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लोकतंत्र पर आधारित विकास मॉडल बेहतर

मुजफ्फरपुर: भारत में इन दिनों दो तरह के विकास मॉडल की बात हो रही है, एक बिहार का मॉडल, तो दूसरा गुजरात मॉडल. इसके समसामयिक कारण भी है. आंकड़ों के हिसाब से ये दोनों राज्य आर्थिक विकास की दृष्टि में फिलहाल देश में सबसे अव्वल हैं. पर सही मायनों में एक देश में दो तरह […]

मुजफ्फरपुर: भारत में इन दिनों दो तरह के विकास मॉडल की बात हो रही है, एक बिहार का मॉडल, तो दूसरा गुजरात मॉडल. इसके समसामयिक कारण भी है. आंकड़ों के हिसाब से ये दोनों राज्य आर्थिक विकास की दृष्टि में फिलहाल देश में सबसे अव्वल हैं. पर सही मायनों में एक देश में दो तरह के विकास मॉडल सफल हो ही नहीं सकते. भारत जैसे देश में विकास का सिर्फ एक ही मॉडल हो सकता है- मार्केट व डेमोक्रेसी के गठजोड़ पर आधारित मॉडल. इसमें सरकार की भूमिका महज दोनों के बीच सामंजस्य स्थापित करने की होती है.

यह बातें पूर्व केंद्रीय मंत्री व जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने रविवार को आरडीएस कॉलेज में यूजीसी संपोषित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन कर्ता के रूप में कही. सेमिनार का विषय है, बिहार के बदलते संदर्भ में विकास प्रशासन की भूमिका. उन्होंने कहा कि विकास का मतलब सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि होना ही नहीं, बल्कि उस विकास से आम लोगों को होने वाले लाभ से भी है. वर्तमान में बिहार के विकास में सेवा व निर्माण क्षेत्र की अहम भूमिका है. ऐसे विकास आम लोगों को सीधे तौर पर फायदा नहीं पहुंचा सकते. यही कारण है कि बिहार में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले लोगों का प्रतिशत (32 प्रतिशत) देश में सबसे अधिक है.

मॉडल ही नहीं, वितरण भी जरूरी
डॉ सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि विकास का लाभ अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे, इसके लिए सिर्फ मॉडल बनाना ही नहीं उसका सही वितरण भी जरूरी है. पिछली बजट में बिहार को मिड डे मिल योजना की 464 करोड़ रुपये की राशि केंद्र सरकार को लौटाने पड़े. इसी तरह छपरा के मशरक में मिड डे मील का खाना खाने से 23 बच्चों की मौत हो गयी, जबकि केंद्र सरकार ने मार्च महीने में ही ऐसी घटना की आशंका व्यक्त करते हुए राज्य सरकार को अगाह कर चुकी थी. सही मायनों में एक विकसित राज्य में ऐसे उदाहरण देखने को नहीं मिलते.

कृषि का अंतरराष्ट्रीयकरण जरूरी
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि बिहार में कृषि क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं. यहां सालों भर कृषि संभव है. ऐसी सुविधा अमेरिका, इंगलैंड जैसे देशों में भी नहीं. यहां की जमीन पर एक साल में तीन फसलों का उत्पादन संभव है. सरकार को चाहिए कि वह उत्पादित अनाज के समुचित भंडारण की व्यवस्था करे. यही नहीं इन अनाजों को विदेशों में निर्यात के लिए जगह-जगह छोटे-छोटे एयरपोर्ट बनाये जाने की जरूरत है.

आंकड़ों पर आधारित विकास झूठे
इंटरनेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ मैनेजमेंट के सदस्य डॉ अरविंद चतुर्वेदी ने कहा कि विकास की चर्चा के दौरान हमेशा आंकड़े पेश किये जाते हैं. पर यह सही नहीं है. आंकड़े प्राय: झूठ बोलते हैं. किसी भी राज्य या देश के विकास को संकेतकों के माध्यम से नहीं मापा जाना चाहिए, बल्कि वहां पुरुषों, महिलाओं व बच्चों की स्थिति के आधार पर इसकी विवेचना की जानी चाहिए. पटना विवि के राजनीतिशास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ एलएन शर्मा ने कहा कि सही मायनों में किसी राज्य के विकास में औद्योगिक क्षेत्र में विकास का अहम योगदान होता है. पर पिछले 60 सालों में बिहार में एक भी नये उद्योग स्थापित नहीं हुए. अध्यक्षता प्राचार्य डॉ एएन यादव, मंच संचालन राजनीति शास्त्र के विभागाध्यक्ष डॉ अरुण कुमार सिंह व धन्यवाद ज्ञापन डॉ नीलम कुमारी ने किया.

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