19.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

पटना : खतरे में जान, मरीजों की किडनी और लिवर गलत दवाओं से हो रहे हैं खराब

आनंद तिवारी पटना : सूबे में ट्यूबर क्लोसिस (टीबी) के मरीज गलत दवा और दवाइयों के साइड इफेक्ट का शिकार हो रहे हैं. पटना सहित समूचे बिहार में 37 प्रतिशत लोग दवाइयों के साइड इफेक्ट्स के कारण ट्रीटमेंट बीच में ही छोड़ देते हैं. नतीजा उसके साइड इफेक्ट दोतरफा हो रहे हैं. अव्वल तो मरीज […]

आनंद तिवारी
पटना : सूबे में ट्यूबर क्लोसिस (टीबी) के मरीज गलत दवा और दवाइयों के साइड इफेक्ट का शिकार हो रहे हैं. पटना सहित समूचे बिहार में 37 प्रतिशत लोग दवाइयों के साइड इफेक्ट्स के कारण ट्रीटमेंट बीच में ही छोड़ देते हैं.
नतीजा उसके साइड इफेक्ट दोतरफा हो रहे हैं. अव्वल तो मरीज मल्टी ड्रग रजिस्टेंस (एमडीआर) की चपेट में आ जाते हैं. दूसरी तरफ उनके लिवर और किडनी खराब हो रहे हैं. दरअसल ये स्थिति प्राणघातक साबित हो रही है. बिहार के कुल मरीजों में दो फीसदी ऐसे मरीज हैं जिनके लिवर और किडनी गलत दवा खाने से खराब हुए हैं.
जानकारों के मुताबिक इसके पीछे सबसे बड़ा कारण टीबी का इलाज अनुमान के आधार पर करना है. गलत दवा खाने का नतीजा मरीजों की सेहत पर भारी पड़ता है. एक जानकारी के मुताबिक देश में तकरीबन 20 प्रतिशत और बिहार में करीब 2 प्रतिशत मरीजों के किडनी व लिवर टीबी की गलत दवाओं की वजह से खराब हो जाते हैं. यह तथ्य इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान के सांस रोग विभाग की ओर से किये गये अध्ययन में सामने आये हैं. मेडिकल कॉलेज पीजी फाइनल स्टूडेंट्स ने यह रिसर्च की है.
कयास के आधार पर दे रहे दवाएं
स्वास्थ्य क्षेत्र में तमाम बदलाव के बाद भी टीबी जैसी बीमारी का इलाज जांच पर कम जबकि कयासों के आधार पर अधिक हो रहा है. इसमें सबसे अधिक भूमिका झोला छाप डॉक्टर निभा रहे हैं. झोला छाप डॉक्टर मरीजों को अंदाज व कयास पर ही टीबी की दवा चला रहे हैं. खांसी, बलगम एवं मनटॉक्स की रिपोर्ट के आधार पर ही टीबी की दवाएं देनी शुरू कर दी जा रही हैं.
महिलाओं के साथ तो स्थिति और खराब है. गर्भधारण नहीं करने से संबंधित परेशानी लेकर अस्पताल पहुंचने वाली महिलाओं को टीबी की दवा देने जैसी बातें भी सामने आयी हैं, जिससे उनकी सेहत पर खराब असर पड़ रहा है. पूरे बिहार में ढाई लाख से अधिक मरीज टीबी की चपेट में हैं.
क्या है साइड इफेक्ट
उलटी आना, पेट में दर्द, हाथ-पैर सून होगा, भूख नहीं लगना, देखने की क्षमता कम हो जाना आदि लक्षण हैं. यह साइड इफेक्ट किसी एक दवा से हो सकते हैं. स्टडी में सामने आया कि मरीज डॉक्टर से सलाह लिए बिना ही सभी दवाइयां बंद कर देते हैं. सिर्फ उसको बंद करने या रिप्लेस करने की जरूरत होती है.
इन जांचों की सुविधा नहीं
पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल, नालंदा मेडिकल कॉलेज अस्पताल, कमदकुअां टीबी सेंटर आदि अस्पतालों में आधुनिक टीबी जांच की सुविधा उपलब्ध नहीं है. आईजीआईएमएस छोड़ बाकी के अस्पतालों में इंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड, डबल बैलुन इंडोस्कोपी आदि कुछ ऐसे जांच हैं जो उपलब्ध नहीं है. आमतौर पर डॉक्टरों की ओर से खांसी, कफ एवं मानटॉक्स रिपोर्ट के आधार टीबी की दवाएं शुरू कर दी जाती हैं. टीबी की दवा का 9 महीने का कोर्स होता है. लंबी अवधि तक दवा के सेवन से मरीज के लिवर पर खराब असर पड़ता है और प्रत्यारोपण तक की नौबत आ जाती है.
इनका कहना है
आईजीआईएमएस के मेडिकल सुपरिटेंडेंट डॉ मनीष मंडल ने बताया कि ग्रामीण इलाके से आ रहे अधिकांश मरीजों से जब पूछताछ की गयी तो पता चला कि खांसी, बुखार, बलगम एवं मनटॉक्स की रिपोर्ट पर ही टीबी की दवा खा लेते हैं. ये मरीज झोलाछाप डॉक्टर के यहां जाते हैं. नतीजा उनको दवाओं का साइड इफैक्ट हो जाता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें