Advertisement
बिहार : प्रभात खबर के ‘बचपन बचाओ अभियान’ को नोबेल अवार्ड विजेता कैलाश सत्यार्थी ने सराहा, कही ये बात
II कैलाश सत्यार्थी II मार्कशीट पर छपे नंबरों से ज्यादा ताकतवर होती हैं बच्चों के अंदर की खूबियां हमारे बच्चों की बोर्ड की परीक्षाएं खत्म हो चुकी हैं और सब लोग बेसब्री से रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं. इस इंतजार में बेचैनी है, डर है और भविष्य व कैरियर की चिंता भी. सच कहूं […]
II कैलाश सत्यार्थी II
मार्कशीट पर छपे नंबरों से ज्यादा ताकतवर होती हैं बच्चों के अंदर की खूबियां
हमारे बच्चों की बोर्ड की परीक्षाएं खत्म हो चुकी हैं और सब लोग बेसब्री से रिजल्ट का इंतजार कर रहे हैं. इस इंतजार में बेचैनी है, डर है और भविष्य व कैरियर की चिंता भी. सच कहूं तो यह चिंता निरर्थक है.
बच्चों को भयमुक्त और दबावरहित वातावरण दीजिए, देखिए उनकी प्रतिभाएं कैसे निखर कर सामने आती हैं? मैं अपनी बात बताऊं तो मुझे कभी भी कम नंबर आने से डर नहीं लगता था. पढ़ाई को लेकर कभी घबराता भी नहीं था. इसकी वजह शायद यह थी कि मैं अच्छी तरह जानता था कि मेरे भीतर बहुत सारी खूबियां और संभावनाएं हैं, जो मार्कशीट पर छपे नंबरों से कहीं ज्यादा ताकतवर हैं. यही कारण रहा कि मैं मस्ती में पढ़ाई करने के साथ-साथ दूसरे जरूरतमंद बच्चों की मदद के लिए कुछ-न-कुछ करता रहता था.
स्कूल के दिनों में मैं भी सपने देखा करता था. लेकिन मेरे सपने बड़े अजीब थे. ज्यादा अच्छा रिजल्ट लाकर किसी अच्छे कैरियर में जाने का सपना उतना बड़ा नहीं होता, जितना इज्जत, खुशी और संतोष के साथ जिंदगी जीते हुए दुनिया को बेहतर बनाने का सपना होता है.
शायद, इसी सोच के चलते मेरे नंबर भी अच्छे आते थे और मैं पढ़ाई को लेकर कभी परेशान भी नहीं होता था. लेकिन, जब आपके नंबर कम आते हैं, या फिर आप फेल हो जाते हैं, या फिर अच्छे स्कूल-कालेज में एडमिशन नहीं मिल पाता, तो आप हताश हो जाते हैं. तब आप यह भूल जाते हैं कि आपके अंदर तो उससे कहीं ज्यादा आगे बढ़ने और सफलता हासिल करने का माद्दा होता है.
मैं यह मानने को कतई तैयार नहीं हूं कि आपकी मार्कशीट आपकी योग्यता और संभावना का आईना हो सकता है. सफलता नंबरों की मोहताज नहीं होती. यदि आप फेल हो गये या फिर कुछ विषयों में अच्छे नंबर नहीं भी आते तो दुबारा कोशिश करके अच्छे नंबर लाये जा सकते हैं.
इससे जिंदगी रुकती थोड़ी न है. न ही कभी खत्म होती है. यह मेरे अनुभवों का निचोड़ है कि जिंदगी आपको हमेशा बेहतर करने और सफलता हासिल करने का अवसर प्रदान करती है. अब यह आप पर है कि आप हताश और निराश हो जाते हैं या फिर अपने सपनों को पूरा करने में पुराने जज्बे से जुट जाते हैं और असफलता को सफलता में बदल देते हैं. लेकिन अगर हताशा और निराशा मन में बैठ गयी तो इतना तय मानिए आपके पूरे व्यक्तित्व पर इसका बुरा असर पड़ेगा.
बच्चों के अवसाद और हीनभावना में आने के लिए काफी हद तक माता-पिता औरशिक्षक जिम्मेदार हैं. कई बार मैं यह नहीं समझ पाता कि क्या माता-पिता सचमुच बच्चों के दोस्त हैं और उनका भला चाहते हैं?
