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232 में मात्र 81 सरकारी नलकूप ही हैं चालू स्थिति में

आखिर कैसे होगी धान की खेती,किसानों की परेशानी बढ़ी मौसम वैज्ञानिकों द्वारा इस वर्ष औसत से काफी कम बारिश होने की भविष्यवाणी से किसानों का दिल एक बार फिर आहत है. किसानों को भविष्य की चिंता खाये जा रही है. कम बारिश होने की स्थिति में खरीफ मौसम की प्रमुख फसल धान कैसे होगी. यह […]

आखिर कैसे होगी धान की खेती,किसानों की परेशानी बढ़ी
मौसम वैज्ञानिकों द्वारा इस वर्ष औसत से काफी कम बारिश होने की भविष्यवाणी से किसानों का दिल एक बार फिर आहत है. किसानों को भविष्य की चिंता खाये जा रही है. कम बारिश होने की स्थिति में खरीफ मौसम की प्रमुख फसल धान कैसे होगी. यह सोच -सोच कर किसानों का सिर दर्द बढ़ गया है. धान व गेहूं की फसल होने से किसानों को घर परिवार चलता है.
बिहारशरीफ : बरसाती नदियां की भरमार वाले नालंदा जिले के किसान पूरी तरह बारिश पर आधारित खेती करने को विवश हैं. बारिश होने की स्थिति में ही जिले के नदियों में पानी की धारा बहती है और किसान इससे खेतों की सिंचाई करते हैं. सिंचाई के साधनों के अभाव के कारण किसानों की खेती बारी प्रकृति पर आश्रित हो कर रह गयी है. किसानों को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए जिले में पूर्व में 232 राजकीय नलकूप लगाये गये थे.
इन राजकीय नलकूपों की स्थिति यह है कि दो तिहाई नलकूप पूरी तरह बेकार हो चुके हैं. वर्तमान समय में 74 से 76 नलकूप ही चालू स्थिति में है. इसके अलावा जिले के संपन्न किसानों ने फसल पटवन के लिए निजी बोरिंग लगाये थे. जिले के 27492 निजी बोरिंग में से करीब 7050 बोरिंग खराब हैं. ऐसी स्थिति में किसान खेतों में लगी फसल की पटवन करेंगे तो कैसे. यहीं सोच कर किसानों का कलेजा फटा जा रहा हैं.
डीजल पंपसेट से सिंचाई खर्चीली:
किसान खेतों में सिंचाई डीजल पंपसेट से कर सकते हैं. मगर यह सिंचाई इतनी खर्चीली है कि इसकी मदद से फसल उगाना मुश्किल होगा. दो से तीन कट्ठा खेत की पटवन करने में किसानों को 100 रुपये से ज्यादा खर्च हो जाते हैं. इसमें प्रति घंटा एक लीटर डीजल देना पड़ता है और ऊपर से डीजल पंप सेट का भाड़ा भी अलग से देना पड़ता है. संपन्न किसान खुद खेतीबारी करते नहीं है. अधिकतर गरीब तबके के लोग पट्टे व बटाई में खेती करते हैं.
डीजल अनुदान का लाभ पट्टेदारों को नहीं :सुखाड़ की स्थिति में राज्य सरकार द्वारा बिचड़ा व फसल की सिंचाई के लिए डीजल अनुदान देने की घोषणा की जाती है. इस बार भी ऐसी स्थिति पैदा होने पर डीजल अनुदान देने की घोषणा की गयी है. डीजल अनुदान का लाभ पट्टे पर खेती करने वाले व बटाईदारों को नहीं मिल पाता है. डीजल अनुदान प्राप्त करने के लिए जमीन की रसीद की मांग की जाती है, जो खेत मालिक पट्टेदारों व बटाईदारों को नहीं देते हैं.
सिर्फ दिखावे को होती है नलकूपों को ठीक करने का कवायद:
जब-जब सुखाड़ की स्थिति पैदा होती है खराब राजकीय नलकूपों को ठीक करने की कवायद शुरू होती है. जिला प्रशासन विभाग के अधिकारियों के साथ बैठक कर खराब नलकूपों के आंकड़ा और उसके कारण की खोज-खबर लेते हैं. महीनों बैठकों का दौर चलता है.
अधिकारियों को तरह-तरह के निर्देश दिये जाते हैं. इसी कवायद में समय बीत जाता है और खराब नलकूप ठीक नहीं हो पाते हैं. फिर अधिकारी व जिला प्रशासन का ध्यान इस नलकूपों की ओर से हट जाता है. यहीं स्थिति प्राय: हर वर्ष देखने को मिलती है.

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