पटना: दलितों के इतिहास को आज तक ठीक से नहीं लिखा गया. छिटपुट लोग ही है, जिनकी कलम में स्याही रही. दलितों के इतिहास को कई फेज में देखना होगा. देश को आजाद कराने में दलित व आदिवासी समुदाय की महती भूमिका रही. लेकिन वे इतिहास के पन्नों से बाहर रहे. अपने अनुभव को साझा करते हुए कहा कि वह भी जाति व्यवस्था में प्रताड़ित हुए हैं. आज दलित चेतना में कमजोरी आयी है.
आज भी बहुत काम करने की जरूरत है. उक्त बातें बिहार विधानसभा के अध्यक्ष उदय नारायण चौधरी ने कहीं. वह जगजीवन राम संसदीय अध्ययन एवं राजनीतिक शोध संस्थान की ओर से आयोजित व्याख्यान ‘ उत्तर भारत में दलित चेतना का निर्माण ’ को संबोधित कर रहे थे. अध्यक्ष ने कहा कि हमारे इतिहासकार भूल गये हैं कि दलितों की देश की आजादी में क्या भूमिका रही. इस पर शोध होना चाहिए. यदि दलितों में चेतना आयी, तो इसके पीछे ईसाई मिशनरियों को भूला नहीं जा सकता है. आज की तारीख में हमलोग जितनी दूरी तक सोच रहे हैं. आने वाला जेनरेशन नहीं सोच सकता.
दलित चेतना का निर्माण राजनीति से नहीं होता
जीबी पंत समाज अध्ययन संस्थान, इलाहाबाद, दलित संसाधन केंद्र के निदेशक डॉ (प्रो.) बद्री नारायण ने कहा कि एक समय में जगजीवन राम दलितों के नायक थे. दलित चेतना का निर्माण राजनीति से नहीं होता. चेतना लंबी प्रक्रिया है. जनतंत्र में नंबर की बड़ी भूमिका है. नंबर अकेला काम नहीं करता है. समुदायों में चाहने की शक्ति होनी चाहिए. आज भी बहुत सारी जातियां ऐसी हैं, जो जनतंत्र में खट-खट भी नहीं कर पायी. जनतंत्र में अस्मिता जरूरी है. बहुत सारी जातियों के लिए अस्मिता जरूरी है. अगर इस बात को नहीं समङोंगे, तो यह अन्याय होगा.
उत्तर भारत में धीरे से आयी दलित चेतना
जेवियर इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल रिसर्च के निदेशक जोश कालपुरा ने कहा कि दलित चेतना सर्वप्रथम दक्षिण भारत से शुरू हुआ, जबकि उत्तर भारत में यह धीरे से आया. ब्रिटिश प्रशासन के निकट आने से चेतना पूरा हुआ. बिहार में चेतना एक्टिवाइजेशन करने का मौका नहीं दिया गया. इसे शुरू से ही उन्मूलन करने की कोशिश की गयी. आज जरूरत है दलित चेतना को बढ़ाने की. वे भी इनसान हैं. एक समय आयेगा, जब वे अपने अधिकार के लिए आगे रहेंगे. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के डॉ पुष्पेंद्र ने कहा कि दलित चेतना राजनीति से काफी प्रभावित है. संस्थान के निदेशक श्रीकांत ने कहा कि दलित आंदोलन का केंद्र दक्षिण रहा है. 70-80 के दशक में दलित आंदोलन की बात होने लगी. आज उन्हें बहुत अधिकार मिला है. मौके पर कॉलेज की छात्रएं भी उपस्थित थीं.