संवाददाता, पटनामकर संक्रांति एक काल खंड है. किसी खास तिथि में नहीं, बल्कि इसका निर्धारण खगोलीय चक्र व ज्योतिषीय गणना के आधार पर किया जाता है. मेटा फिजिक्स विशेषज्ञ पुनीत आलोक छवि के अनुसार सूर्य का राशि परिवर्तन ही मकर संक्रांति है. ज्योतिषीय घटना के अनुसार हर 12 साल में बृहस्पति कर्क राशि में वक्री होते हैं. ये जितने दिनों में वक्री होते हैं. उस काल खंड को तिथि वार काल निर्णय के तहत जोड़ा या घटाया जाता है. सूर्य की मकर राशि में प्रवेश एक खगोलीय चक्र है. प्रवेश काल के गणना के अनुसार तिथियां आगे पीछे होती हैं. उसी समय व काल को संक्रांति के रूप में मनाया जाता है. सूर्य की 12 संक्रांतियां संक्रमण से मुक्ति काल के रूप में संक्रांति मनायी जाती है. वहीं वर्ष में सूर्य की कुल 12 संक्रांतियां होती हैं. कर्क व मकर राशि में प्रवेश, मेष व तुला राशि, वृष, सिंह, वृश्चिक एवं कुंभ में प्रवेश तो वहीं मिथुन, कन्या, धनु एवं मीन में प्रवेश होती है. इनमें मकर का विशेष महत्व है. इसे देवताओं का दिन भी कहा जाता है. सूर्य के इस संक्रमण से दिन बड़ा होने लगता है. ऐसे में 14 जनवरी की तारीख को ही मकर संक्रांति मनायी जाये, यह निराधार है. लगभग 200 वर्ष पूर्व 12 जनवरी को मकर संक्रांति मनायी जाती थी. आनेवाले कई वर्षों में पंद्रह जनवरी की तारीख भी बदलेगी.
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खगोलीय व ज्योतिषीय गणना है मकर संक्रांति-सं
संवाददाता, पटनामकर संक्रांति एक काल खंड है. किसी खास तिथि में नहीं, बल्कि इसका निर्धारण खगोलीय चक्र व ज्योतिषीय गणना के आधार पर किया जाता है. मेटा फिजिक्स विशेषज्ञ पुनीत आलोक छवि के अनुसार सूर्य का राशि परिवर्तन ही मकर संक्रांति है. ज्योतिषीय घटना के अनुसार हर 12 साल में बृहस्पति कर्क राशि में वक्री […]
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