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विधान परिषद में राबड़ी के नेता प्रतिपक्ष बनने पर लगा ग्रहण

पटना. बिहार विधान परिषद में राजद नेता व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को सदन में विरोधी दल के नेता की मान्यता मिलने पर ग्रहण लग गया है. तकनीकी अड़चन के कारण हो सकता है कि उनको विरोधी दल की नेता की मान्यता नहीं भी मिले. विरोधी दल के नेता घोषित होने के लिए विधान परिषद […]

पटना. बिहार विधान परिषद में राजद नेता व पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को सदन में विरोधी दल के नेता की मान्यता मिलने पर ग्रहण लग गया है. तकनीकी अड़चन के कारण हो सकता है कि उनको विरोधी दल की नेता की मान्यता नहीं भी मिले. विरोधी दल के नेता घोषित होने के लिए विधान परिषद में किसी भी दल के सदस्यों की न्यूनतम संख्या नौ होनी चाहिए. विधान परिषद में राजद के अभी महज सात ही विधान पार्षद ही हैं. इधर राजद के प्रदेश अध्यक्ष डॉ रामचंद्र पूर्वे ने मॉनसून सत्र के पहले विधान परिषद सचिवालय को पत्र भेजते हुए पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी को विरोधी दल के नेता की मान्यता देने की मांग की है.
बिहार विधान परिषद में कुल सदस्यों की संख्या 75 हैं. वर्तमान में दो पद रिक्त होने के कारण परिषद में सदस्यों की संख्या कुल 73 हो गयी है. 21 अगस्त से विधानमंडल का मॉनसून सत्र शुरू होनेवाला है.
इसको लेकर राजद के प्रदेश अध्यक्ष ने पार्टी की ओर से विरोधी दल घोषित करने के लिए पत्र भेजा हैं. इस बाबत जब विधान परिषद के उपसभापति हारून रसीद से पूछा गया तो उन्होंने स्वीकार किया कि राजद का पत्र गुरुवार को प्राप्त हुआ है. यह पूछे जाने पर विरोधी दल के नेता को मान्यता देने के लिए सदस्यों की न्यूनतम संख्या क्या निर्धारित की गयी है. उन्होंने बताया कि विधान परिषद में विरोधी दल के नेता घोषित करने के लिए परिषद की कार्यसंचालन नियमावली में किसी दल के सदस्यों की न्यूनतम संख्या नौ होनी चाहिए. एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि राजद की वर्तमान में विधान परिषद में सदस्यों की संख्या सात हैं. यह पूछे जाने पर कि क्या राबड़ी देवी को विपक्ष के नेता का दर्जा दिया जायेगा. उपसभापति हारून रसीद ने इसका जवाब टाल दिया.
विधान परिषद के सदस्य बन सकते हैं पारस
विधानमंडल के किसी सदन की सदस्यता के बिना राज्य मंत्रिपरिषद में शामिल पशु एवं मत्स्य संसाधन मंत्री पशुपति कुमार पारस विधान परिषद के सदस्य हो सकते हैं. विधान परिषद में दो सीटें रिक्त बतायी जा रही है.
इसमें एक सीट राज्यपाल के मनोनय कोटे का है जो दूसरा विधायकों के द्वारा निर्वाचित सदस्य का. विधान परिषद की दो सीटें रिक्त हैं. पहली सीट विधायकों द्वारा निर्वाचित होनेवाले नरेंद्र सिंह की और दूसरी सीट राज्यपाल कोटे से मनोनीत सम्राट चौधरी की सीट.
विधान परिषद ने दोनों की सदस्यता को समाप्त कर दिया था. हालांकि दोनों नेता इस मामले को लेकर अदालत तक गये. अभी तक इन दोनों सीटों में नरेंद्र सिंह के मामले को हाइकोर्ट ने अमान्य करार दिया है. विधान परिषद के उपसभापति हारून रसीद ने बताया कि परिषद में सदस्यों की कुल संख्या 75 हैं. वर्तमान में सदन में कुल 73 सदस्य हैं और दो पद रिक्त हैं. उन्होंने बताया कि पटना हाइकोर्ट द्वारा नरेंद्र सिंह को लेकर दिये गये निर्णय की फाइल अभी तक सदन को प्राप्त नहीं हुई है.
इधर पटना हाइकोर्ट का निर्णय भारत निर्वाचन आयोग को भी प्राप्त नहीं हुआ है. कोर्ट का आदेश प्राप्त होने के बाद उम्मीद है कि उस सीट को लेकर निर्वाचन की प्रक्रिया आरंभ कर दी जाये. नरेंद्र सिंह का कार्यकाल वर्ष 2018 तक शेष था. इसके अलावा सम्राट चौधरी का मामला अभी तक अदालत में है. चौधरी ने बताया कि उनके अपील पर भी अभी तक विचार नहीं किया गया है. हालांकि विधान परिषद इन दोनों सीटों के रिक्त मान रही है.
यह उम्मीद है कि इन सीटों के माध्यम से पशुपति कुमार पारस की विधानमंडल में प्रवेश मिल जाये. एक यह भी चर्चा है कि केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान के भाई होने के नाते किसी विधायक का इस्तीफा दिला दी जाये. इस तरह की परंपरा रही है. हालांकि अभी इस तरह की कोई सीन नहीं बन रहा है.

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