भारतीय सभ्यता की धरोहर पर व्याख्यान में बोले पूर्व मुख्य सचिव
पटना : सिंधु घाटी सबसे पुरानी सभ्यता है. इस सभ्यता में जो अवशेष और मूर्तियां मिली हैं. उनसे प्रमाण मिलता है कि इस सभ्यता से ही मातृ की पूजा शुरू हुई थी. बाद में यही पूजा धीरे-धीरे शक्ति, दुर्गा व काली पूजा में परिवर्तित हो गयीं. एपी प्रसाद पब्लिक लाइब्रेरी एवं बिहार संस्कृत संजीवन समाज के संयुक्त तत्वावधान में ‘भारतीय सभ्यता की धरोहर’ पर आयोजित व्याख्यान में उक्त बातें पूर्व मुख्य सचिव व एनओयू के पूर्व कुलपति विजय शंकर दूबे ने कहीं.
उन्होंने कहा कि भगवान शिव की पूजा का उल्लेख भी सिंधु घाटी में मिलता है. बाद में आर्यन ने इसे अपनी सभ्यता में शामिल कर लिया. सिंधु घाटी सभ्यता आर्यो से पहले की सभ्यता है. करीब 1500 वर्षो तक चलने वाली यह सभ्यता विश्व की सबसे लंबी सभ्यता है. दूसरी कई सभ्यताओं की स्क्रिप्ट पढ़ी जा चुकी है, लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता की स्क्रिप्ट आज तक नहीं पढ़ी जा सकी हैं.
कुछ लोगों को लगा कि बंटवारे के बाद सिंधु घाटी का अधिकतर भूभाग पाकिस्तान जा चुका है,लेकिन ऐसा नहीं है. अभी भी भारत में इसका बहुत बड़ा भूभाग मौजूद है. सिंधु घाटी की छह सौ से अधिक साइट्स पर खुदाई हुई है और वहां टेराकोटा की मूर्तियां मिली हैं. इन मूर्तियों को देखने पर यह साफ स्पष्ट होता है कि प्रकृति की पूजा से पहले मां की ही पूजा होती थी. उन्होंने सिंधु घाटी के अवशेषों को चित्रों के माध्यम से भी समझाने का प्रयास किया. मौके पर अखौरी महेश्वर प्रसाद व बिहार संस्कृत संजीवन समाज के शिववंश पांडे समेत कई लोग मौजूद थे.