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आर्यभट्ट ज्ञान विवि : बगैर निविदा के चहेती कंपनी से कराया एक करोड़ का कार्य
एहतेशाम अहमद पटना : राज्य सरकार प्रदेश में तकनीकी शिक्षा से लेकर सभी तरह की शिक्षा के उत्थान को लेकर सजग व कृतसंकल्पित दिखाई दे रही है. इसको लेकर सीएम नीतीश कुमार ने कई शिक्षण संस्थान खुलवाए. जिससे शिक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है. इसी कड़ी में बिहार सरकार की ओर से आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय […]
एहतेशाम अहमद
पटना : राज्य सरकार प्रदेश में तकनीकी शिक्षा से लेकर सभी तरह की शिक्षा के उत्थान को लेकर सजग व कृतसंकल्पित दिखाई दे रही है. इसको लेकर सीएम नीतीश कुमार ने कई शिक्षण संस्थान खुलवाए. जिससे शिक्षा व्यवस्था में सुधार हुआ है. इसी कड़ी में बिहार सरकार की ओर से आर्यभट्ट ज्ञान विश्वविद्यालय की स्थापना की गयी. यह विश्वविद्यालय बिहार राज्य विवि अधिनियम 2008 द्वारा शासित है.
बिहार सरकार द्वारा इस विश्वविद्यालय की स्थापना राज्य के तकनीकी, चिकित्सीय, प्रबंध तथा व्यावसायिक शिक्षा के विकास व प्रबंधन के लिए किया गया है, परंतु स्थापना के एक दशक भी पूरे नहीं किये हैं. इसमें कई प्रकार की खामियां व वित्तीय अनियमितता उजागर होने लगी है. हाल में बिहार के महालेखाकार द्वारा विवि की जांच में करोड़ों की वित्तीय अनियमितता का मामला सामने आया है. कार्यालय महालेखाकार ने विवि की संचिकाओं की जांच-पड़ताल में नियमों के विपरीत कार्य कर की गयी वित्तीय अनियमितता सहित कई आपत्तियां दर्ज कराते हुए जवाब-तलब किया गया है.
जांच रिपोर्ट के मुताबिक विवि में बगैर निविदा तथा बगैर दर प्राप्त किये कार्य आवंटित कर भुगतान कर 102.73 लाख रुपये की वित्तीय अनियमितता पायी गयी है. एक खास कंपनी को वित्तीय लाभ पहुंचाने के लिये नियम कायदे को ताक पर रख दिया गया है.
जानकारी के मुताबिक बिहार वित्तीय नियमावलजी 131 (एच) के मुताबिक जहां सामग्री की अनुमानित लागत 25 लाख से उपर हो, उसकी निविदा प्रकाशित की जाती है, परंतु जांच में यह पाया गया है कि विवि के परीक्षा विभाग द्वारा ओएमआर शीट की प्रिंटिंग व स्कैनिंग संबंधी याचिका और वाउचर के नमूना कार्यालय द्वारा मेसर्स डाटाटेक मेथोडेक्स प्रा. लिमिटेड को वर्ष 2011 में एक करारनामा के द्वारा दो कार्यों के लिए नियमानुसार किया गया, परंतु बगैर निविदा प्रकाशन के उक्त कंपनी को 13 कार्य दे दिये गये. जांच के क्रम में पाया गया कि उक्त कंपनी को अक्तूबर, 2012 से जुलाई, 2017 तक 102.73 लाख रुपये का भुगतान भी कर दिया गया. वहीं, कंपनी का 10.53 लाख का दायित्व सृजन कर रखा गया. जांच दल ने इसे वित्तीय अनियमितता का मामला मानते हुए विवि प्रबंधन को यह बताने का निर्देश दिया है कि बगैर निविदा आमंत्रण किये मेसर्स डाटा टेक को कार्य आवंटित कर इतनी बड़ी राशि का भुगतान किये जाने का क्या औचित्य था?
दो को अयोग्य घोषित कर मेसर्स चौधरी प्रिंटिंग प्रेस को दी निविदा
जांच टीम ने पाया कि आर्यभट्ट ज्ञान विवि के परीक्षा विभाग के मुद्रण संबंधित संचिका में नियमों से इतर समाचार पत्रों में प्रकाशित निविदा को इंडियन ट्रेड जेनरल में प्रकाशित नहीं की गयी. साथ ही तीन निविदाताओं में दो को अयोग्य घोषित करते हुए मेसर्स चौधरी प्रिंटिंग प्रेस को निविदा प्रदान की गयी, परंतु सामग्री आपूर्ति आदेश एकरारनामा व दर वार्ता पत्र से पता चला कि टैक्स व परिवहन शुल्क को अलग से जोड़ा गया था, जो कि नियमों के खिलाफ है.
इसके अलावा उक्त कंपनी के साथ दर वार्ता के पश्चात दी गयी दर पर क्रय समिति के किसी भी सदस्य के हस्ताक्षर नहीं थे. जांच कमेटी ने जानना चाहा है कि किन कारणों से एकल निविदा के आधार पर मेसर्स चौधरी प्रिंटिंग प्रेस को कार्य आवंटित किया गया था. जांच क्रम में यह बात सामने आयी कि पूर्व में ओएमआर उत्तर पुस्तिका का प्रकाशन मेसर्स डाटा टेक कंपनी से मात्र 10.90 रुपये प्रति की दर से करवाया जाता था.
वहीं, मेसर्स चौधरी से उक्त कार्य हेतु 101.38 प्रतिशत अधिक दर पर 21.95 रुपये की दर से मुद्रण कार्य करवाया गया. जांच के क्रम में यह तथ्य भी उजागर हुआ कि विवि में बिना निविदा निकाले सामग्री का क्रय किया गया, जिस कारण पूर्व के दर से करीब 5.60 लाख रुपये का अधिक भुगतान किया गया है. जांच के मुताबिक विवि के द्वितीय दीक्षांत समारोह हेतु फोल्डर आदि की खरीदारी में भी अनियमितता बरती गयी है.
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