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बिहार : एनआईटी ने दी रिपोर्ट मगर पैसे के पेच में फंसा संतोषा का अवैध निर्माण

अवैध हिस्से को सिर्फ खाली कराया, भीतरी दीवार को हटा कर रह गया निगम आवंटियों ने पूरे निर्माण पर असर को लेकर हाईकोर्ट में लगायी गुहार, निगम ने जांच करा कर मंगायी रिपोर्ट पूरी तरह तीनों फ्लोरों को तोड़ने के लिए 3.31 करोड़ की राशि की जरूरत पटना : शहर के 15 साल पुराने हाई […]

अवैध हिस्से को सिर्फ खाली कराया, भीतरी दीवार को हटा कर रह गया निगम
आवंटियों ने पूरे निर्माण पर असर को लेकर हाईकोर्ट में लगायी गुहार, निगम ने जांच करा कर मंगायी रिपोर्ट
पूरी तरह तीनों फ्लोरों को तोड़ने के लिए 3.31 करोड़ की राशि की जरूरत
पटना : शहर के 15 साल पुराने हाई प्रोफाइल संतोषा अवैध निर्माण का मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला गया है. निगम ऊपरी तीन फ्लोरों की भीतरी दीवारों को तोड़ने और बाकी के अवैध निर्माण को सील करने के बाद अब चुप है. नगर निगम को पूरी तरह तीनों फ्लोरों को तोड़ने के लिए 3.31 करोड़ की राशि की जरूरत है. इतनी बड़ी राशि और तीन तल्लों को तोड़नेकी कार्रवाई पैसे के अभाव में रुकी है. यह शहर में एक मात्र ऐसा मामला है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी पूर्ण नहीं हो सका है.
निगम ने एनअाईटी से करायी जांच, मगर नहीं मिला पैसा : ऊपरी तीन तल्लों को तोड़ने से पूरे अपार्टमेंट के निर्माण को लेकर अन्य फ्लैट धारकों ने हाइकोर्ट में अपील की है.
फ्लैटधारकों का कहना है कि तीन फ्लोर व सभी फ्लैटों की बालकनी तोड़ने से पूरे निर्माण पर असर होगा. इससे अपार्टमेंट टूटने का भी डर है. ऐसे में नगर निगम ने भले ही अवैध हिस्से को खाली करा दिया है, लेकिन पूर्ण रूप से निर्माण को तोड़ा नहीं जाये. वहीं, नगर निगम ने अपने स्तर से एनआइटी से इसकी जांच करायी है. नगर आयुक्त अभिषेक सिंह ने बताया कि एनआईटी के अभियंताओं की रिपोर्ट के अनुसार इनको तोड़ने के कोई असर नहीं होगा. मगर जब तक तोड़ने के लिए पैसा नहीं मिलता, कार्रवाई नहीं की जा सकती.
क्या था मामला : बंदर बगीचा स्थित संतोषा अपार्टमेंट अवैध निर्माण को लेकर काफी विवादित रहा है. इसको साकेत हाउसिंग कंस्ट्रक्शन ने बनाया था. निर्माण के बाद से ही नगर निगम में नगर आयुक्त के कोर्ट ने ऊपरी तीन फ्लोरों के 21 फ्लैटों को अवैध करार दिया.
बिल्डर ने नक्शा व बिल्डिंग बायलाॅज की अवहेलना करते हुए अपार्टमेंट की ऊंचाई छह तल्ले से बढ़ा कर नौ तल्ले का कर दिया था. इसको लेकर मामला नगर आयुक्त की कोर्ट से हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा. बीते वर्ष सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच ने भी नगर आयुक्त के कोर्ट के फैसले को सही ठहराया और निर्माण को तोड़ने का आदेश दिया. अवैध निर्माण को तोड़ने को लेकर पैसा तो कभी निर्माण को लेकर पेच फंसता रहा है.
निगम को मिले थे 70 लाख
अवैध निर्माण तोड़ने को लेकर नगर निगम को शुरुआत में 70 लाख रुपये मिले थे. इसमें नगर निगम ने तीन फ्लोर अवैध निर्माण की भीतरी दिवारों को तोड़ने व सील करने की कार्रवाई की.
गौरतलब है कि तीन फ्लोर के 21 फ्लैट के मालिकों को बिल्डर ने मुआवजे की कुल 25 करोड़ की राशि जमा की थी, जो पैसा देकर खाली कराया गया.
बालकनी भी नहीं टूटी : कोर्ट ने अवैध निर्माण को तोड़ने के साथ सभी फ्लैटों की बालकनी को भी तोड़ने का आदेश दिया था. पर कार्रवाई नहीं हो पायी है.

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