।। जयप्रकाश नारायण यादव ।।
लोकसभा में राजद के उपनेता
बजट के पीछे की राजनीति-4 : बेरोजगारों को दिखाया दिवास्वप्न
नरेंद्र मोदी सरकार ने आम बजट पेश करके देश के सामने विकास का रोडमैप रखा है. इस बजट पर विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता और विशेषज्ञ क्या सोचते हैं. ‘बजट के पीछे की राजनीति’ पर ‘प्रभात खबर’ की सीरीज में आज पढ़ें चौथी कड़ी..
देश के सामने चुनाव में भारतीय जनता पार्टी और उसके अगुवा नरेंद्र मोदी जी ने कहा था कि देश को हम गरीबी से निजात दिलायेंगे और महंगाई से मुक्त करेंगे. आज डेढ़ महीना भी इस सरकार को नहीं हुआ और महंगाई देश को खाते जा रही है. सरकार लापरहवाह है. जब से सत्ता में आयी है, महंगाई रोकने में और दाम घटाने में किसी तरह की कोई ठोस पहल करती हुई नहीं दिख रही है.
देश के सामने, गरीब और नौजवानों के सामने उन्होंने कहा कि बुरे दिन लद गये हैं और अब अच्छे दिन आयेंगे, लेकिन एक तरफ महंगाई और साग-सब्जी के भी लाले पड़ गये हैं. स्थिति बहुत ही विस्फोटक है. डीजल, प्याज से लेकर रेल भाड़ा तक जिस तरह की बढ़ोत्तरी की गयी है, उससे साफ जाहिर होता है कि भाजपा सरकार आम जनता के हितों के प्रति कितना असंवेदनशील है.
कड़ा फैसला लेने की बजाय उसने मुंगेरी लाल का हसीन सपना दिखाया है. जमाखोरों पर कार्रवाई करनी चाहिए थी. सटोरियों पर कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन यह सरकार उस दिशा में कुछ नहीं कर रही है. खाद्य सुरक्षा से लेकर गरीबों को लाल कार्ड तक नहीं मिल पा रहा है. सरकार सिर्फ डाटा दे रही है. बेरोजगार नौजवानों को उन्होंने दिवास्वप्न दिखाने का काम किया है.
इस बजट में किसी तरह की सच्चाई नहीं दिख रही है, क्योंकि कोई भी प्रोग्राम टाइम बाउंड नहीं है. जिस दिन से मोदी सरकार आयी है, कीमतें आसमान छूती जा रही हैं. सभी चीज महंगी होती जा रही हैं. आम जनता के हित में कुछ सोचने के बनिस्बत सरकार गरीब जनता के साथ मजाक कर रही है. अभी चुनाव हुए ज्यादा दिन नहीं हुए हैं. सभी को भाजपा का वादा याद है, जिसमें आम लोगों की भलाई और महंगाई को जड़ से मिटाने का वादा किया था, लेकिन उसे कम करने की बजाय सरकार ने बजट में ऐसा फैसला लिया कि आम जनता को और अधिक तकलीफों का सामना करना पड़ेगा. वित्त मंत्री ने महंगाई को काबू करने के लिए कोई ठोस पहल की घोषणा नहीं की है, वहीं रक्षा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में भी विदेशी पूंजी निवेश का द्वारा खोल कर देश की सुरक्षा से समझौता करने का काम किया है.
बजट में नौजवानों के लिए रोजगार सृजन का कोई ठोस आधार नहीं दिया गया है. कहा जा सकता है कि बजट में लोगों को सब्जबाग दिखाने का प्रयास किया गया है. कुल मिला कर यह बजट बहुत ही निराशाजनक है. नयी सरकार से जिस तरह लोगों को अपेक्षाएं और उम्मीदें थीं, उस पर मोदी सरकार पूरी तरह से विफल रही है. पहले रेल बजट और बाद में आम बजट में सरकार ने यह पूरी तरह से बता दिया कि उनकी प्राथमिकता सूची में देश का आम आदमी नहीं है, बल्कि बड़े-बड़े कॉरपोरेट घराने हैं, जो अपने मुनाफे के लिए सरकार पर दबाव डाल कर नियम-कानून बनवाते हैं.
सरकार ने हसीन सपने दिखाने का भरसक प्रयास किया है, लेकिन अवाम के लोगों को शायद ही उनके फैसले पर विश्वास हो. जिन योजनाओं को लागू करने की बात कही गयी है, उन योजनाओं के लिए इतनी कम राशि दी गयी है कि वह योजना वर्षो में भी पूरा नहीं हो सकता है. बिहार की बात करें, तो लंबित रेल परियोजनाओं के लिए किसी में दो लाख तो किसी में 50 लाख तक की राशि मंजूर की गयी है. भला इससे कोई परियोजना को पूरा किया जा सकता है.