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पटना : सख्त हैं सरकारी नियम, लोगों को हो रही समस्या : मंजू वर्मा

पटना : सरकारी नियम बहुत सख्त हैं. इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है. किसी भी सरकारी योजना का लाभ पाना उनके लिए आसान नहीं है. इसके लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. इस कारण आम आदमी थक जाता है और इसका लाभ नहीं ले पाता. इसलिए सरकारी नियमों में लचीलापन होना चाहिए, […]

पटना : सरकारी नियम बहुत सख्त हैं. इसका खामियाजा आम लोगों को भुगतना पड़ता है. किसी भी सरकारी योजना का लाभ पाना उनके लिए आसान नहीं है. इसके लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है. इस कारण आम आदमी थक जाता है और इसका लाभ नहीं ले पाता. इसलिए सरकारी नियमों में लचीलापन होना चाहिए, जिससे कि लोगों का कल्याण हो सके. समाज कल्याण मंत्री कुमारी मंजू वर्मा ने शनिवार को यह बात एक कार्यशाला ‘बिहार राज्य बाल कार्य योजना 2018-22’ के दौरान कही. उन्होंने कहा कि बच्चे ही देश के भविष्य हैं.
इसलिए उन पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है. बच्चों के जरूरतों की पूर्ति में सामाजिक व्यवस्था, माहौल और परिवेश के बाधक बनने पर वे अपराध की दुनिया की ओर मुड़ जाते हैं. इसलिए यदि प्रदेश के बच्चों के जरूरतों की पूर्ति नहीं होती है तो इसके लिए वे यही मानेंगी कि उनके समाज कल्याण विभाग की सभी योजनाएं फेल हो चुकी हैं. कोई काम नहीं हो रहा. वहीं उन्होंने यूनिसेफ के बारे में कहा कि यह संस्था पूरे देश की मदद कर रही है. इतना काम होने पर भी जरूरतमंदों तक इसका लाभ नहीं मिल पा रहा. इसलिए किसी भी कार्ययोजना पर काम करने या उसे बनाने के लिए जनप्रतिनिधियों से संवाद आवश्यक है.
इसमें मुख्यमंत्री को भी शामिल करना चाहिए.
वर्मा ने अपने विधानसभा क्षेत्र की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि वहां एक महिला खुशबू के पति की मृत्यु हो गयी. उसके तीन बच्चे थे. उनके परवरिश व घर की जिम्मेदारी खुशबू के कंधों पर आ गयी. उससे मिलने गयीं तो वह दहाड़ें मारकर रोने लगी.
उसकी दयनीय हालत देखकर मदद के लिए उन्होंने अपने विभाग से कहा. इसके बाद कई एनजीओ से भी कहा कि कोई भी छोटा-मोटा काम उसे दे दें जिससे कि उसका जीवन चल सके. सभी ने नियमों का हवाला देकर मदद करने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि आम लोगों के फायदे के लिए सरकारी नियम बनाये जाते हैं. इनकी सख्ती से लोगों को लाभ नहीं मिल पा रहा.
इसलिए इसमें लचीलापन होना चाहिए.
मंत्री ने दिया सुझाव
समाज कल्याण मंत्री ने कहा कि राज्य में पहले टिटनस से मां और बच्चे की मौत होती थी अब यह समस्या खत्म होने से मातृ और शिशु मृत्युदर में कमी आयी है. स्वस्थ बच्चे पैदा करने के लिए ग्रामीण स्तर पर महिलाओं में जागरुकता फैलाने की जरूरत है.
इसके लिए गर्भावस्था धारण करने से पहले, गर्भावस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद बरती जाने वाली आवश्यक सावधानियों की जानकारी महिलाओं को देनी चाहिये. नदी किनारे के इलाकों में पैदा होने वाले बच्चे निमोनिया से पीड़ित हो जाते हैं. इसलिये उनपर ध्यान देना चाहिये. एक साल तक के नवजात शिशु को छूने से पहले हाथ धोना चाहिये. इससे उन्हें संक्रमण का खतरा 50 फीसदी कम हो जाता है.
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बाल अपराध में बढ़ोतरी
समाज कल्याण विभाग के प्रधान सचिव अतुल प्रसाद ने कहा है कि बिहार में बाल अपराध में इस साल 400 फीसदी बढ़ोतरी दर्ज हुई है. यह चिंताजनक है और इसका पता लगाना जरूरी है कि इसके पीछे कारण क्या हैं?
माफिया गिरोहों का हाथ है या किसी अपराधी गिरोह. वहीं उन्होंने कहा कि प्रदेश में औसतन हर दूसरा बच्चा नाटा पैदा हो रहा है. यह समस्या एससी-एसटी और पिछड़े वर्गों में ज्यादा है. इस पर ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि दो अक्तूबर से बाल विवाह रोकने का अभियान शुरू होगा. बिहार में अभी यह औसत 39 फीसदी है जबकि राष्ट्रीय औसत 27 फीसदी है.
उन्होंने कहा कि बाल अधिकार के लिए अभी बहुत काम करने की जरूरत है, लेकिन उनकी पहनने, खाने, घूमने आदि की आजादी देना अभी संभव नहीं हो सकेगा. इसका कारण यह है कि इसके लिए बच्चों के माता-पिता तैयार नहीं हैं. इस कार्यक्रम को प्रदेश के यूनिसेफ चीफ असीदुर्रहमान, श्रमायुक्त गोपाल मीणा, आईसीडीएस के निदेशक आरएस दफ्तुआर, समाज कल्याण के निदेशक सुनील कुमार और बिहार के सूचना आयुक्त अविनाश कुमार ने भी संबोधित किया.

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