मुजफ्फरपुर : वह अगस्त महीने का दूसरा हफ्ता था. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, मड़वन, मुजफ्फरपुर के एइएस वार्ड से बेड हटा लिये गये थे और अब वहां अस्पताल के कर्मचारी बैठ रहे थे. एक कर्मी ने बताया कि यह कमरा हर साल गर्मियों के मौसम में एइएस वार्ड बन जाता है, ताकि मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित बच्चों का ससमय ठीक से इलाज किया जा सके. हालांकि इस साल यहां बहुत कम रोगी आये. मुश्किल से चार-पांच. पहले यह वार्ड हमेशा व्यस्त रहता था. वे कहते हैं, इस बार तो एसकेएमसीएच में भी काफी कम रोगी पहुंचे
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इस तरह काबू में आया मुजफ्फरपुर में मस्तिष्क ज्वर!
मुजफ्फरपुर : वह अगस्त महीने का दूसरा हफ्ता था. प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, मड़वन, मुजफ्फरपुर के एइएस वार्ड से बेड हटा लिये गये थे और अब वहां अस्पताल के कर्मचारी बैठ रहे थे. एक कर्मी ने बताया कि यह कमरा हर साल गर्मियों के मौसम में एइएस वार्ड बन जाता है, ताकि मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित […]
इस तरह काबू में आया…
होंगे, जाकर पता लगा लीजिये. एसकेएमसीएच, मुजफ्फरपुर के अस्पताल प्रबंधक उनकी बातों की पुष्टि करते हैं, और कहते हैं, अब तक सिर्फ 31 मरीज यहां इलाज कराने आये हैं. ये आंकड़े हैरत में डालने वाले हैं. क्योंकि महज दो साल पहले मुजफ्फरपुर जिले में छह सौ से अधिक बच्चे मस्तिष्क ज्वर से पीड़ित हुए थे, जिनमें 98 की मौत हो गयी थी. 2012 में यहां 122 बच्चे अकाल कलवित हो गये थे. इस साल मुजफ्फरपुर जिले से सिर्फ चार बच्चों की मौत मस्तिष्क ज्वर की वजह से हुई है. पिछले साल भी यह आंकड़ा 16 बच्चों का था. तो क्या मुजफ्फरपुर वालों ने मस्तिष्क ज्वर के उस कलंक से मुक्ति पा ली है, जिसकी वजह से हर साल छोटे-छोटे बच्चे अकाल कलवित हो जाते थे?
एसकेएमसीएच, मुजफ्फरपुर के शिशु रोग विभाग के एचओडी डॉ. ब्रज मोहन कहते हैं, पिछले दो सालों से तो राहत की स्थिति है. बहुत कम रोगी आ रहे हैं. पिछले साल भी पूरे सीजन में सिर्फ 46 रोगी आये थे. अगले साल क्या होगा कहा नहीं जा सकता. मगर अभी हम मान कर चल रहे हैं कि हमलोगों ने पिछले दो-तीन साल से जो प्रयास किये हैं उनके नतीजे सामने आ रहे हैं. गांव स्तर की आशा कार्यकर्ता से लेकर जिला प्रशासन तक, पंचायतों से लेकर एसकेएमसीएच तक और मीडिया से लेकर स्वयंसेवी संस्थाओं तक ने जो सामूहिक प्रयास किया है, उसी का नतीजा आज आंकड़ों में नजर आ रहा है.
डॉ. ब्रज मोहन जिस सामूहिक प्रयास की बात करते हैं, वह जमीन पर नजर आता है. मड़वन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर मौजूद रौतनिया की आशा कार्यकर्ता कहती हैं कि हमलोग गरमियों के मौसम में रात में घर-घर घूमते थे, यह जानने के लिए कि कहीं कोई बच्चा भूखा तो नहीं सो रहा. अगर रात में दो बजे भी किसी बच्चे को बुखार आ गया तो घर वाले सुबह का इंतजार नहीं करते थे. अस्पताल के एंबुलेंस वाले भी चौकस रहते थे. एक फोन पर हाजिर. एंबुलेस नहीं मिला तो थाने की जीप ही ले ली. मुखिया जी की गाड़ी से ही चले गये. हर कोई मदद के लिए तैयार रहता था.
पीक सीजन में प्राथमिक अस्पतालों में भी प्राथमिक उपचार की व्यवस्था की गयी थी. डॉ. ब्रज मोहन कहते हैं, हर पीएचसी पर ग्लूकोज स्ट्रिप रहता है, जिससे आसानी से जांच की जा सकती है कि बच्चे का शुगर लेवल तो नहीं घट गया है. क्योंकि हमनें ज्यादातर मामलों में यही पाया कि शुगर लेवल के अचानक घटने से ही सबसे अधिक मौतें हुई हैं. बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा जारी निर्देश के मुताबिक हर पीएचसी पर पहले बच्चों का शुगर लेवल टेस्ट करना है, फिर उसे ग्लूकोज चढ़ा देना है. इसके अलावा डायजोपाम का इंजेक्शन मल द्वार से दे देना है.
कई दफा इतने भर इलाज से ही मरीज काबू में आ जाता है और उसे आगे भेजने की जरूरत नहीं होती. अगर यह इलाज काम न आया तो फिर बच्चे को सीधे एसकेएमसीएच भेज दिया जाता था.
