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पटना : निगरानीवाद : 3700 से अधिक मामले पेंडिंग
पटना : नगर निगम में अवैध अपार्टमेंट व भवन निर्माण के खिलाफ दर्ज किये गये निगरानीवाद केस की सुनवाई पर ब्रेक लग गयी है. अगस्त माह से अब तक सिर्फ एक दिन नगर आयुक्त का कोर्ट लगा है, जिसमें सुनवाई की गयी. इसके बाद नियमित सुनवाई नहीं की जा रही है. इस कारण दिन-प्रतिदिन पेंडिंग […]
पटना : नगर निगम में अवैध अपार्टमेंट व भवन निर्माण के खिलाफ दर्ज किये गये निगरानीवाद केस की सुनवाई पर ब्रेक लग गयी है. अगस्त माह से अब तक सिर्फ एक दिन नगर आयुक्त का कोर्ट लगा है, जिसमें सुनवाई की गयी. इसके बाद नियमित सुनवाई नहीं की जा रही है. इस कारण दिन-प्रतिदिन पेंडिंग केसों की संख्या बढ़ रही है.
स्थिति यह है कि 3700 से अधिक निगरानीवाद केस पेंडिंग में है. इन पेंडिंग केसों के ससमय निबटारे को लेकर नगर आयुक्त ने विभाग से आग्रह किया है कि कोर्ट
लगाने की जिम्मेदारी कार्यपालक पदाधिकारियों दी जाये. लेकिन, विभाग से नगर आयुक्त को कोई मार्गदर्शन नहीं मिला है.
1298 में से 582 पर ही हुआ केस : जनवरी-फरवरी माह में तत्कालीन नगर आयुक्त के निर्देश पर 1298 व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को चिह्नित किया गया, जिसमें पार्किंग की व्यवस्था नहीं है. इसमें 582 प्रतिष्ठानों को नोटिस भेज कर निगरानीवाद केस दर्ज कर लगातार सुनवाई की गयी. इनमें से आठ प्रतिष्ठानों पर अंतरिम आदेश पारित भी किया गया. वहीं, 574 केस सुनवाई नहीं होने से लटकी हुई है. साथ ही 716 प्रतिष्ठानों पर अब तक आधी-अधूरी नोटिस भेजी गयी है, जिस पर निगरानीवाद केस दर्ज करना है.
तीन हजार भवनों पर है केस
बिल्डिंग बायलॉज के उल्लंघन के आरोप में साल-दर-साल निगरानीवाद केस दर्ज की गयी है. स्थिति यह कि तीन हजार से अधिक अपार्टमेंटों व भवनों पर दर्ज किये गये केस पेंडिंग में है. निगम अधिकारी बताते है कि सप्ताह में एक दिन नगर आयुक्त की कोर्ट लगती है, जिसमें सुनवाई की जाती है. लेकिन, हाल के दिनों में नगर आयुक्त की व्यस्तता बढ़ गयी है. नगर आवास विकास विभाग से आग्रह किया गया है कि कोर्ट लगाने का अधिकार कार्यपालक पदाधिकारियों को दी जाये. ताकि, अंचल स्तर पर निगरानीवाद केसों का निष्पादन किया जा सके.
वर्ष 2012-14 के बीच सबसे अधिक केसों का निष्पादन
अवैध बिल्डिंग निर्माण के खिलाफ वर्ष 2004-05 से ही निगरानीवाद केस दर्ज की जा रही है. लेकिन, नगर आयुक्त के कोर्ट में केसों की सुनवाई नियमित नहीं होती है. वर्ष 2006-07 में तत्कालीन पीआरडीए चेयरमैन ने 600 से अधिक केस दर्ज किया था और 300 से अधिक केसों पर फैसला भी दिया. इसके बाद वर्ष 2012-14 के बीच 350 के करीब निगरानीवाद केसों पर नगर आयुक्त ने आदेश दिये. वर्तमान में स्थिति यह है कि न ही निर्माणाधीन भवनों की जांच की जा रही है और न ही दर्ज केसों की सुनवाई हो रही है.
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