रेलनगरी में आनंदमार्ग के आचार्य महासभा का चौथा दिन
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ध्यान की पहली अवस्था में आती हैं कई कठिनाइयां
रेलनगरी में आनंदमार्ग के आचार्य महासभा का चौथा दिन जमालपुर : आनंद मार्ग प्रचारक संघ के तत्वावधान में चल रहे आचार्य महासभा के चौथे दिन मंगलवार को वलीपुर केशवपुर जमालपुर स्थित आनंदमार्ग जागृति में आचार्य गण को संबोधित करते हुए आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने अष्टांग योग के ध्यान के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने […]
जमालपुर : आनंद मार्ग प्रचारक संघ के तत्वावधान में चल रहे आचार्य महासभा के चौथे दिन मंगलवार को वलीपुर केशवपुर जमालपुर स्थित आनंदमार्ग जागृति में आचार्य गण को संबोधित करते हुए आचार्य संपूर्णानंद अवधूत ने अष्टांग योग के ध्यान के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने कहा कि ध्यान के चार स्तर होते हैं.
उन्होंने कहा कि ध्यान की पहली अवस्था कठिनाइयों की होती है. मन की सारी क्रियाएं चित्त की ओर, मन का सबसे स्थूलतम स्तर की ओर उन्मुख हो जाती है. ध्यानकर्ता को अपने भीतर और बाहर भी बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. ध्यानकर्ता आंतरिक बाधाएं पाता है, क्योंकि उसके सारे अनियंत्रित विचार जंगली जानवर की तरह दौड़ पड़ते हैं. कुछ सेकेंड के लिए कोई अपने विचारों पर नियंत्रण कर पाता है और पुनः एक अप्रशिक्षित घोड़े की तरह दौड़ पड़ता है. बहुत तरह की बाहरी बाधाएं भी आती है.
दोस्त, मित्र और संबंधी उसके ध्यान करने का विरोध करते हैं.उन्हें भय हो जाता है कि यह व्यक्ति संसार से विमुख हो जायेगा और अपने मित्र और परिवार को छोड़ कर संन्यासी या संन्यासिनी न हो जाये.
दूसरा स्तर सफलता का आरंभ है. सभी मानसिक क्रियाएं अब अहम् की ओर, मन के दूसरे उच्च स्तर की ओर मुड़ जाती हैं. कभी-कभी बहुत आह्लादक अनुभूति होती है. विचार अब कुछ हद तक नियंत्रित हो जाता है. इस काल के दौरान ध्यानकर्ता आध्यात्मिक हर्षोन्माद और आनंद का स्वाद लेता है. तीसरे स्तर में कुछ मानसिक और आध्यात्मिक शक्तियां विकसित हो जाती हैं. अब सभी मानसिक क्रियाएं ‘महत्’, जो मन का उच्चतम स्तर है, की ओर मुड़ जाती हैं. इस पर ध्यानकर्ता अपने मन पर नियंत्रण कर लेता है और अपनी कुछ इंद्रियों पर भी नियंत्रण कर लेता है. यही नियंत्रण उसको कुछ मानसिक और अतिप्राकृतिक शक्तियां भी प्राप्त कराता है. यह एक महान प्रगति, आगे की ओर एक महान पदविक्षेप का लक्षण हैं. किंतु यह स्तर अत्यंत खतरनाक भी है. ध्यानकर्ता अपने मानसिक शक्ति को पाकर मदहोश हो जा सकता है, और इसका दुरुपयोग भी कर सकता है. इस तरह की परिस्थितियों उस व्यष्टि का आध्यात्मिक पतन करा देती है. चौथी अवस्था में साधक तदस्थिति को प्राप्त करता है. योग के साधनापाद में यही परम पद की प्राप्ति का स्तर कहा गया है. बाद में अवधूतों और अवधूतिकाओं ने अनेकों समाजोपयोगी स्लोगन लिखी तख्तियों को लेकर शहर भ्रमण किया.
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