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पहली बार अतिपिछड़ी जाति के सात नेता पहुंचे लोकसभा

पटना : यह महज संयोग नहीं था कि जिस जहानाबाद की सीट पर अब तक भूमिहार और यादव जाति के नेता ही चुनाव जीतते रहे, वहां जदयू ने एक अतिपिछड़ी जाति के उम्मीदवार को खड़ा किया और उन्हें जीत भी मिली. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को उम्मीदवार बनाया गया. जदयू […]

पटना : यह महज संयोग नहीं था कि जिस जहानाबाद की सीट पर अब तक भूमिहार और यादव जाति के नेता ही चुनाव जीतते रहे, वहां जदयू ने एक अतिपिछड़ी जाति के उम्मीदवार को खड़ा किया और उन्हें जीत भी मिली. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को उम्मीदवार बनाया गया. जदयू के इस निर्णय से कुछ लोग आरंभ में भले ही असहमत थे, पर जैसे-जैसे चुनाव की तिथियां करीब आती गयी, उनके फैसले की सराहना होने लगी.

अतिपिछड़ी जातियों के मतदाता गोलबंद हुए. यह गोलबंदी सिर्फ जहानाबाद तक सीमित नहीं रही, बल्कि राज्य के सभी कोने में इसका असर दिखा. जहानाबाद से जदयू उम्मीदवार चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी चुनाव जीते और उनके साथ एनडीए के सभी सात अतिपिछड़ी जाति के उम्मीदवार भी लोकसभा पहुंचने में सफल हुए.
सोशल इंजीनियरिंग भी कारगर साबित हुई : भाजपा ने भी अपनी 17 सीटों में इस बार पिछड़ी जाति के पांच, अतिपिछड़ी जातियों के दो और सामान्य वर्ग के लोगों के साथ भी सामंजस्य बैठाने की कोशिश करते हुए उन्हें नौ सीटें दी थीं. भाजपा ने इस नये फॉर्मूला के आधार पर टिकट बंटवारा करके यह संदेश दिया कि उसका फोकस सिर्फ अगड़ी जातियों पर ही नहीं, बल्कि खासतौर से पिछड़ी जातियों पर है. जदयू के साथ मिलकर भी उसने सभी अतिपिछड़ी जातियों को साधने की पूरी कोशिश की.
संसद तक पहुंचायेंगे जनता की आवाज
जदयू के जहानाबाद से चंद्रेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी, सुपौल से दिलेश्वर कामैत, झंझारपुर से रामप्रीत मंडल, सीतामढ़ी से सुनील कुमार पिंटू और भागलपुर से अजय मंडल ने भारी वोट से जीत हासिल की. वहीं, भाजपा की टिकट पर अरिरया से प्रदीप सिंह और मुजफ्फरपुर से अजय निषाद भी संसद पहुंचने में सफल रहे. राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग के पूर्व अध्यक्ष उदयकांत चौधरी कहते हैं, यह अतिपिछड़ी जातियों की एनडीए के पक्ष में वोट करने का जुनून था. छोटी-छोटी जातियों में बंटे समूहों ने जदयू को वोट किया.
प्रचारकों का िवशेष ध्यान
एनडीए ने ओबीसी और इबीसी को मिलाकर सभी पिछड़ी जातियों को 19 सीटें देकर यह संदेश देने की कोशिश की गयी. दो यादव बांका से गिरिधारी यादव और मधेपुरा से दिनेश चंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया गया. बात पहुंचाने के लिए स्टार प्रचारकों का भी विशेष ध्यान रखा गया.
अल्पसंख्यक वोट मिले
सोशल इंजीनियरिंग का भाजपा को जबर्दस्त फायदा हुआ और उसने सभी 17 सीटों पर जीत हासिल की. लोजपा ने भी अपनी सभी सीटें निकाल लीं. कटिहार में जदयू को मिले वोट इस बात के प्रमाण हैं कि अल्पसंख्यकों को नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जदयू से कोई गूरेज नहीं है.
इस बात के प्रमाण हैं कि कई मुस्लिम बहुल इलाकों में जदयू को जमकर वोट पड़े हैं. कटिहार में कांग्रेस के दिग्गज अल्पसंख्यक उम्मीदवार के मुकाबले जदयू के दुलालचंद गोस्वामी का जीतना भी इसका उदाहरण है.
सबको साधने का जतन
एनडीए ने सवर्ण तबके के 13 उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारा था. इनमें सात राजपूत, दो ब्राह्मण, एक कायस्थ और तीन भूमिहार जाति को उम्मीदवार बनाकर सबको साधने की सफल कोशिश की गयी. अन्य पिछड़ी जाति के 12 उम्मीदवार उतारे गये थे.
इनमें वोट के लिहाज से सशक्त माने जाने वाली यादव जाति के पांच, तीन कुशवाहा और तीन वैश्य तथा एक कुर्मी जाति के उम्मीदवार बनाया गया. इसी प्रकार अति पिछड़ी जातियों में छोटी छाेटी जातियों को भी मौका दिया गया. इस वर्ग के सात उम्मीदवारों में एक धानुक, एक केवट, एक गंगेय, एक गोसाई, एक निषाद, एक गंगोता और एक चंद्रवशी जाति के उम्मीदवार थे. चुनाव में एनडीए का यह कार्ड हिट रहा

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