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मांझी ने मेरे कारण दिया इस्तीफा, तो मैं खुशनसीब

पटना: बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा उनके ऊपर लगाये गये आरोपों पर पलटवार किया है. बिहार विधानसभा एनेक्सी में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद जीतन राम मांझी ने मुझ पर आरोप लगाया था और कहा था कि […]

पटना: बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी द्वारा उनके ऊपर लगाये गये आरोपों पर पलटवार किया है. बिहार विधानसभा एनेक्सी में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद जीतन राम मांझी ने मुझ पर आरोप लगाया था और कहा था कि उनके कारण ही इस्तीफा दिया है.

अगर उन्होंने ऐसा किया है तो मैं अपने आपको खुशनसीब व सौभाग्यशाली मानता हूं कि उन्होंने मेरी बात मान ली. यह अच्छा हुआ. अब कोई डॉक्टर की हाथ काटने की बात नहीं करेगा. परिवार के साथ घूम रहे लोगों को नहीं कहा जायेगा कि वे दूसरे की पत्नी के साथ घूम रहे हैं. ऐसी बात अब नहीं सुनी जायेगी.

प्रशासन उनकी, फिर हत्या की बात क्यों
स्पीकर ने कहा कि जीतन राम मांझी ने कहा था कि अगर विधानसभा जाते तो वहां मारपीट होती, मेरी हत्या का प्रयास भी हो जाता, लेकिन प्रशासन उनकी थी. ऐसे में ये कैसा प्रशासन व कैसी व्यवस्था कि एक मुख्यमंत्री को कहना पड़े कि उनकी हत्या हो जाती. ऐसा बयान दे कर उन्होंने खुद स्वीकार कर लिया कि प्रशासन सही नहीं था. स्पीकर ने कहा कि हर सत्र के दौरान डॉक्टर, एंबुलेंस, फायर बिग्रेड समेत प्रशासन की व्यवस्था रहती है. ज्यादा एंबुलेंस व प्रशासन की तैनाती के आरोप मनगढ़ंत है. विधानसभा में सुरक्षा की कड़ी व्यवस्था की थी. 18 सीसीटीवी के कैमरे भी लगाये गये थे. पूर्ण रूप से पारदर्शिता के साथ काम होता. सदन की कार्यवाही की भी लाइव टेलीकास्ट की व्यवस्था की गयी थी, जो पहले से ज्यादा ट्रांसपरेंट होता.
नहीं किया गया सीएम के स्थान का परिवर्तन
उन्होंने कहा कि जीतन राम मांझी ने बैठने की व्यवस्था नहीं होने का आरोप लगाया, लेकिन सदन के नेता व मुख्यमंत्री के तौर पर उन्हें वही जगह दिया गया था, जो पहले से मुख्यमंत्री को एलॉटेड है. उनके बगल में मंत्रियों के लिए भी जगह थी. वहीं नंदकिशोर यादव के स्थान में भी कोई परिवर्तन नहीं किया गया था और वे वहीं बैठे थे. जहां तक जदयू के विधायकों का सवाल था तो जदयू को जहां जगह दी गयी, वहीं उनके बैठने की व्यवस्था की गयी थी. सब सिर्फ कयास लगा रहे थे. विधानसभा की कार्यवाही अनुमान से नहीं नियम और संविधान से चलती है. जीतन राम मांझी को सदन में आने से भी नहीं रोका जाता, क्योंकि वे सदन के नेता हैं, विधायक हैं, वे सदन में आ सकते थे.
नियम के तहत असंबद्ध किया गया सीएम को
जदयू के प्रदेश अध्यक्ष का पत्र आया था कि जीतन राम मांझी को जदयू विधायक दल का नेता चुना गया है. उस पर विधानसभा ने उन्हें मान्यता दी. दोबारा पत्र आया कि जदयू विधानमंडल ने नीतीश कुमार को अपना नेता चुना है और मांझी को पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है. ऐसे में विधानसभा सचिवालय की जिम्मेवारी थी कि जब सीएम किसी दल के नहीं हैं तो उन्हें असंबद्ध किया जाये और किया भी गया. मांझी ने गुप्त मतदान की बात कही, लेकिन विस को अधिकार है कि वह अपना नियम बनाये, उसे ही राज्यपाल एप्रूव करते हैं. फैसला ध्वनि मत या लॉबी डिवीजन में सदस्यों के विभाजन से हो सकती है. सात फरवरी के बाद उनपर चौतरफा हमला हुआ, वह पूर्ण रूप से बेबुनियाद, निराधार और बगैर कोई तथ्य के था. मुख्य सचेतक बनाने के सीएम के आदेश नहीं मानने पर स्पीकर ने कहा कि मांझी ने 10 फरवरी को राजीव रंजन को जदयू का मुख्य सचेतक बनाने का पत्र भेजा था, लेकिन जदयू विधानमंडल दल की बैठक में सात फरवरी को उन्हें नेता पद से हटा दिया गया था. इसलिए उनकी बात नहीं मानी गयी. जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष व प्रदेश अध्यक्ष का पत्र मिला था, जिसमें बताया गया था कि मांझी जी को निष्कासित कर दिया गया है. इसलिए उन्हें असंबद्ध कर दिया गया. विस के नये सत्र के सवाल पर कहा कि शपथ ग्रहण के बाद मंत्रिमंडल का जो निर्णय होगा और जो सूचना मिलेगी उसी के अनुसार काम होगा.

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