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उदित बोले, मां की प्रेरणा से आया निखार
राजगीर : संगीत के बेताज बादशाह व युवा दिलों की धड़कन उदित नारायण से राजगीर महोत्सव के दौरान साक्षात्कार का अवसर मिला. साधारण पोशाक व हवाई स्लीपर में ही वे मिलने को तैयार हो गये. उन्होंने न केवल हमारा तहेदिल से इश्तकवाल किया. बल्कि मैथिली भाषा की मधुरता का भी हमें कायल बना दिया. उन्होंने […]
राजगीर : संगीत के बेताज बादशाह व युवा दिलों की धड़कन उदित नारायण से राजगीर महोत्सव के दौरान साक्षात्कार का अवसर मिला. साधारण पोशाक व हवाई स्लीपर में ही वे मिलने को तैयार हो गये. उन्होंने न केवल हमारा तहेदिल से इश्तकवाल किया. बल्कि मैथिली भाषा की मधुरता का भी हमें कायल बना दिया. उन्होंने कुल 36 भाषाओं में अपनी मधुर गीतों से पूरी दुनियां को आनंदित किया.
पदमश्री, पदम विभूषण व तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित संगीतकार ने बिहार की मिट्टी की मिठास को अपने संगीत की मिठास बताकर बिहार का सम्मान किया है. गरीब किसान परिवार में जन्मे उदित ने अपने पारंपरिक पेशे को छोड़ संगीत का रास्ता चुना. इनके इस निर्णय से उनके पिता हरिकृष्ण झा खासे नाराज थे, परंतु इनकी माता भुवनेश्वरी देवी झा संगीत की शौकीन थी. ग्रामीण गीत हमेशा गाया करती थी. उनकी मां ने उनका मनोबल बढ़ाया. अपने आत्मविश्वास से लवरेज उदित ने संगीत की खेती करनी ठान ली.
नेपाल के काठमांडू रेडियो स्टेशन में अपनी पहली मैथिली गीत सुन सुन पनभरनी गे, की आवाज से लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया और देखते ही देखते वे नेपाल के हीरो बन गये. संगीत का सफर उनका यहीं नहीं रुका. भारतीय विद्या भवन चौपाटी में संगीत की ट्रेनिंग लेने के बाद उनकी संगीत कला और भी निखर गयी. उनकी कला के कायल रफी साहब भी थे. वर्ष 1988 में रफी साहब के साथ उन्हें गीत गाने का मौका मिला.
उनका सफर इसी तरह से चलता रहा. वे दिन प्रतिदिन बुलंदी को छूते रहे. तभी फिल्म कयामत से कयामत में गाये अपने गीत से पूरे भारत को दीवाना बना दिया. हर नौजवान की जुवान पर सिर्फ एक ही गीत पापा कहते हैं, बेटा बड़ा नाम करेगा. इनके गीत का संगीत जगत पर यह असर पड़ा कि उनके गीत गवाने के लिए बड़े बड़े फिल्मकारों का कतार में खड़ा होना पड़ा. चमक दमक से दूर रहने वाले उदित ने संगीत की सदैव पूजा की. गरीबों की मदद के लिए अपना हाथ हमेशा खुला रखा. अपने साक्षात्कार में उन्होंने मैथिली भाषा का भरपूर प्रयोग किया.
राजगीर आना मेरे लिए सौभाग्य की बात
– ज्ञान की धरती पर आकर आप कैसा महसूस कर रहे हैं?
यह मेरा सौभाग्य है कि मुझे इस ज्ञान की धरती पर आने का अवसर मिला. बिहार सरकार व पर्यटन विभाग के हम अाभारी हैं. इस ज्ञान की धरती नालंदा व राजगीर के बारे में बहुत कुछ सुना था. आज यहां आकर धन्य महसूस कर रहा हूं.
– कौन सा गीत आप अक्सर गुन गुनाया करते हैं?
ऐसे तो मैंने हजारों लोकप्रिय गीत गाया है. लेकिन कयामत से कयामत का गीत पापा कहते हैं बेटा बड़ा नाम करेगा ने ही मुझे संगीत जगत में खूद की पहचान दिलाई. इसलिए अक्सर यह गीत मेरे जुवान पर होता है.
– सुना है अपने थियेटर में भी गीत गाया है?
मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा बिल्कुल सही बताया आपने. जब मैं अपने कैरियर के लिए संघर्ष कर रहा था, तो फारबिसगंज के विमला थियेटर में मुझे गाने का मौका मिला. मेरे गीत की दीवानगी ने रातों रात मुझे स्टार बना दिया. उसके बाद मुझे हजारों मौके मिले.
– अपने बचपन की यादों के बारे में कुछ बताएं?
मैं बिहार के सुपौल जिला के छोटे से कस्बे बायसी गांव का रहने वाला हूं. मेरे पिता किसान थे तथा मां संगीत में रुचि रखने वाली घरेलु महिला थी. मैं अक्सर अपनी मां के साथ छह व दुर्गापूजा के मौके पर गीत गाया करता था. बचपन से ही गीत मेरा खेल व जीवन रहा. सच कहूं तो मैं अपने पिता के अनुरूप नहीं बन पाया. पिता चाहते थे कि मैं डॉक्टर और इंजीनियर बनूं. पर मेरा झुकाव शुरू से संगीत की ओर था.
– आपकी आवाज की मिठास का कारण क्या है?
बिहार में पैदा लिया हूं. बिहार की माटी में इतनी मिठास है कि गले की मिठास के लिए कुछ और चीजों की आवश्यकता नहीं है.
– एक अंतिम प्रश्न राजनीति से पूछना चाहूंगा. बिहार की शराबबंदी को आप किस रूप में देखते है? मुस्कुराते हुए उन्होंने कहा कि गीतकारों को राजनीति से कोई मतलब नहीं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एक योग्य व सुलझे राजनीतिज्ञ है. उनके फैसले का सम्मान किया जाना चाहिए.
लेकिन पूर्ण शराबबंदी को उन्होंने सहीं नहीं माना. उन्होंने कहा कि इतने सालों से शराब की घुट लेने वाला लोगों पर एकाएक निषेध लगाना पूर्णत उचित नहीं है.
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