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स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े से 45% बच्चे ट्रैकलैस
कुमार दीपू, मुजफ्फरपुर : स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों से 45 प्रतिशत बच्चे ट्रैकलेस हैं. यह बच्चे डायरिया व निमोनिया के बताये जा रहे हैं. विभाग के आंकड़ों में डायरिया के 54 प्रतिशत व निमोनिया के 56 प्रतिशत बच्चे ही उन तक पहुंच रहे हैं. बाकी बच्चे कहां इलाज करा रहे हैं, इसकी सूचना उनके पास […]
कुमार दीपू, मुजफ्फरपुर : स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों से 45 प्रतिशत बच्चे ट्रैकलेस हैं. यह बच्चे डायरिया व निमोनिया के बताये जा रहे हैं. विभाग के आंकड़ों में डायरिया के 54 प्रतिशत व निमोनिया के 56 प्रतिशत बच्चे ही उन तक पहुंच रहे हैं. बाकी बच्चे कहां इलाज करा रहे हैं, इसकी सूचना उनके पास नहीं है. अब इन बच्चों की खोजबीन के लिए विभाग ने आशा, एएनएम व आंगनबाड़ी सेविका को लगाया है. जबकि, यूनिसेफ के अनुसार सूबे में हर वर्ष 13 हजार बच्चों की मौत डायरिया से व 19 हजार बच्चों की मौत निमोनिया से हो जाती है.
बच्चों पर मंडरा रहा डायरिया व निमोनिया बीमारी का खतरा. स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों के अनुसार जिले में बच्चों के ऊपर डायरिया व निमोनिया का खतरा मंडरा रहा है. विभाग की माने तो करीब डेढ़ लाख ऐसे बच्चे हैं, जिन पर डायरिया व निमोनिया बीमारी का खतरा है. यह सभी चिह्नित बच्चे पांच साल उम्र के नीचे बताये गये हैं.
इनको इन बीमारियों से बचाने के लिए तुरंत इलाज की जरूरत है. मौसम में लगातार उतार चढ़ाव के कारण सक्रिय हुए सिगेला बैक्टीरिया व रोटा वायरस से बच्चों में दस्त, डायरिया के साथ दमफुली व बुखार की समस्या हो सकती है. इलाज की व्यवस्था जल्द नहीं हुई, तो इन बच्चों की जान खतरे में पड़ सकती है. यह बातें स्वास्थ्य विभाग व यूनिसेफ की संयुक्त सर्वे रिपोर्ट में सामने आयी है.
सरकारी अस्पताल में 45 प्रतिशत बच्चे नहीं पहुंच रहे. यूनिसेफ के स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ सैयद हुब्बे अली ने बताया कि अब तक जो रिपोर्ट सामने आयी है, उसमें 45 प्रतिशत ऐसे बच्चे हैं, जो डायरिया व निमोनिया की चपेट में तो हैं. लेकिन, सरकारी व प्राइवेट अस्पताल में नहीं पहुंच रहे हैं. ऐसे बच्चे कहां इलाज करा रहे हैं, इसकी जानकारी नहीं है.
सर्वे के अनुसार करीब सवा पांच लाख ग्रामीण घरों में जब सर्वे कराया गया, तो करीब डेढ़ लाख के अलावा 95 हजार 507 ऐसे बच्चे मिले हैं, जो काफी कमजोर है. इन्हें कभी भी डायरिया के साथ निमोनिया व अन्य बीमारियां हो सकती हैं.
डायरिया में जिंक दवा नहीं देना खतरनाक . जिले में किसी अस्पताल में जिंक दवा नहीं होने से बच्चे के लिए डायरिया खतरनाक साबित हो सकता है. डॉ सैयद हुब्बे अली कहते हैं कि एएनएम ओआरएस की दवा तो देती है, लेकिन जिंक नहीं देती है. जबकि डायरिया में अगर बच्चों को जिंक दवा दी जाये तो उनके लिए बेहतर हो सकता है. उन्होंने कहा कि सर्वे के दौरान जो बातें सामने आयी हैं, उसमें 39 हजार 250 बच्चों के अभिभावक निजी अस्पताल में इलाज कराने में सक्षम हैं. शेष बच्चे सरकारी अस्पतालों पर ही निर्भर है.
जिंक हर सरकारी अस्पताल में उपलब्ध
सिविल सर्जन डॉ शिवचंद्र भगत ने बताया कि जिंक दवा की कमी नहीं है. हर पीएचसी से लेकर एपीएचसी तक उपलब्ध है. साथ ही डायरिया की जो दवाएं हैं, वह सभी मौजूद हैं. जिंक टैबलेट की खरीदारी भी की जा चुकी है. उन्होंने बताया कि पीएचसी व एपीएचसी स्तर पर बीमार बच्चों की इलाज की पूरी व्यवस्था की गयी है.
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