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प्रभात खबर के गांव मिठनसराय में बाल विवाह व दहेज प्रथा पर चौपाल, बोझ नहीं होती हैं बेटियां, मानें सौगात

मुजफ्फरपुर : बेटी को आप बोझ मानते हैं. यदि नहीं, तो फिर कम उम्र में शादी की जल्दबाजी क्यों? ‘प्रभात खबर’ के गोद लिए गांव मिठनसराय में यह अहम सवाल देर तक लोगों की कानों में गूंजता रहा. मौका था ‘प्रभात खबर’ की ओर से रविवार को गांव के पुस्तकालय परिसर में आयोजित चौपाल का, […]

मुजफ्फरपुर : बेटी को आप बोझ मानते हैं. यदि नहीं, तो फिर कम उम्र में शादी की जल्दबाजी क्यों? ‘प्रभात खबर’ के गोद लिए गांव मिठनसराय में यह अहम सवाल देर तक लोगों की कानों में गूंजता रहा. मौका था ‘प्रभात खबर’ की ओर से रविवार को गांव के पुस्तकालय परिसर में आयोजित चौपाल का, जिसमें बाल विवाह व दहेज प्रथा के दुष्परिणाम से ग्रामीणों को आगाह किया गया.

जिले के वरिष्ठ चिकित्सकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं ने ग्रामीणों को सामाजिक नुकसान के साथ ही बच्चों के शारीरिक नुकसान के बारे में भी बताया. उन्हें समझाया कि जब बेटी की शादी कम उम्र में कर देते हैं और वह 15-16 साल की उम्र में मां बनती है, तो किस तरह शारीरिक व मानसिक रूप से कमजोर हो जाती है. परेशानी होने पर अधिकतर लड़कियों को ससुराल वाले मायके में भी छोड़ देते हैं. इस तरह जिस बेटी को बोझ समझकर कम उम्र में शादी कर रहे हैं, वह आपके ऊपर जिंदगी भर के लिए बोझ हो जाती हैं. ग्रामीणों को बेटियों को पूरी शिक्षा देने व कम उम्र में शादी न करने का संकल्प दिलाया गया.

रोटरी आम्रपाली की अध्यक्ष वरिष्ठ नेत्र चिकित्सक डॉ पल्लवी सिन्हा ने कहा कि अंगूठा चूसते बच्चा व गोद के बच्चा का विवाह होता है. यह कई जगहों पर आज भी हो रहा. लेकिन इससे क्या होता है. जिस समय बच्चे को शारीरिक व मानसिक विकास के लिए समय चाहिए, उस समय वह सामाजिक बंधन में बंध गई रहती है. वह अपने लिए सोच नहीं पाते. आजादी भी नहीं रहती. कोई लड़की गाना अच्छा गाती है, कोई खाना अच्छा पकाती है, कोई डांस अच्छा करती है. लेकिन, वह कर नहीं पाती. आज सरकार की ओर से हर तरह की सुविधा मिल रही है. पढ़ाने से लेकर खिलाने तक. यदि आपकी लड़की किसी क्षेत्र में अच्छी है तो वह अपने पैरों पर खड़े होने के लिए कुछ बन सकती है.
यह दिमाग से निकालिए कि बच्ची बोझ है और उसकी शादी करना ही जिम्मेदारी है. 18 साल तक बच्ची की जिम्मेदारी समझिए. कम उम्र में शादी व बच्चा पैदा होने से वह कमजोर हो जाती है. इससे हमारा समाज कमजोर होता है.
रोटरी आम्रपाली की सचिव स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ स्मिता सिंह ने कहा कि आए दिन 16-17 की लड़कियां आती है. उनके पढ़ने की उम्र होती है, लेकिन वह मां बनने वाली होती है. वह अपने को संभाल नहीं सकती, तो किस तरह बच्चे की देखभाल करेगी. यह देखकर बहुत तकलीफ होती है. कम से कम 18 साल तक उसे पढ़ने दीजिए. सरकार भी काफी सुविधा दे रही है. जरूरी नहीं है कि लड़की डॉक्टर, इंजीनियर या टीचर ही बने. हर किसी में कुछ न कुछ खास होता है. यदि खाना बनाने आता है, तो उस क्षेत्र में भी अपना कैरियर बना सकती है. परिवार की देखभाल में भी स्मार्टनेस की जरूरत होती है. बाल विवाह आपके साथ ही आपके समाज के लिए भी अभिशाप है. डॉ नवीन कुमार ने बच्चों की शिक्षा पर जोर दिया. कहा बेटियों को भी बेटों की तरह ही पढ़ाएं. जब उन्हें अच्छी शिक्षा देंगे, तो पढ़ाई पूरी होने पर शादी की उम्र भी आ जाएगी. कम उम्र में शादी से मैच्योरिटी नहीं आती.
सामाजिक व्यवस्था पर खुलकर हुई चर्चा
चौपाल के दौरान कम उम्र में शादी व दहेज प्रथा पर खुलकर चर्चा हुई. अपराजिता क्लब की ओर से दीपिका प्रसाद साह, जिप सदस्य रानी देवी, उप प्रमुख कुढ़नी उषा सिन्हा, पूर्व प्रमुख गायघाट विमल देवी आदि ने गांव की महिलाओं से इन मुद्दों पर देर तक बात की. महिलाओं ने इसकी वजह भी बताई. कई महिलाओं का कहना था कि सामाजिक ढांचा ऐसा ही है, जिससे वे अधिक दिनों तक बेटी को घर पर नहीं रख सकती. फिर उनके मन में यह भी डर होता है कि बेटी पढ़- लिख जाएगी, तो उसके योग्य दूल्हे की तलाश में उन्हें ज्यादा दहेज भी देना होगा. उन्हें समझाया गया कि जब बेटी अपने पैर पर खड़ी होगी तो बिना दहेज की शादी भी हो सकती है.
महिलाओं व बच्चों का हुआ स्वास्थ्य परीक्षण
मिठनसराय स्थित पुस्तकालय में नि:शुल्क स्वास्थ्य परीक्षण शिविर भी लगाया गया. इसमें रोटरी आम्रपाली की ओर से अध्यक्ष नेत्र रोग विशेषज्ञ डा‍ॅ पल्लवी सिन्हा व सचिव स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ स्मिता सिंह ने मरीजों का परीक्षण कर दवा वितरित किया. इसके साथ ही कैंप में फिजिशियन डॉ नवीन कुमार, शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ राजेश कुमार व डॉ राजीव कुमार ने भी ग्रामीणों का परीक्षण कर उपचार व सुझाव दिए. शिविर में हर तरह के मरीजों के लिए इलाज की व्यवस्था की गई थी. महिलाओं व बच्चों के साथ ही पुरुषों ने भी संबंधित चिकित्सकों से परामर्श लिया.

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