कुमार राहुल
मधुबनी जिले के लौकही थाना क्षेत्र के महादेवमठ गांव में 12 वर्षीया मासूम नैंसी झा का अपहरण, उसके साथ दुष्कर्म फिर निर्मम हत्या किये जाने की घटना से लोग आहत हैं. दिल्ली में प्रदर्शन हो रहा है. सहरसा-सुपौल-मधुबनी-दरभंगा आदि जिलों में कैंडिल मार्च निकाले जा रहे हैं. विरोध-प्रदर्शनों का दौर जारी है. शारदा सिन्हा जैसी शख्सीयत इस कांड पर अपनी आपत्ति दर्ज कर चुकी हैं. कई आइएएस-आइपीएस सोशल मीडिया पर अपनी असहमति दर्ज कर रहे हैं. हजारों की संख्या में सोशल साइट पर विरोध-प्रदर्शन हो रहा है. लोग ऐसी वारदात पर पूर्ण पाबंदी चाह रहे हैं. साथ ही इस तरह की घटना को अंजाम देने वालों के लिए सरकार और प्रशासन से सार्वजनिक रूप से मौत की सजा देने की अपेक्षा रख रहे हैं. हालांकि अधिकतर लोगों ने कहा कि दुष्कर्म जैसी घटना के लिए सरकार से ज्यादा समाज को जिम्मेवार माना है. कुछ लोगों का कहना है कि सरकार व प्रशासन को कोसने से पहले हमें सभ्य समाज का निर्माण करना होगा.
सोशल मीडिया के जरिये घर-घर में पहुंच रही नैंसी की लड़ाई
नैंसी झा हत्याकांड की लपट सोशल मीडिया के जरिये कोसी क्षेत्र में भी दिखने लगी है. दिल्ली में मिथिला स्टूडेंट यूनियन के बैनर तले मुंह पर काली पट्टी बांध कर लोगों ने मार्च किया. इसका वीडियो वायरल हुआ है. सबसे ज्यादा ट्रेंड कर रहा हेश टेग जस्टिस फॉर नैंसी को लोग डीपी बना कर विरोध दर्ज कर रहे हैं.
नैंसी झा हत्याकांड पर युवा पत्रकार कुमार राहुल द्वारा लिखी कविता को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
समाज में ही छिपे हैं दरिंदे
सहरसा की भारती झा कहती हैं कि नैंसी के साथ हुई घटना शर्म को भी शर्मसार करने वाली है. हमें अपने समाज के बीच छिपे ऐसे दरिंदे की पहचान कर उसका सामाजिक बहिष्कार करना चाहिए. अंजना देवी ने कहा कि नैंसी से दुष्कर्म व हत्या राज्य की कोई पहली घटना नहीं है. रोज कहीं न कहीं कोई न कोई नैंसी उठायी जा रही है. दुष्कर्म के बाद उसकी हत्या की जा रही है. इसके लिए सरकार या प्रशासन नहीं, बल्कि हम और हमारा समाज जिम्मेवार हैं. डेजी भारती ने कहा कि दिल्ली में निर्भयाकांड से ठीक एक दिन पहले सहरसा के बेलवाड़ा में भी 15 वर्षीया मासूम सुधा से सामूहिक दुष्कर्म के बाद गर्दन मरोड़ उसकी हत्या कर दी गयी थी, लेकिन उसे न्याय दिलाने कोई आगे नहीं आया. किसी सदन में कोई आवाज नहीं उठी. पुलिस ने भी दो साल के बाद फाइल बंद कर दी. नैंसीकांड समाज की चुप्पी का ही परिणाम है. रेशमा शर्मा ने कहा कि वहशियों की न तो कोई जात होती है और न ही कोई धर्म. सामाजिक चेतना जब तक शून्य रहेगी. तब तक बहू-बेटियों की अस्मत पर वे हावी बने रहेंगे. कोई भी सुरक्षित नहीं रह पायेंगी और ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति होती रहेगी. सिद्धि प्रिया कहती है कि निर्भया से पहले और उसके बाद हर दिन ऐसी घटना से समाज को चुनौती मिलती रही है. लेकिन न तो समाज मुखर हो पाया और न ही ऐसे किसी भी दरिंदे का सामाजिक बहिष्करण ही किया जा सका है. हमें समाज निर्माण में आगे आना ही होगा.
सोशल मीडिया पर कविताओं व टिप्पणियों से प्रतिरोध का स्वर बुलंद किया जा रहा है. हिंदी-मैथिली में कई ऐसी टिप्पणियां व कविताएं हैं, जो लगातार ट्रोल कर रही हैं.