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भागलपुर की मंजूषा कला को मिलेगा जीआइ टैग

रविशंकर उपाध्याय बिहार सरकार के प्रस्ताव पर दिल्ली स्थित जीआइआर ने जतायी सहमति पटना : भागलपुर की मंजूषा कला को जल्द ही जीआइ टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिलेगा. जियोग्राफिकल इंडिकेशंस रजिस्ट्री यानी जीआइआर की दिल्ली कार्यालय की ज्यूरी ने बिहार सरकार के आवेदन पर मुहर लगाकर इसे चेन्नई स्थित मुख्यालय भेज दिया है, जहां […]

रविशंकर उपाध्याय
बिहार सरकार के प्रस्ताव पर दिल्ली स्थित जीआइआर ने जतायी सहमति
पटना : भागलपुर की मंजूषा कला को जल्द ही जीआइ टैग यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन टैग मिलेगा. जियोग्राफिकल इंडिकेशंस रजिस्ट्री यानी जीआइआर की दिल्ली कार्यालय की ज्यूरी ने बिहार सरकार के आवेदन पर मुहर लगाकर इसे चेन्नई स्थित मुख्यालय भेज दिया है, जहां से जल्द ही जीआइ टैग निबंधन मिलेगा.
उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान ने मंजूषा आर्ट का डॉक्यूमेंटेशन कर छह महीने पहले दिल्ली कार्यालय को आवेदन दिया था. कला के विभिन्न पैमानों पर अध्ययन और कलाकारों के कई चरणों के इंटरव्यू के बाद इस कला को जीआइ टैग प्राप्त करने में सफलता मिली है.
अब तक मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, सुजनी-खतवा कला के साथ कशीदाकारी और सिक्की जीआइ टैग से युक्त आर्ट हैं. इसके अलावा सिलाव का खाजा, शाही लीची, कतरनी धान, जर्दालु आम और मगही पान ऐसे खाद्य उत्पाद हैं जिन्हें पिछले साल जीआइ टैग मिला था.
उत्पाद की पहचान बताने वाली ग्लोबल टैगिंग है जीआइ
जीआइ यानी जियोग्राफिकल इंडिकेशन किसी उत्पाद की पहचान बताने वाली ग्लोबल टैगिंग होती है. जो इसके अधिकृत मालिक या प्रयोगकर्ता को जीआइ टैग लगाने का कानूनी अधिकार प्रदान करता है. टैग के बगैर गैर अधिकृत व्यक्ति इस उत्पाद का प्रयोग नहीं कर सकता. जीआइ टैग को विश्व व्यापार संगठन यानी डब्लूटीओ से भी संरक्षण मिलता है. हर उत्पाद की विशिष्ट पहचान में उसका उद्भव, उसकी गुणवत्ता, प्रतिष्ठा तथा अन्य विशेषताएं शामिल होती हैं.
क्या है मंजूषा कला? : वरिष्ठ कला समीक्षक सुमन सिंह कहते हैं कि मंजूषा यानी पिटारे पर बनायी जाने वाली कला ही मंजूषा कला कही जाती है. इसमें बिहुला-विषहरी की लोककथा के प्रसंग दर्शाये जाते हैं. इस चित्रशैली में सिर्फ हरा, पीला आैर लाल रंग का प्रयोग होता है. आमतौर पर आकृति के रेखांकन में सिर्फ हरे रंग का प्रयोग किया जाता है.
वहीं पीला, हरा आैर लाल रंग से रेखाओं की बीच की जगह को भरा जाता है. मंजूषा चित्रकला को स्थानीय अंचल से बाहर की दुनिया को परिचित कराने का श्रेय 1941 में भागलपुर में पदस्थापित रहे आइसीएस अधिकारी व कला मर्मज्ञ डब्ल्यूसी आर्चर को जाता है. जिन्होंने स्थानीय मालाकार व कुंभकारों द्वारा बरती जाने वाली इस कला की कुछ कृतियों को लंदन स्थित इंडिया हाउस में प्रदर्शित किया. तब जाकर दुनिया सदियों पुरानी इस लोक परंपरा से जुड़ी मंजूषा चित्रकला से परिचित हो पायी.
हमने मंजूषा के साथ ही टिकुली आर्ट को जीआइ टैग दिलाने के लिए डॉक्यूमेंटेशन किया था. मंजूषा पर हमारे प्रस्ताव को जीआइ रजिस्ट्री के दिल्ली कार्यालय की ज्यूरी ने सहमति दे दी है. जल्द ही मंजूषा आर्ट के लिए जीआइ टैग मिल जायेगा.
अशोक कुमार सिन्हा, निदेशक, उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान

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