हम तो आगे बढ़े, भाई चारा कम हो गया
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मुजफ्फरपुर मोतिहारी पैसेंजर ट्रेन से यात्रा
हम तो आगे बढ़े, भाई चारा कम हो गया मुजफ्फरपुर : बापू के सत्य और अहिंसा की ही शक्ति थी कि नील आंदोलन के तीस साल बाद देश आजाद हो गया. आजादी के बाद देश का विकास हुआ और हम आगे बढ़े. पहले हमारे परिवार में ज्वार और जनेरा की रोटी खायी जाती थी, लेकिन […]
मुजफ्फरपुर : बापू के सत्य और अहिंसा की ही शक्ति थी कि नील आंदोलन के तीस साल बाद देश आजाद हो गया. आजादी के बाद देश का विकास हुआ और हम आगे बढ़े. पहले हमारे परिवार में ज्वार और जनेरा की रोटी खायी जाती थी, लेकिन अब गेंहू की रोटी हर परिवार को मिल रही है, लेकिन समाज पीछे गया है. भाईचारे में कमी आयी है. यही सबसी बड़ी चिंता की वजह है. पहले खेतों में गोबर और राख डाली जाती थी, जिसकी जगह अब यूरिया और तमात तरह की खादों ने ले ली है, लेकिन इन्हीं के बीच हमारा अपनापन कहीं खो गया है. उसे फिर से वापस पाना होगा, तभी हम गांधी जी के सपनों का समाज बना पायेंगे. यह कहते-कहते समीर कुमार, सुरेंद्र और आरिफ मोतीपुर स्टेशन पहुंच जाते हैं.
तीनों को यहीं उतरना है.
समीर और आरिफ स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करते हैं, जबकि सुरेंद्र सिंह निजी कंपनी में कार्यरत हैं, जो जमीन गिरवी रख कर लोन देती है. कहते हैं, छोटी सी कंपनी है, लेकिन 57 करोड़ का कर्ज हो गया है. अब कंपनी कर्ज देने को तैयार नहीं है और जिन लोगों ने कर्ज लिया है. उनमें से ज्यादातर वापस करना नहीं चाहते हैं. ऐसे में हम केवल कागजों को अपडेट करते ही रह जाते हैं. सुरेंद्र की बातों में उन तमाम लोगों का दर्द छुपा है, जिसे हम असली भारत कहते
हम तो आगे
, क्योंकि अब भी अगर कोई व्यक्ति गांव पहुंच जाता है और वहां के लोगों को पता चलता है कि वह उनका कुछ भला कर सकता है, तो लाइन लग जाती है. लोग अर्जियां देने लगते हैं. यह बात मोतीपुर स्टेशन से ट्रेन में बैठे
विश्वनाथ मिश्र कहते हैं. वह बताते हैं कि अभी किस तरह से गरीबी है. गांवों में कई परिवारों के पास खाने को नहीं है. बड़े से बड़े जोत वाले व्यक्ति को अगर शादी-विवाह करना होता है, तो खेत बेचने की नौबत आ जाती है.
चकिया के रहनेवाले नवनीत मुंबई में जींस सिलने का काम करते हैं. गांधी जी के बारे में इन्हें केवल इतना मालूम है कि वो चरखे से कपड़ा बिनते थे. नवनीत की तरह गौरी शंकर भी ट्रेन की यात्रा कर रहे हैं. वह साहेबगंज जाने के लिए ट्रेन पर बैठे. कहते हैं कि गांधी जी की चाहत को देश ने लागू किया है. गौरी शंकर निजी नेटवर्किंग कंपनी में काम करते हैं. कहते हैं, यह अच्छा काम है. मालती देवी ट्रेन से सुगौली की यात्रा पर हैं. कहती हैं, यह ट्रेन अक्सर लेट चलती है. कभी भी समय से नहीं पहुंचती. इसमें न साफ-सफाई और न ही टाइम-टेबुल.
हमारी बातचीत का सिलसिला चल रहा होता है. इसी बीच दिव्यांग राज कुमार निर्गुण गाते हुये आगे बढ़ते दिखते हैं. सुजीत कुमार उनका सहारा बने हैं. राज कुमार ने एक हाथ सुजीत के कंधे पर रखा है और दूसरा हाथ लोगों की ओर बढ़ा देते हैं, ताकि कोई सिक्का या रुपये उसमें रख दे. वह खड़े होकर गाते हैं…हे विधना कैसे लिखला हमरा नसीब के…दुखवा में रतिया काटे…सुख में सपनवा…हे विधना कैसे लिखला. डिब्बे में मांगने के बाद राज कुमार एक कोने पर खड़े हो जाते हैं. वैशाली के महुआ के रहनेवाले राज कुमार बताते हैं कि हमारी व परिवार की रोटी-रोटी इसी से चलती है. ट्रेन ही हमारा सहारा है.
बॉक्स….
जरूरतमंद तक नहीं पहुंच पाती
पूरी सहायता
शौचालय के पैसे में लेते हैं कमीशन!
स्वच्छता अभियान व शौचालय बनाने की मुहिम पूरे देश में जोर है. गांधी जी की बात शुरू हुई, तो ट्रेन में यात्रा कर रहे लोगों ने कहा कि सरकार शौचालय बनाने पर 12 हजार रुपये का अनुदान देती है, लेकिन जब गांव के लोग शौचालय बना कर अनुदान लेने जाते हैं, तो उसमें कमीशन का खेल शुरू हो जाता है. हर टेबुल पर कमीशन की मांग की जाती है. 12 हजार में कुछ ही हजार मिलते हैं. वह भी लगातार दौड़ने पर.
मुखिया व जन प्रतिनिधियों की संपत्ति की हो जांच
किसान सुनील कुमार कहते हैं कि जो गांव का मुखिया या फिर कोई जन प्रतिनिधि हो जाता है. उसकी दिन-रात तरक्की होने लगती है. पांच साल में वह अमीर आदमी हो जाता है. यह कैसे होता है. इसकी जांच होनी चाहिये. हम तो रोजी-रोटी वाले आदमी हैं. अगर मौका मिले, तो हम सरकार तक से बात कर सकते हैं, लेकिन हम सरकार के पास जायेंगे, तो हमारे बच्चों का पेट कैसे भरेगा. परमानंद राय भी सुनील की बातों का समर्थन करते हैं और कहते हैं कि आंगनबाड़ी व राशन देनेवाले की भी जांच होनी चाहिये, क्योंकि इसमें भी बहुत गड़बड़ी है.
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