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नाले में बहा दिया जाता है आपकी आस्था का जल!

मुजफ्फरपुर: ये खबर हम किसी आस्था को ठेस पहुंचाने के मकसद से नहीं लिख रहे हैं, लेकिन इसके जरिये ये बताने की कोशिश जरूर कर रहे हैं. आप जिस आस्था व विश्वास के साथ गरीबनाथ बाबा पर जलाभिषेक करते हैं. इसके लिए सावन की सोमवारी को विभिन्न रूपों में पहलेजा घाट से जल लेकर पचास […]

मुजफ्फरपुर: ये खबर हम किसी आस्था को ठेस पहुंचाने के मकसद से नहीं लिख रहे हैं, लेकिन इसके जरिये ये बताने की कोशिश जरूर कर रहे हैं. आप जिस आस्था व विश्वास के साथ गरीबनाथ बाबा पर जलाभिषेक करते हैं.

इसके लिए सावन की सोमवारी को विभिन्न रूपों में पहलेजा घाट से जल लेकर पचास किलोमीटर से ज्यादा की यात्र करते हैं और बाबा गरीबनाथ पर जलाभिषेक करते हैं. क्या कभी आपने सोचा, आखिर वो जल जाता कहा है? उसका क्या होता है? अगर नहीं तो हम बताते हैं. आप जो जल बाबा पर चढ़ाते हैं, वो मंदिर परिसर में बनी दो टंकियों में जाता है, जिनमें पंप लगे हुए हैं. जब ये टंकियां भर जाती हैं, तो पंप के सहारे जल को मंदिर परिसर में बनी नाली में निकाल दिया जाता है. इसके बाद यह जल मंदिर परिसर से होता हुआ शहर में बहनेवाले नाले में चला जाता है. ऐसा इस साल से नहीं हो रहा है, बल्कि सालों से हो रहा है. ये भी नहीं है कि इसकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया है.

मंदिर की प्रबंधन समिति से जुड़ी बैठकों में इस पर चर्चा हो चुकी है. मंदिर से जुड़े सूत्र ही बताते हैं, जल के बेहतर प्रबंधन को लेकर कई तरह के सुझाव आये थे. एक सदस्य का कहना था, बाबा पर गंगा जल चढ़ता है, जिससे लाखों लोगों की आस्था जुड़ी है. इस वजह से जल को बूढ़ी गंडक नदी में डाला जाना चाहिए. इसके लिए वैकल्पिक व्यवस्था हो सकती है या फिर पाइप बिछा कर जल को नदी में प्रवाहित किया जा सकता है. एक अन्य सदस्य का कहना था, जल को मंदिर से कुछ सौ मीटर पर स्थित साहू पोखर में डाला जाना चाहिए. चूंकि साहू पोखर स्थित मंदिर का प्रबंधन भी बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के जिम्मे है, इस वजह से किसी तरह की परेशानी भी नहीं होगी. साथ ही पोखर को साफ कराने की मांग भी संबंधित सदस्य ने रखी थी, लेकिन इस पर कोई अंतिम फैसला नहीं हो सका था. इसके बाद से जल प्रबंधन को लेकर किसी तरह की व्यवस्था नहीं की गयी.

बाबा गरीबनाथ पर हर साल सावन के महीने में लाखों की संख्या में भक्त जलाभिषेक करते हैं. सोमवारी के दिन बड़ी संख्या में भक्त आते हैं. इनमें कावरियों की संख्या ही हजारों होती है, जो पहलेजा घाट से पतित पावनी गंगा नदी से जल लेने के लिए पैदल जाते हैं और जल लेने के बाद पैदल ही बाबा गरीबनाथ के दरबार तक आते हैं. कांवरियों के अलावा बड़ी संख्या में शहर व आसपास के इलाकों के भक्त भी बाबा पर जलाभिषेक के लिए आते हैं. मंदिर प्रबंधन से जुड़े एक सदस्य से जब इस पर बात की गयी, तो पहले वह चुप्पी साध गये. लेकिन फिर वे मंदिर के पास ही बनी नालियों की ओर इशारा करके दिखाने लगे. इन्हीं से होकर आपकी आस्था का जल नाले में जाता है.

हम ये बात फिर से कह रहे हैं. इस खबर को हम इसलिए लिख रहे हैं, ताकि आपको पता चले और बाबा गरीबनाथ पर चढ़नेवाले आस्था के जल का बेहतर प्रबंधन हो, ताकि उन लाखों श्रद्धालुओं की भावना को जाने-अनजाने में ठेस नहीं लगे, जो श्रद्धा के साथ बाबा के दरबार में हाजिरी लगाते और जलाभिषेक करते हैं. अगर बाबा गरीबनाथ मंदिर के प्रबंधन की बात करें, तो 2006 में बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद के अधीन ये मंदिर आया था. इसके बाद मंदिर का दायरा व स्थिति दोनों बदली. अब भव्य मंदिर का निर्माण हो चुका है. साथ ही मंदिर परिसर में तमाम तरह की सुविधाएं भी हो चुकी हैं. इस दौरान मंदिर की आय में भी बड़े पैमाने पर वृद्धि हुई है. इस साल जो लेखा-जोखा दिया गया है, उसके मुताबिक 1.35 करोड़ की आय मंदिर की हुई है. मंदिर प्रबंधन की ओर से धर्मार्थ काम भी किये जा रहे हैं. अस्पताल खोलने का प्रस्ताव दिया गया है. डे केअर सेंटर सीनियर सिटीजंस के लिए चल रहा है. ऐसे में ये भी समस्या नहीं है कि मंदिर प्रबंधन के पास क्षमता नहीं है कि वह जल का प्रबंधन नहीं कर सके.

इस बात को मंदिर प्रबंधन के लोग जानते हैं. मंदिर प्रबंधन के साथ स्थानीय जनप्रतिनिधियों को भी यह बात मालूम है कि मंदिर का जल नाली में जाता है. इस बात पर वे चर्चा भी करते हैं. लेकिन, जब नाम छापे जाने की बात आती है तो वे इसलिए इनकार कर देते हैं कि मंदिर प्रबंधन से जुड़े लोग उनसे नाराज हो जाएंगे.

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