शशिभूषण कुंवर, पटना : पहली बार बिहार में लोकसभा के चुनावी वातावरण से बिजली का मुद्दा गायब हो गया है. अब बिजली की मांग को लेकर किसी भी लोकसभा क्षेत्र में यह मुद्दा नहीं रहा. अब बिजली की रोशनी में पक्ष व विपक्ष के नेता वोट मांग रहे हैं.
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चुनावी मुद्दों से बाहर हो गयी बिजली
शशिभूषण कुंवर, पटना : पहली बार बिहार में लोकसभा के चुनावी वातावरण से बिजली का मुद्दा गायब हो गया है. अब बिजली की मांग को लेकर किसी भी लोकसभा क्षेत्र में यह मुद्दा नहीं रहा. अब बिजली की रोशनी में पक्ष व विपक्ष के नेता वोट मांग रहे हैं. बिहार में हर-घर बिजली देने का […]
बिहार में हर-घर बिजली देने का लक्ष्य दिसंबर तक निर्धारित किया गया था, जो अक्तूबर 2018 में ही पूरा कर लिया गया. बिहार अब एलइडी युग में प्रवेश कर गया है. बिहार में जो पीढ़ी पहली बार मतदान के लिए निकलेगी उसकी जेहन में बिजली चुनावी मुद्दा नहीं दिखेगा.
21वीं सदी की शुरुआत में बिहार के गांवों और शहरों में बिजली प्रमुख समस्या थी. कहीं बिजली के खंभे नहीं थे तो कही पोल से बिजली के तार ही गायब थे. इस तरह की समस्याओं से जूझते हुए बिहार ने बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित कर ली है.
चुनाव के समय गांव, प्रखंड और जिलों में बिजली की समस्या को लेकर छोटे नेताओं के लिए यह चर्चा का विषय होता था. राज्य में 2005-06 में बिहार में करीब 800-900 मेगावाट बिजली की उपलब्धता थी. अब सिर्फ पटना जिले में करीब 500 मेगावाट बिजली की खपत हो रही है.
इसमें गुणात्मक सुधार का परिणाम है कि वर्ष 2011-12 में राज्य भर में बिजली की पीक मांग 2500 मेगावाट की होती थी, जिसमें सिर्फ 1712 मेगावाट ही आपूर्ति हो पाती थी. वर्ष 2017-18 में राज्य भर में बिजली की पीक मांग 4965 मेगावाट हुई, तो उपलब्धता 4535 मेगावाट तक पहुंच गयी.
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