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आहर के दोष से दूषित होती है बुद्धि : स्वामी रंग रामानुजाचार्य

मुशहरी. आहार में दोष से मानव की बुद्धि दूषित होती है. मानव बूरे कर्मों में लीन हो जाता है. आहार तीन प्रकार के होते हैं. सात्विक, राजस व तामस. अन्न, फल, साग-सब्जियां, दूध, घी, मक्खन मलाई आदि सात्विक भोजन है. इसके सेवन से मनुष्य सतोगुण की वृद्धि होती है. सतगुण से मानव के ज्ञान और […]

मुशहरी. आहार में दोष से मानव की बुद्धि दूषित होती है. मानव बूरे कर्मों में लीन हो जाता है. आहार तीन प्रकार के होते हैं. सात्विक, राजस व तामस. अन्न, फल, साग-सब्जियां, दूध, घी, मक्खन मलाई आदि सात्विक भोजन है. इसके सेवन से मनुष्य सतोगुण की वृद्धि होती है. सतगुण से मानव के ज्ञान और सुख की प्राप्ति होती है. उक्त बातें मांगलवार को नूनूवती पब्लिक स्कूल रोहुआ चौक पर जारी श्रीराम कथा महायज्ञ के दौरान मंगलवार को प्रवचन करते हुए स्वामी रंग रामानुजाचार्य ने कही. उन्होंने कहा कि अधिक तीखा, नमकीन, खट्टा और कड़वा पदार्थों के सेवन से रजोगुण की वृद्धि होती है. इनके सेवन से मानव विशेष लोभी व भोगी हो जाता है. मांस मछल्ली, अंडा, शराब आदि पदार्थों के सेवन से मनुष्य में तमोगुण की वृद्धि होती है. ऐसे मनुष्य प्रमादि, आलसी, और दूषित कुकर्मों में रुचि रखने वाला बन जाता है. उन्होंने कहा कि प्राणी मात्र के मन मस्तिष्क, हृदय और कर्मों में शामिल अच्छाइयां, बुराइयां उसके आहार की प्रकृति और संतों य असंतों की परिणाम होता है. श्री हनुमान जी लंका में जब अशोक वाटिका में पहुंचे तो उन्होंने देखा के रावण मां सीता के समक्ष दूषित वाणी और व्यवहार प्रदर्शित कर रहा है. तब सीता जी ने रावण से कहा कि तुम्हारे वचप और व्यवहार से यह प्रतीत होता है कि या तो लंका नगरी में कोई संत नहीं रहते हैं. या फिर होंगे तो तुम उनके सही वचन का पालन नहीं करते हो. संत विभीषण से दूर होना अंतत: रावण के संहार व नाश का कारण बन गया.

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