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बालिकाएं अब भी अभिशप्त

समाज के सभी वर्ग के लोगों की सोच व रहन-सहन के काफी बदलाव आ गया है. समाज के सभी वर्ग के लोगों का विकास हुआ है. काफी हद तक बीच की खाई भी पटी है. अब पहले की तरह ऊंच-नीच का भेद भी नहीं है. लड़के व लड़कियों के बीच की दूरी भी कम हुई […]

समाज के सभी वर्ग के लोगों की सोच व रहन-सहन के काफी बदलाव आ गया है. समाज के सभी वर्ग के लोगों का विकास हुआ है. काफी हद तक बीच की खाई भी पटी है. अब पहले की तरह ऊंच-नीच का भेद भी नहीं है. लड़के व लड़कियों के बीच की दूरी भी कम हुई है. कई ऐसे क्षेत्र हैं जिसमें लड़कियों ने लड़कों से अधिक भागीदारी निभायी है. माता-पिता सहित परिवार के सभी सदस्यों का मान बढ़ाया है. इन सबके बाद भी देखें तो एक जगह ऐसा लगता है कि लोगों की मानसिकता में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं आया है. नवजात बच्चों को संरक्षण देने की जिम्मेवारी समाज के सभी वर्ग के लोगों व प्रशासन की एक समान है. खास कर बालिकाओं व नवजात बच्चियों को आज भी आम लोगों के नजरों में अभिशाप बनी हुई हैं. पिछले पांच सालों में बाल कल्याण समिति विभाग से मिले आंकड़ों पर गौर करें तो नवजात लड़कों की तुलना में नवजात लड़कियां अधिक फेंकी गयी हैं.

नवादा कार्यालय: मई, 2010 से दिसंबर, 2014 तक कुल 31 नवजात बच्चों को फेंका गया, जो जीवित मिले. इसमें लड़कियों की संख्या 25 है और लड़कों की संख्या सिर्फ छह. यह आंकड़ा सरकार की कन्या बचाओ योजना के लिए भी चुनौती साबित हो रही है. दुर्भाग्य इस बात की है कि इसमें से एक नवजात बच्ची व बच्च की मौत भी हो चुकी है. हाल के दिनों में अक्तूबर, 2014 में शहर के अस्पताल रोड हाट में एक नवजात बच्ची कचरे की ढेर पर फेंकी हुई मिली. स्थानीय मुसलिम महिला ने उसका इलाज करा कर अपने पास रख ली थी. परंतु, 10 दिन बाद ही उस बच्ची ने दम तोड़ दिया. समाज में बेटियों के साथ भेदभाव दौर आज भी व्यापक स्तर पर जारी है. जबकि, बेटियों के लिए सरकार कई लाभकारी योजनाएं चला रखी है. इतना ही नहीं आधी आबादी का दर्जा भी इनको दिया जा चुका है. बावजूद यह उपेक्षा का शिकार हो रही है.

नहीं मिल रहा विभागीय सहयोग : बाल कल्याण समिति द्वारा जिले भर में गुमशुदा, बाल श्रमिकों व लावारिस बच्चों को संरक्षण देकर उनके जीवन में नयी उम्मीदें जगाने का काम कर रही है. लेकिन, समिति को सरकार, प्रशासन, गैर सरकारी संस्थाएं व पुलिस का सहयोग संतोष जनक नहीं मिल रहा है, जिससे समिति को उन बच्चों के लिए काम करने में कठिनाई हो रही है.

सरकार के नये कानून पर अमल: सरकार के नये कानून लैंकिंग शोषण के विरुद्ध बालकों को संरक्षण अधिनियम एवं नियम 2012 को निर्णय कांड के बाद लागू किया गया है. किशोर न्याय अधिनियम 2000 का 2006 में संशोधित कानून लागू किया गया है. इसमें बच्चों को संरक्षण में लेकर अभिभावक के नहीं मिलने का अनाथालय में रखा जाता है. लैंगिंग नाबालिग बच्ची के साथ दुष्कर्म करने व छेड़छाड़ करने तक किसी प्रकार का लैंगिंग शोषण के तहत कार्रवाई की जाती है. इसमें उग्र कैद तक की सजा है. जागरूकता के लिए 14 नवंबर, 2014 से बालिकाओं के विद्यालयों में जागरूकता कार्यक्रम भी चलाया जा रहा है. समिति के अध्यक्ष के अलावा दो महिला सदस्य कुमारी संगीता सिन्हा व जयरण कुमारी फिलहाल काम कर रही हैं.

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