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… वो कमाल हुसन-ए-हुजूर है, वही फूल खार से दूर है
मना सूफी संत अहमद रजा कादरी का उर्स पटना सिटी : … वो कमाल हुसन-ए-हुजूर है, के गुमाने नक्शे जहां नहीं, …वही फूल खार से दूर है, वहीं शमा है धुआ नहीं. कुछ ऐसे ही नात व मनवकत बच्चों ने पढ़ी, जो बरेली के सूफी संत आला हजरत अहमद रजा कादरी ने रची थी. मौका […]
मना सूफी संत अहमद
रजा कादरी का उर्स
पटना सिटी : … वो कमाल हुसन-ए-हुजूर है, के गुमाने नक्शे जहां नहीं, …वही फूल खार से दूर है, वहीं शमा है धुआ नहीं. कुछ ऐसे ही नात व मनवकत बच्चों ने पढ़ी, जो बरेली के सूफी संत आला हजरत अहमद रजा कादरी ने रची थी.
मौका था मोगलपुरा दुरुखी गली स्थित अल जामितुर रिजविया मदरसा में बुधवार को आयोजित संत के 99 वें उर्स का. इसमें अब्दुल बाकी, शमस तवरेज, असरफ रजा, रिजवान आलम, हसान रजा व शाहबुद्दीन समेत अन्य बच्चों ने संत की रची नात पढ़ी. मदरसा के प्राचार्य मो कमरूजमा मिसवाही बताते हैं कि संत ने नात के माध्यम से यह संदेश दिया कि फूल में भी कांटे होते हैं, शमा में धुआं होता है, लेकिन हमारे नवी ऐसे हैं, जिसमें कोई काटा नहीं है. उनकी रोशनी भी धुआ विहीन है. इससे पहले उर्स का आगाज सुबह में कुरानशरीफ के पाठ से हुआ. पाठ हाफिज हसन रजा ने की.
संत ने एक माह में कुरान को किया कंठस्थ
उर्स पर आयोजित तकरीर में प्राचार्य कमरूजमा मिस बाही, डॉ नजमुल कादरी व मौलाना तहसीर जेया ने कहा कि सूफी संत अहमद रजा कादरी ने महज चार साल की उम्र में कुरान को पढ़ लिया था. एक माह में कुरान को कंठस्थ कर लिया. संत जब मक्का हज पर गये, तो वहां इल्म पर आठ घंटे में 350 पृष्ठ की पुस्तक अरबी में रच डाली.
वक्ताओं ने कहा कि संत का जन्म बरेली में 1856 में हुआ था. संत महज 13 वर्ष,दस माह पांच दिन की उम्र में ही दीन, समाज,मजहब व विज्ञान प्रौद्योगिक की तालीम पा चुके थे. उनके जीवन दर्शन पर विश्वविद्यालयों में 50 से भी अधिक पीएचडी हो चुके हैं. 1912 में ही संत ने बैंकिंग प्रणाली की जानकारी दी थी. संत का इंतकाल 1921 में उर्दू के माह सफर के 25 वें तारीख को हुआ था. यह संत का 99 वां उर्स है.
मांगी गयी अमन-चैन की दुआ: अनुयायियों की ओर से आयोजित उर्स में कुल फातिया के बाद जायरीनों ने अमन-चैन की दुआ मांगी. इसके बाद जलसे का समापन हुआ. फिर गरीब व मजलुम को भोजन कराया गया. इसके अलावा संत के अनुयायियों की ओर से बंटाऊ कुआं में भी उर्स का आयोजन हुआ.
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