या फिर अनजाने में बच्चों का भविष्य बनाने के नाम पर उनके भीतर छुपी हुई प्रतिभाओं को कुचल रहे हैं? यकीन मानिए, पढ़ाई और नंबरों का खौफ पैदा कर आप उसे ज्ञान व प्रतिभा से वंचित कर रहे हैं. एक पिता के नाते मैं आपको यह भी बताना चाहता हूं कि मैंने और पत्नी सुमेधा जी ने अपने बच्चों के ऊपर न तो कभी इस तरह का दबाव डाला और न ही उन्हें नंबरों को लेकर डराया-धमकाया. मैंने कभी भी उन पर अपने भीतर की आकांक्षाओं को थोपने की कोशिश भी नहीं की.
बचपन की आजादी से ज्यादा कीमती जीवन का कोई हिस्सा नहीं होता और न ही व्यक्तित्व विकास का इससे ज्यादा असरदार कोई तरीका होता है.
यही वजह है कि मेरा बेटा देश में बच्चों के अधिकारों, गुलामी, ट्रैफिकिंग, बाल मजदूरी, यौन शोषण और बलात्कार जैसे मामलों का प्रमुख कानूनविद् है. बेटी ने भी देश-दुनिया के नामी-गिरामी संस्थानों में पढ़ाई करने के बाद उच्च पद हासिल किया और अब मुंबई की एक कंपनी की लाखों की नौकरी छोड़ कर सड़क के कुत्तों के संरक्षण के लिए कार्यक्रम चला रही है.
शैक्षणिक संस्थानों का तो और भी बुरा हाल है. अपनी छवि चमकाने और बाजार में ब्रांड निर्मित करने के चक्कर में वे छात्रों के दिलोदिमाग पर पढ़ाई का इतना बोझ डाल देते हैं कि वह दुनियादारी के मामले में पिछड़ जाते हैं.
यही परिस्थितियां सुरक्षित, भयमुक्त और सही मायने में शिक्षित समाज के निर्माण में बड़ी बाधा बनती हैं. जब आपमें से हर कोई अपने और अपने बच्चों के नंबर, कैरियर और आमदनी से ज्यादा कुछ नहीं सोच पायेगा, तो फिर हमारे इस महान भारत को विश्व का सबसे उन्नत, विकसित और सुरक्षित भारत बनाने के बारे में कौन सोचेगा?
बच्चों की रुचि व प्रतिभा को बढ़ावा देने में माता-पिता सहायक बनें
हम माता-पिता बच्चों की रुचि और प्रतिभा को बढ़ावा देने में सहायक बनें, न कि उन्हें अपनी महत्वाकांक्षाओं और दमित इच्छाओं को पूरा करने का औजार बनाएं. मुझे ऐसे माता-पिता मिलते हैं जो डॉक्टर, इंजीनियर या फिर आईएएस-आईपीएस नहीं बन पाये तो अपने बच्चों को वही बनाने के लिए उनकी जान लेने पर उतारू हो जाते हैं. मैं कुछ ऐसे परिवारों को भी जानता हूं जिनके बच्चों ने इसी दबाव में आकर आत्महत्या तक कर ली.
इसलिए हम माता-पिता को चाहिए कि हम अपने बच्चों को एक ऐसा सुरक्षित, प्यार भरा और भयमुक्त माहौल दें, जिनमें उनकी प्रतिभाओं को पंख लग पाये. और हां, बच्चों को नासमझ मत समझें, उनसे बहुत कुछ सीखा भी जा सकता है. बच्चों से दोस्ती का व्यवहार करें और उनके मन की बातों को सुनें. आपके महज ऐसा करने से बच्चे बड़ी से बड़ी कठिनाइयों और असफलताओं को भी अपनी हिम्मत से पार पा जायेंगे.
प्रभात खबर का ‘बचपन बचाओ अभियान’ आज से
प्रभात खबर का बचपन बचाओ अभियान आज से शुरू होने जा रहा है. आज पहले दिन पटना के प्रतिष्ठित लोयला पब्लिक स्कूल में मनोवैज्ञानिक और शिक्षा से जुड़े विशेषज्ञ बच्चों से बातें करेंगे और उनके विचारों को जानने-समझने और उन्हें प्रेरित करने की कोशिश करेंगे.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement