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बिहार : सरकार की अपील, बच्चों को फेंकिए मत, हमें दीजिए
सरकार करेगी बच्चों की परवरिश, एक विशिष्ट दत्तक गृह पर सालाना 15.5 लाख रुपये खर्च पटना : बिहार सरकार की अपील है.. बच्चों को फेंकिए मत, हमें दीजिए. हम बच्चों की परवरिश करेंगे. समाज कल्याण निदेशालय के सुनील कुमार ने बताया कि राज्य के 20 जिलों में 22 विशिष्ट दत्तक गृह (स्पेशलाइज्ड अडॉप्शन एजेंसी) संचालित […]
सरकार करेगी बच्चों की परवरिश, एक विशिष्ट दत्तक गृह पर सालाना 15.5 लाख रुपये खर्च
पटना : बिहार सरकार की अपील है.. बच्चों को फेंकिए मत, हमें दीजिए. हम बच्चों की परवरिश करेंगे. समाज कल्याण निदेशालय के सुनील कुमार ने बताया कि राज्य के 20 जिलों में 22 विशिष्ट दत्तक गृह (स्पेशलाइज्ड अडॉप्शन एजेंसी) संचालित हो रहे हैं. 10 और जिलों में जल्द ही एजेंसियां काम शुरू कर देंगी. इन्हीं के पास शून्य से छह वर्ष तक के लावारिस मिले बच्चों को रखा जाता है. एक विशिष्ट दत्तक गृह पर सरकार सालाना करीब 15.5 लाख रुपये खर्च करती है. संबंधित विशिष्ट दत्तक गृह को बेहतर सेवा के लिए भुगतान किया जाता है.
एक विशिष्ट दत्तक गृह में अधिकतम 10 बच्चों को रखा जाता है. 10 बच्चों के ऊपर नौ कर्मचारी होते हैं. इसके अलावा एक सचिव होता है. साफ है कि हर बच्चे पर एक आदमी देखरेख के लिए होता है. इसलिए कमी की कोई गुंजाइश नहीं रह जाती है. ऊपर से समय-समय पर इन एजेंसियों का निरीक्षण भी किया जाता है. बकौल सुनील कुमार, अगर आपको लगता है कि आप अपने बच्चे का पालन-पोषण नहीं कर पा रहे हैं, या नहीं कर पायेंगे तो घबराने की बात नहीं है.
आप हमारे पास आइये. कुछ औपचारिकताएं पूरी करने के बाद आप अपना बच्चा सरकार को सौंप सकते हैं. फिर आपका बच्चे पर कोई हक नहीं रह जायेगा. वह कानूनी रूप से आपका नहीं रह जायेगा. इन जिलों में चल रहे हैं विशिष्ट दत्तक गृह : पटना, भागलपुर, सारण, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, सहरसा, गया, गोपालगंज, नवादा, कटिहार, सिवान, वैशाली, मोतीहारी, मधेपुरा, सीतामढ़ी आदि.
मधुबनी, कैमूर, बेगूसराय, अररिया, पूर्णिया.
कोई लावारिस बच्चा मिले तो करें 1098 पर कॉल
समाज कल्याण निदेशालय के सुनील कुमार ने बताया कि अगर किसी को कोई बच्चा लावारिस हाल में मिलता है तो वह फौरन 1098 पर कॉल कर सकता है. इसके अलावा आसपास के विशिष्ट दत्तक गृह से भी संपर्क कर सकता है. शून्य से छह साल तक के बच्चों को विशिष्ट दत्तक गृह में रखा जाता है. इससे पूर्व इसकी डॉक्टरों से जांच करायी जाती है.
इसके बाद बाल कल्याण समिति के सामने पेश किया जाता है, उसके बाद जो भी निर्णय होता है, उसका पालन होता है. अगर लावारिस मिलने वाला बच्चा छह साल से अधिक उम्र का है तो अलग नियम है. लड़का और लड़की को अलग-अलग रखा जाता है. प्रदेश में ऐसे बच्चों के लिये चिल्ड्रेन होम हैं. ये होम स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से चलाये जाते हैं.
लड़कियों की संख्या ज्यादा
21 माह में शून्य से छह वर्ष की आयु तक के 501 बच्चे बिहार में लावारिस मिले हैं. इनमें 315 बेटियां शामिल हैं. वर्ष 2016 में जनवरी से दिसंबर के बीच लावारिस मिले 279 बच्चे विशिष्ट दत्तक गृह लाये गये.
इनमें से 193 बेटियां थीं. इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि आज भी बेटियों को लेकर क्या धारणा है. यह आंकड़ा समाज को आईना दिखाने के लिए काफी है. बहरहाल, अच्छा है कि इन बच्चों को बिहार सरकार ने ‘गोद’ ले लिया है. उनकी बेहतर परवरिश की जा रही है.
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