मुजफ्फरपुर: मो. अरशद व मो. अफसर का शव देखने के बाद भी पिता मो. अशरफ बिस्तर से नहीं उठ सके. बिस्तर पर पड़े ही कहते हैं कि इन किताबों का अब क्या काम. इन्हें भी इनके साथ भेज दो. अपनी संतान को खोने का तो सदमा था ही, आलमीरा में रखा किताब उन्हें बार-बार झक-झोर रहा था. मो. अशरफ लंबे समय से यक्ष्मा रोग से ग्रसित हैं. कुछ दिनों से वे बिछावन से उठने में भी असमर्थ हैं. इलाज के लिए पड़ोसी मो. मिंटू के साथ बाहर जाने की योजना बनायी थी. लेकिन दोनों बेटों की मौत से वे टूट चुके थे.
मो. अशरफ के मित्र मो. मिंटू बताते हैं कि आर्थिक तंगी के कारण बेटों को निजी स्कूल से हटा कर, सरकारी स्कूल में दाखिला दिलाया था. लेकिन बच्चों को अच्छी तालीम दिलाने की इच्छा पर उन्होंने फिर से दोनों बेटों का दाखिला 22 अप्रैल को फातिमा मेमोरियल चिल्ड्रेन स्कूल में कराया था. नामांकन के लिए पैसे भी उधार लिये थे. लेकिन इस हादसा ने मो. अशरफ व उनकी पत्नी शकीना खातून के सपनों पर पानी फेर दिया. शकीना सिलाई का काम कर पिछले सात-आठ महीनों से घर चला रही है.
दो परिवारों को मिला मुआवजा: मरहुम मो. फारुक की मां शकीना और मो. अरशद के पिता मो. अशरफ को शुक्रवार को मुशहरी सीओ रवींद्र कुमार सिन्हा ने परिवारिक लाभ योजना के तहत 20-20 हजार रुपये दिये. साथ ही अन्य परिवार को जल्द ही मुआवजा देने का आश्वासन दिया. लाभ की राशि वितरण के दौरान वार्ड 44 के वार्ड पार्षद पुत्र राजा व वार्ड-19 के पार्षद दीपू सहनी मौजूद थे.