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सात वर्ष से आशियाना का इंतजार

मुजफ्फरपुर: बागमती बांध परियोजना के विस्थापितों को इस वर्ष भी बाढ़ की विभीषिका ङोलनी पड़ेगी. सात वर्ष से खानाबदोश की तरह जिंदगी गुजार रहे औराई व कटरा के 50 हजार आबादी को इस साल भी आशियाना मिलने की उम्मीद नहीं है. आवासीय जमीन व मुआवजे के लिए लोग दर-दर भटकने को मजबूर हैं. आलम यह […]

मुजफ्फरपुर: बागमती बांध परियोजना के विस्थापितों को इस वर्ष भी बाढ़ की विभीषिका ङोलनी पड़ेगी. सात वर्ष से खानाबदोश की तरह जिंदगी गुजार रहे औराई व कटरा के 50 हजार आबादी को इस साल भी आशियाना मिलने की उम्मीद नहीं है. आवासीय जमीन व मुआवजे के लिए लोग दर-दर भटकने को मजबूर हैं. आलम यह है कि बाढ़ के दौरान जान खतरे में डाल कर ग्रामीण बांध के बीच में रात-दिन गुजारने को मजबूर हैं.

इनके दु:ख-दर्द की कहानी यहीं समाप्त नहीं होती है. दोनों तटबंध के बीच फंसे लोगों के सामने रोजी-रोटी की भी बड़ी समस्या है. बाढ़ के कारण जमीन में बालू, गाद व गुरहन जम जाने से खेती-बारी पूरी तरह चौपट हो गयी है. खेती पर निर्भर लोगों का जीना मुहाल हो गया है. कर्ज में डूबे लोग प्रशासन की मुंह ताक रहे हैं.

हर साल मिलता है आश्वासन : विस्थापित परिवारों को शासन-प्रशासन की ओर से हर साल आश्वासन मिलता है. बाढ़ आने से पहले उनकी व्यवस्था कर देने का दिलासा दिया जाता है. मगर मुआवजा व जमीन देने का काम फाइलों में ही दौड़ रहा है. फिलहाल चुनाव आचार संहिता लागू होने के कारण मुआवजा भुगतान का मामला ठंडे बस्ते में पड़ा हुआ है. सवाल उठता है कि चुनाव के बाद संसदीय क्षेत्र से अगले पांच वर्ष के लिए कमान संभालने वाले प्रतिनिधि क्या इनकी सुधि लेंगे? समस्या से इन्हें छुटकारा दिला पायेंगे? एक बार फिर लोगों के खेतों में हरियाली आयेगी? सालों से उजड़ा चमन फिर से बस पायेगा? यह सवाल क्षेत्र के लोगों को कौंध रहे हैं.

जंगल बन गया भरथुआ चौर : बांध के बीच में आने के कारण ऐतिहासिक भरथुआ चौर जंगल में तब्दील हो गया है. कभी धान व खेसारी के कटोरा के रूप में मशहूर दो हजार एकड़ का मैदान बंजर हो गया है. गुरहन से पटे इस चौर को फिर से आबाद करने के लिए अभी तक ठोस कदम नहीं उठाया गया है. उल्लेखनीय है कि भरथुआ चौर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की देन है. 1940-42 तक इस चौर में पूरे साल पानी भरा रहता था. स्वतंत्रता आंदोलन के समय जब बापू बेनीपुर गांव पहुंचे, तब उन्होंने ग्रामीणों के सहयोग से नहर निकाली. जो बाद में बागमती नदी के रूप में अस्तित्व में आयी. बागमती नदी के कारण यह क्षेत्र जिले का सबसे उपजाऊ इलाका बन गया.

इन गांवों के विस्थापितों को इंतजार : जनाढ़, बेनीपुर दक्षिणी, बैजनाथ पुर इमलिया, गोपाल पुर किशुनपुर कटौझा, भरथुआ, नया गांव, मधुबन प्रताप, पटोरी, बहुआरा, बाड़ा बुजरुग, बभनगामा, बाड़ा खुर्द, चहुंटा, तेजाैल, चैनपुर, जोंकी, सुंदर खौली, मथुरापुर, मठना उर्फ बसुआ, शिवदासपुर, वंसत, कोपी उर्फ नरकोपी, धनौर, कटरा, मोहनपुर, अजीतपुर बकुची, अख्तियारपुर, पतौरी, अंदामा, माधोपुर, नवादा उर्फ खंगुरा, बरारी, गंगेया, जमालपुर कोदई, गोसाईटोला, डुमरावा, हरपुर कमाल, चनौली, धरमपुर सीतल, हरखौली, अभिमानपुर उर्फ सलेमपुर, बिसौथा उर्फ महिसौथा, मथुरापुर बुजरुग आदि शामिल हैं.

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