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पटना : राजनीति में नेताओं और दलों की छवि संवार रहे सोशल मीडिया प्रोफेशनल्स

सुमित कुमार पटना : वो दिन गये जब नेताओं को राजनीति में अपनी पहचान बनाये रखने के लिए चप्पल तक घिसने पड़ते थे. राजनीति में प्रोफेशनल्स की इंट्री ने उनके काम को काफी आसान बना दिया है. चुनावी क्षेत्र का फीडबैक लेने से लेकर प्रचार-प्रसार के लिए नेताओं की निर्भरता अब सिर्फ कार्यकर्ताओं पर नहीं […]

सुमित कुमार
पटना : वो दिन गये जब नेताओं को राजनीति में अपनी पहचान बनाये रखने के लिए चप्पल तक घिसने पड़ते थे. राजनीति में प्रोफेशनल्स की इंट्री ने उनके काम को काफी आसान बना दिया है. चुनावी क्षेत्र का फीडबैक लेने से लेकर प्रचार-प्रसार के लिए नेताओं की निर्भरता अब सिर्फ कार्यकर्ताओं पर नहीं रह गयी है. देश-विदेश के बड़े बिजनेस-मैनेजमेंट कॉलेजों से पढ़ कर आये युवा प्रोफेशनल्स के तौर पर राजनीतिक दलों को इसकी सेवाएं देने लगे हैं.
पीआर से लेकर सोशल मीडिया कर रहे हैं हैंडिल
इन चुनावों में प्रोफेशनल्स को मिली सफलता के बाद कई छोटे-बड़े दलों ने प्रोफेशनल्स की सेवाएं लीं. कई पार्टियों में प्रोफेशनल्स मीडिया पीआर से लेकर पार्टी व व्यक्तिगत नेताओं के सोशल मीडिया अकाउंट संभाल रहे हैं.
फेसबुक और ट्विटर अकाउंट भले ही उस बड़े नेता के नाम पर हो, लेकिन परिस्थिति के हिसाब से उसे अपडेट करने की जिम्मेदारी इन प्रोफेशनल्स की ही होती है. सोशल मीडिया की आम लोगों में बढ़ती पहुंच को देखते हुए कई पार्टियों ने तो बाकायदा 50 हजार से अधिक फॉलोअर रखने वाले लोगों को टिकट देने की घोषणा कर रखी है. यह देखते हुए भी प्रोफेशनल्स अनिवार्य हो गये हैं. तकनीकी रूप से अज्ञानी राजनीतिक लोगों को अपनी उपस्थिति बरकरार रखने के लिए इन प्रोफेशनल्स की सेवा लेना मजबूरी बन गयी है.
तकनीक व प्रोफेशनलिज्म का जोड़ कर रहा प्रभावित
समाजशास्त्रियों की मानें तो तकनीक व प्रोफेशनलिज्म का जोड़ राजनीति को प्रभावित कर रहा है. यूं कहें कि तकनीक के बढ़ते उपयोग ने प्रोफेशनल लोगों को राजनीति में एंट्री दी. वर्ष 2009 तक सोशल मीडिया की राजनीति में दखल न के बराबर थी, लेकिन करीब नौ साल बाद परिदृश्य बिल्कुल उलटा है. उस वक्त सोशल मीडिया के लिए अछूते रहे तमाम नेताओं के पास आज बड़ी फैन फॉलोइंग के साथ फेसबुक और ट्विटर अकाउंट हैं. सोशल मीडिया पर होने वाली बहस से आज शहरी आबादी के साथ ही ग्रामीण आबादी का बड़ा हिस्सा प्रभावित होता है.
लुभावने नारों से जनमानस को करते हैं प्रभावित
समाजशास्त्री रणधीर कुमार की मानें तो वर्ष 2014 का लोकसभा चुनाव राजनीति में प्रोफेशनलिज्म की इंट्री का टर्निंग प्वाइंट माना जायेगा. इस चुनाव में जिस तरीके से सोशल मीडिया के साथ ही लुभावने नारों और स्पेशल कैंपेनिंग का दौर चला.
इसका असर चुनाव परिणाम पर भी दिखा. वर्ष 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में ‘ फिर नीतीशे कुमार ‘ जैसे नारों ने लोगों को जोड़ा. इसमें प्रोफेशनल के तौर पर प्रशांत किशोर की भूमिका अहम रही. वही प्रशांत किशोर 2019 में बतौर पार्टी कार्यकर्ता जदयू के लिए कैंपेनिंग करते दिखेंगे. कांग्रेस ने उनके जवाब में शाश्वत गौतम को उतारा है.
तात्कालिक फायदा मिल सकता है, लेकिन यह लंबा नहीं चलेगा
डिजिटल युग में जनता को बरगलाने के लिए कॉरपोरेट हथकंडे अपनाये जाते हैं. प्रोफेशनल्स की सेवाएं लेने से राजनीतिक दलों या नेताओं को तात्कालिक फायदा मिल सकता है, लेकिन यह लंबा नहीं चलेगा. इनका प्रयास मूलभूत मुद्दों बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा से जनता का ध्यान हटा कर पार्टी के जातिगत या धार्मिक एजेंडे पर सेट करना होता है.
हरिद्वार शुक्ला, विभागाध्यक्ष, राजनीति शास्त्र, पटना विवि

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