पटना: शहर के 292 निर्माणाधीन अपार्टमेंटों की सूची सोमवार को भी पटना उच्च न्यायालय में नहीं पेश हुई. बिल्डर्स एसोसिएशन ने न्यायालय को मेंबर द्वारा जानकारी नहीं दिये जाने का रोना रोया.
फिर काम बनता न देख न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा व विकास जैन के खंडपीठ से याचना की. खंडपीठ ने दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए कहा कि हमारा काम कानून का संरक्षण करना है.
लागू सरकार को कराना है. मुख्य सचिव कानून को लागू नहीं करा पा रहे हैं. शहर के अवैध निर्माण कारोबार से जुड़े अपार्टमेंटों का लिस्ट न आना इस बात का द्योतक है.
नरेंद्र मिश्र की याचिका पर मुख्य सचिव के नेतृत्व में 6 दिसंबर,11 फरवरी एवं 12 मार्च को हुई बैठकों के मद्देनजर की गयी कार्रवाई से न्यायालय को 24 अप्रैल को अवगत कराने को कहा गया है. नगर निगम ने न्यायालय को बताया था कि अवैध निर्माण के 200 मामलों में निगरानी वाद लाया गया है. निगम में 90 प्रतिशत तकनीकी व गैरतकनीकी कर्मियों के अभाव के बावजूद शहर के 362 निर्माण स्थलों पर निगरानी व निरीक्षण जारी है. गौरतलब है कि सूबे के मुख्य सचिव ने न्यायालय में हलफनामा दायर कर यह माना है कि शहर में 2009 से 2013 तक सात हजार अपार्टमेंटों का निर्माण हुआ है. 1962 से शहर में मास्टर प्लान का अभाव है.