जागरुकता, सजगता, पीएचसी पर डॉक्टर और संसाधनों की मौजूदगी, एंबुलेंस सेवा का मुस्तैद रहना, आदि ऐसे कारण थे जिससे कई बच्चों की जान बचायी जा सकी. और इन उपायों से जरिये मुजफ्फरपुर के प्रशासन और आम लोगों ने एक ऐसे रोग पर काबू पा लिया, जिसका कारण आज तक पता नहीं चल सका है. राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी, मलेरिया डॉ. एमपी शर्मा कहते हैं कि मस्तिष्क ज्वर की सही वजह का पता आज तक नहीं चल सका है. विशेषज्ञों ने तीन अनुमानित कारण बताये हैं, पहला लीची के अंदर मौजूद हाइपोग्लूकोमिया, दूसरे अज्ञात वायरस और तीसरा गरमी. जब रोग के कारणों का पता नहीं चल रहा था तो हमने तय किया कि हम इन तीन अनुमानों के आधार पर ही अपनी रणनीति बनायेंगे.
इसके लिए हमने तय किया कि कोई बच्चा रात में भूखा नहीं सोये, चमकी देकर बुखार आये तो बच्चे को तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाये, वह ओझा-गुनी के पास न भेज दिया जाये. इलाज की व्यवस्था प्राथमिक अस्पतालों में भी चौकस हो, क्योंकि कई दफा एसकेएमसीएच पहुंचाते-पहुंचाते काफी वक्त लगता है. पैसों के कारण इलाज न रुके, इसके लिए यह तय किया गया कि बच्चा अगर प्राइवेट गाड़ी से भी अस्पताल पहुंचे तो उसका किराया तत्काल दे दिया जाये. अस्पताल में मरीज और उसके परिजन का एक पैसा खर्च न हो. और ये चीजें अभियान बनाकर लागू की गयीं. इसमें किसी स्तर पर ढिलाई नहीं बरती गयी.
सिर्फ स्वास्थ्य विभाग ही नहीं मुजफ्फरपुर जिला प्रशासन की ओर से भी इस रोग से मुक्ति पाने के लिए कई तरह के प्रयास किये गये. राज्य स्वास्थ्य समिति में एइएस-जेई के प्रभारी संजय कुमार कहते हैं कि प्रचार प्रसार की सबसे बड़ी भूमिका रही. जिला प्रशासन की ओर से यह सुनिश्चित किया गया कि हर स्कूल में सुबह की प्रार्थना के वक्त बच्चों को एइस और मस्तिष्क ज्वर के लक्षणों के बारे में बताया गया और यह भी जानकारी दी गयी कि ऐसी स्थिति में क्या करना चाहिए.
यहां तक कि कहीं यज्ञ या कोई धार्मिक अनुष्ठान होता था तो वहां भी मस्तिष्क ज्वर के बारे में लोगों को जानकारी दी जाती थी. मुसलिम समाज से अपील की गयी थी कि वे जुमे की नमाज के बाद तकरीर में इस मसले को शामिल करें. आठ लाख से अधिक परचे बांटे गये और नाटक मंडलियों ने घूम-घूम कर गांव-गांव में नाटक किये और लोगों को इस बीमारी के प्रति जागरूक किया.
दूसरा मसला आया ट्रेनिंग का.
इसमें यूनिसेफ और राज्य स्वास्थ्य समिति के लोगों के द्वारा हर स्तर के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को नियमित प्रशिक्षण दिया गया. आशा कार्यकर्ताओं और पंचायत प्रतिनिधियों की भी ट्रेनिंग की गयी. महिला सामाख्या और जीविका संस्था की महिलाओं को भी जागरूक और प्रशिक्षित किया गया. पुलिस कर्मियों और राशन डीलरों तक को जागरूक किया गया. यह बीमारी रात के वक्त ही शुरू होती थी, इसलिए अस्पतालों का ड्यूटी टाइम बदल दिया गया.
डॉक्टर और दूसरे कर्मी सुबह के छह बजे से अस्पतालों में हाजिर रहते थे. इस तरह कुल मिलाकर ऐसा माहौल बना कि अब सबको पता है कि चमकी और बुखार आने पर क्या करना चाहिए. और जब सबको पता चल गया तो जाहिर सी बात है इलाज होने लगा और बीमारी काबू में आ गयी.
बॉक्स
मुजफ्फरपुर और राज्य में मस्तिष्क ज्वर के घटते आंकड़े
साल रोगी/मौत बिहार-रोगी/मौत
2016- 30/4 142/51
2015- 46/16 298/90
2014- 677/98 1341/379
2013- 130/43 580/222
2012- 342/122 1247/424
गया में अभी नहीं मिली
है अपेक्षित सफलता
मस्तिष्क ज्वर के मामले में जैसी सफलता मुजफ्फरपुर में नजर आती है, वैसी सफलता अभी गया में नहीं मिली है. गया मस्तिष्क ज्वर का दूसरा बड़ा केंद्र है. वहां भी हर साल मस्तिष्क ज्वर से अच्छी खासी संख्या में बच्चों की मौत होती रही है. इस साल वहां अब तक 16 बच्चों की मौत हो चुकी है, जबकि अभी वहां मस्तिष्क ज्वर का सीजन चल ही रहा है. यह जुलाई से अक्तूबर तक चलता है. हालांकि विभाग के लोग इसकी वजह नहीं बता पा रहे. मगर ऐसा माना जा रहा है कि वहां बचाव अभियान में वैसा समन्वय नहीं है जैसा मुजफ्फरपुर में रहा है.
इसके अलावा वहां रोग की प्रवृत्ति भी थोड़ी अलग है.
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