर्ष स्कूलों में नामांकित बच्चों की संख्या के अनुसार किताब छापने की सूची तैयार की जाती है. अलग-अलग कक्षा के लिए अलग-अलग किताबों का सेट तैयार किया जाता है. किताब की छपाई प्रतिवर्ष होती है. कक्षा वन से टू के लिए तीन किताबों का सेट, कक्षा तीन से पांच के लिए आठ व सिक्स से आठ के लिए नौ किताबों का सेट उपलब्ध कराया जाता है.
चार-पांच साल से स्कूलों में समय पर किताबें नहीं आ रही हैं. इस कारण बच्चों को पुरानी किताबों के सहारे पढ़ाई करनी पड़ती है. इससे बच्चों को पढ़ाई का नुकसान होता है. बच्चे स्कूल में तो पढ़ लेते हैं,लेकिन किताब नहीं होने से घर में पढ़ाई नहीं कर पाते हैं.
भोला पासवान, सचिव, शिक्षक संघ
किताब प्रिंटिंग का काम जारी है. 70 फीसदी किताबों की प्रिंटिंग हो चुकी है. कई बार ट्रांसपोर्ट की सुविधा नहीं मिलने से किताबें पहुंचने में देरी हो जाती हैं. इस वर्ष अप्रैल के अंत और मई के फस्र्ट वीक तक स्कूलों में किताब मिलेंगी.
केपी सिंह, प्रबंधक, बिहार टेक्सट बुक कॉरपोरेशन .
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