नालंदा : कभी नालंदा में तीन विश्वविद्यालय हुआ करते थे. इसे विश्व गुरु का दर्जा भी हासिल था. उस गौरवशाली अतीत को नालंदा 21वीं सदी के दूसरे दशक में पुन: दुहरा रहा है. पहले यहां नालंदा विश्वविद्यालय, उदंतपुरी विश्वविद्यालय और तिलाधक विश्वविद्यालय हुआ करता था. आज भी नालंदा में नालंदा विश्वविद्यालय, नवनालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय और नालंदा खुला विश्वविद्यालय है. तीसरा विश्वविद्यालय स्थापना काल से ही पटना में किराये के मकान में चल रहा है. हालांकि नालंदा में इसके भवन निर्माण के लिए दस एकड़ भू-खंड का अधिग्रहण करीब चार साल पूर्व किया गया है.
किसानों को जमीन के मुआवजा का भी भुगतान किया जा चुका है. विश्वविद्यालय प्रशासन या बिहार सरकार की लापरवाही से इसका निर्माण कार्य अभी तक आरंभ नहीं हो सका है. प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना मगध साम्राट बिंबिसार के अंतिम वंशज गुप्तवंशीय शासक कुमार गुप्त प्रथम, जिन्हें शक्रादित्य व महेंद्रादित्य के नाम से जाना जाता है, जो 427 ई में की थी. पांचवीं से 12वीं सदी तब वजूद में रहने वाला नालंदा विश्वविद्यालय में दुनिया के ज्ञानपिपाषु ज्ञान अर्जन के लिए आते थे. इसी विश्वविद्यालय के छात्र चाणक्य ने एक चरवाहे चंद्रगुप्त को सम्राट बनाया था. इसी विश्वविद्यालय से चीनी यात्री ह्वेनसांग को दुनिया में ख्याति मिली थी. यहां कई विधाओं के प्रकांड विद्वान आचार्य थे. आज के बिहारशरीफ में उदंतपुरी विश्वविद्यालय था. इसकी स्थापना पाल वंश के राजा गोपाल ने आठवीं सदी में की थी. करीब चार चौ वर्षों तक यह महायान, तंत्रयान, वज्रयान और सहजयान का प्रमुख केंद्र रहा. वर्तमान में इस विश्वविद्यालय का अवशेष जमींदोज है. तिलाधक विश्वविद्यालय नालंदा के तेल्हाड़ा में था. विश्वविद्यालय के पुरातात्विक टीले की खुदाई मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल से करायी जा रही है.
खुदाई के दौरान यहां से बुद्ध की अष्टधातु की कई प्राचीन प्रतिमाएं मिली हैं. वर्तमान में नालंदा विश्वविद्यालय का निर्माण राजगीर से सटे पश्चिम राजगीर-इस्लामपुर के पास विशाल भू-खंड पर कराया जा रहा है. विश्वविद्यालय का संचालन राजगीर के प्रदर्शन केंद्र में किया जा रहा है. इसी प्रकार नवनालंदा महाविहार डीम्ड विश्वविद्यालय प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के पार्श्व में अपना कीर्ति ध्वज फहरा रहा है. नालंदा खुला विश्वविद्यालय स्थापना काल से ही पटना में किराये के मकान में चल रहा है. बताया जाता है कि विश्वविद्यालय को जितनी राशि किराये के रूप में भुगतान की गयी है, उससे कम राशि में इसका अपना भवन तैयार हो सकता था. इस विश्वविद्यालय की स्थापना की घोषणा तत्कालीन मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी दुबे ने राजगीर नृत्य महोत्सव के उद्घाटन के दौरान वर्ष 1986 में की थी.