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अंतिम सांस तक टीकी थी उम्मीद

मुजफ्फरपुर: पापा को बंदूक से मार दिया. पूरा जिंस (घुटना की ओर इशारा करते हुए) भींग गया. छात्र नेता मो शमीम खान के तीन वर्षीय पुत्र आमिर ने अपनी मासूमियत भरी आवाज में यह बात तो कह दी, पर शायद उसे यह आभाष तक न था बंदूक से निकलने वाली गोली ने उसके सिर से […]

मुजफ्फरपुर: पापा को बंदूक से मार दिया. पूरा जिंस (घुटना की ओर इशारा करते हुए) भींग गया. छात्र नेता मो शमीम खान के तीन वर्षीय पुत्र आमिर ने अपनी मासूमियत भरी आवाज में यह बात तो कह दी, पर शायद उसे यह आभाष तक न था बंदूक से निकलने वाली गोली ने उसके सिर से उसके बाप का साया छिन लिया, जिस खून के छींटे ने उसके पिता के जींस को भींगो दिया, वह अब कभी पसीना बन कर उसका जीवन नहीं संवार सकेगा. वह तो बस एक टक कैमरे की चमचमाती लाइट की ओर देखता रहा.

शायद वह सोच रहा था- आखिर ये क्या हो रहा है. चंद मिनटों तक यह सिलसिला चलता रहा. फिर पास में बैठी उसकी बुआ, जिसकी आंखें रो-रो कर सुर्ख हो चुकी थी, ने उसे अपने बाहों में भर लिया, पर उसके मुंह से ‘बेटा’ शब्द ही निकल सका. घर के अंदर एक सोफे पर बैठी शमीम की पत्नी का भी रो-रो कर बुरा हाल था. वह कभी आमिर तो कभी अमन (डेढ़ वर्षीय पुत्र) को खोज रही थी. पति की हालत जानने के लिए वह पागलों की तरह रूक-रूक कर कभी इधर, तो कभी उधर भटक रही थी.

घर के बाहर एक कुर्सी पर बैठे 63 वर्षीय मो रहीम खान की हालत ऐसी थी कि वो न तो खुल कर रो सकते थे, और न ही बेटे को खो देने की भड़ास आंसू के रूप में बाहर निकाल सकते थे. खुद हृदय के मरीज मो खान की चिंता बस इतनी थी कि जो बचा है उसे कैसे संजो कर रख सकूं. दरअसल अपने बेटे को गोली लगने की सूचना पाकर घटनास्थल पर पहुंचे रहीम खान को अंदाजा हो चुका था कि उनका पुत्र अब नहीं रहा, पर घर वाले उम्मीद का दामन पाले हुए थे. पुलिस प्रशासन शमीम के शरीर को अपने साथ बैरिया स्थित मां जानकी अस्पताल ले गयी थी. ऐसे में उसके परिजन को उम्मीद थी कि शायद उसकी जान बच जाये. मो रहीम खान उनकी इस उम्मीद को तोड़ना नहीं चाह रहे थे.

ठीक इसी समय एक पुलिस अधिकारी का फोन आता है. रहीम खान कहते हैं, सर यह ठीक नहीं हुआ. मेरा पुत्र कई बार अपनी जान पर खतरा होने की बात पुलिस अधिकारियों व विवि थाना से बता चुका था. हमारे घर पर हमला भी हो चुका था. इसकी भी शिकायत दर्ज करायी गयी थी. पर अब जो होना था सो हो गया, आप अपनी डय़ूटी कीजिए. मेरा बेटा छात्र नेता है. ऐसे में कोई अप्रिय घटना हो सकती है. मैं नहीं चाहता कि ऐसी कोई घटना हो. मेरा बेटा भी इंस्पेक्टर (रेलवे) है. मैं आप लोगों की मजबूरी समझता हूं. इतना कह कर वे फोन काट देते हैं. इसके चंद मिनटों बाद ही शमीम के शव के आने की सूचना मिलती है और घर के अंदर से बस रोने व चित्कार की आवाज सुनायी पड़ने लगती है.

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