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याद किये गये स्वामी सत्यानंद सरस्वती

पूरी दुनिया को दिया योग का संदेश मुंगेर : पूरी दुनिया में योग के संदेश को फैलाने में स्वामी सत्यानंद सरस्वती का अविस्मरणीय योगदान रहा. उन्होंने योग के लिए अपना कर्म क्षेत्र मुंगेर बनाया. गुरु स्वामी शिवानंद का आदेश था कि योग को पूरी दुनिया में इस स्थल से फैलाओ. आज उसी स्थल पर बिहार […]

पूरी दुनिया को दिया योग का संदेश

मुंगेर : पूरी दुनिया में योग के संदेश को फैलाने में स्वामी सत्यानंद सरस्वती का अविस्मरणीय योगदान रहा. उन्होंने योग के लिए अपना कर्म क्षेत्र मुंगेर बनाया. गुरु स्वामी शिवानंद का आदेश था कि योग को पूरी दुनिया में इस स्थल से फैलाओ. आज उसी स्थल पर बिहार योग विद्यालय है. ऋषिमुनियों की प्राचीन परंपरा योग को उन्होंने न सिर्फ आम लोगों के लिए सुलभ बनाया. बल्कि पूरी दुनिया में उसका प्रचार किया. उन्हीं के प्रयासों के फलस्वरूप अंतरराष्ट्रीय स्तर पर योग को मान्यता मिली जो विश्व योग दिवस के रूप में मनाया जाता है. स्वामी सत्यानंद का यह अवदान सदैव याद रखा जायेगा.
उनकी कर्मस्थली मुंगेर में उनके जन्मदिन पर आध्यात्मिक वातावरण में उन्हें याद किया गया. बिहार योग भारती में आयोजित समारोह को संबोधित करते हुए स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने कहा कि भारत प्राचीनकाल से ही योग गुरू रहा है. 19 वीं सदी में अपने गुरू परमहंस शिवानंद सरस्वती की प्रेरणा से सत्यानंदजी ने एक बार फिर योगज्ञान की अलख जगाने के लिए मुंगेर को पुनर्जागरण का केंद्र बनाया. यहां से योग का ज्ञान पूरी दुनिया को बांटा जा रहा है. योगाश्रम में आये श्रद्धलुओं सहित बाल योग मित्रमंडल के बच्चों को उन्होंने नववर्ष की शुभकामनाएं देते हुए मानवता को विजयी बनाने का आह्वान किया. यह कहा कि भारत को पुन: विश्वगुरू बनाने का संकल्प हमारे ब्रह्मलीन गुरू ने लिया है. मुंगेर जहां योग का केंद्र है. वहीं रिखिया सेवा दान तथा प्रेम का केंद्र है. रिखिया में स्वामी जी ने पूरी दुनिया को यह समझाने की कोशिश की कि सेवा के माध्यम से ही आत्म साक्षात्कार किया जा सकता है. आश्रम के पवित्र परिवेश में स्वामी निरंजनानंदजी के सानिघ्य में बच्चों ने कई भजन गाकर जनमन को भक्तिभाव से भर दिया वहीं यज्ञा में हवन करने वाले स्वामी-संन्यासियों के मंत्रोच्चार से आत्मशुद्धि का पथ प्रशस्त हुआ. अंत में बालयोगमित्रों सहित अन्य लोगों के बीच प्रसाद वितरण किया गया. विदित हो कि परमहंस सत्यानंदजी ने आजीवन योगसाधना और इस विद्या के विश्वव्यापी प्रसार में अपने जीवन का अधिकांश समय व्यतीत किया. रिखिया का संन्यासपीठ स्थापित कर उन्होंने 85 गांवों को गाद लिया. जहां के लोग भूखे, गरीब, अशिक्षित और पीड़त थे. अब वहां के स्कूली बच्चे न सिर्फ वागविदग्ध हैं, अपितु अंग्रेजी में भी अपने विचार प्रकट करते हैं.

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