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विज्ञान की पढ़ाई में बाधा बनी प्रयोगशाला की कमी

बिहारशरीफ : जिले के विद्यार्थियों की उच्च शिक्षा के मार्ग में व्यवहारिक शिक्षा पाना बहुत बड़ी बाधा है. जिन कॉलेजों में शिक्षक हैं, वहां साधन का अभाव है तथा जहां साधन संपन्न प्रयोगशाला है तो वहां शिक्षक ही नदारद हैं. विद्यार्थियों की शिक्षा में व्यवहारिक शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है. ज्ञानवर्द्धन के साथ-साथ अच्छे अंक प्राप्त […]

बिहारशरीफ : जिले के विद्यार्थियों की उच्च शिक्षा के मार्ग में व्यवहारिक शिक्षा पाना बहुत बड़ी बाधा है. जिन कॉलेजों में शिक्षक हैं, वहां साधन का अभाव है तथा जहां साधन संपन्न प्रयोगशाला है तो वहां शिक्षक ही नदारद हैं. विद्यार्थियों की शिक्षा में व्यवहारिक शिक्षा अत्यंत महत्वपूर्ण है. ज्ञानवर्द्धन के साथ-साथ अच्छे अंक प्राप्त करने में भी व्यवहारिक शिक्षा महत्वपूर्ण है.

विशेष रूप से साइंस की पढ़ाई तो बिना प्रैक्टिकल की पढ़ाई के अधूरी ही मानी जायेगी. जिले के पांच अंगीभूत कॉलेजों तथा दो दर्जन से अधिक वित्तरहित कॉलेजों में स्नातक प्रतिष्ठा तक की पढ़ाई होती है. अंगीभूत कॉलेजों में तो लगभग डेढ़-दो दशकों से व्याख्याताओं की नियुक्ति ही नहीं हुई है, जिससे शिक्षकों की संख्या लगातार घटती गयी है, जबकि विद्यार्थियों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है.
सर्वप्रमुख अंगीभूत कॉलेज, नालंदा कॉलेज में भौतिकी विज्ञान, रसायनशास्त्र तथा जंतु विज्ञान की इंटरमीडिएट से लेकर पीजी तक की पढ़ाई मात्र दो-दो शिक्षकों के कंधों पर टिकी है. यहां वनस्पति विज्ञान विभाग में एक भी शिक्षक नहीं हैं. अन्य अंगीभूत कॉलेजों किसान कॉलेज, एसपीएम कॉलेज, नालंदा महिला कॉलेज तथा एसयू कॉलेज में शिक्षकों की संख्या में और अधिक कमी है.
कई विभागों में तो एक भी शिक्षक नहीं हैं. इन कॉलेजों में प्रैक्टिकल क्या थ्योरी पढ़ाना मुश्किल है. ऐसे में विद्यार्थियों की बेबसी उन्हें थ्योरी की पढ़ाई तक ही बांधे रखती है. इसके विपरीत वित्तरहित डिग्री कॉलेजों में आधुनिक लेबोरेट्री की भारी कमी है. आधे से अधिक कॉलेजों में लेबोरेट्री के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है.
पढ़ाना तथा प्रैक्टिकल कराना चुनौतीपूर्ण
अंगीभूत कॉलेजों में शिक्षकों की कमी के कारण उपलब्ध शिक्षकों के लिए पढ़ाना तथा प्रैक्टिकल कक्षाएं चलाना किसी चुनौती से कम नहीं है. लगातार क्लास लेने के बाद भी जैसे-तैसे समय निकालकर विद्यार्थियों को प्रैक्टिकल कराया जा रहा है.
सबसे बड़ी बाधा तो उन कॉलेजों की है, जहां कई विषयों में एक भी शिक्षक नहीं हैं. किसी विभाग के प्रैक्टिकल रूम में न लैब टेक्नीशियन हैं और न लैब ब्वॉय. ऐसे में शिक्षकों को ही सभी भूमिकाएं निभानी पड़ती हैं.
डॉ शशांक शेखर झा, भौतिकी विज्ञान के व्याख्याता, नालंदा कॉलेज
कॉलेज में शिक्षकों की कमी गंभीर समस्या
कॉलेज में शिक्षकों की कमी की गंभीर समस्या बनी हुई है. जिन विषयों में एक भी शिक्षक मौजूद हैं, उन विषयों में विद्यार्थियों को प्रैक्टिकल की सुविधा दी जाती है. संसाधन का भी काफी अभाव है, फिर भी बेहतर शिक्षा देने का प्रयास किया जा रहा है.
डॉ शैलेंद्र कुमार, प्राचार्य, नालंदा कॉलेज, गढ़पर, बिहारशरीफ
वित्तरहित संस्थानों में भी स्थिति गंभीर
वित्तरहित संस्थानों में स्थिति ठीक विपरीत है. इन कॉलेजों में विभिन्न विषयों में शिक्षक से लेकर अन्य सभी कर्मी मौजूद हैं, लेकिन यहां लेबोरेट्री की खस्ताहाल है. संसाधनों की कमी के कारण विद्यार्थियों को बड़ी मुश्किल से प्रैक्टिकल करने का अवसर मिलता है.
हालांकि कुछ वित्तरहित कॉलेजों में अच्छे प्रयोगशालाओं की भी व्यवस्था है. जिले के अधिकांश विद्यार्थी इन्हीं वित्तरहित कॉलेजों के छात्र होते हैं, ऐसे में उनकी शिक्षा भी कामचलाऊ बनकर ही रह जाती है. विज्ञान के इस युग में जिले के विद्यार्थी इन्हीं आधी-अधूरी शिक्षा लेकर बड़ी-बड़ी चुनौतियों का सामना करने को तत्पर रहते हैं.
जिले के अंगीभूत महाविद्यालय
नालंदा कॉलेज, गढ़पर, बिहारशरीफ
किसान कॉलेज, सोहसराय, बिहारशरीफ
नालंदा महिला कॉलेज, पोस्ट ऑफिस रोड, बिहारशरीफ
एसपीएम कॉलेज, बिहारशरीफ
एसयू कॉलेज, हिलसा

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