मधुबनीः शहर में ही कई ऐसे मुहल्ले और वार्ड हैं, जहां आउट ऑफ स्कूल बच्चे दिन भर कूड़े कचड़े के ढेर में प्लास्टिक के टुकड़ों को तलाश कर अपना समय बिता रही है. कुछ वैसे भी बच्चे हैं जिनकी जिंदगी बिना अक्षर ज्ञान के ही भटक जाती है. कोई दुकान में काम कर रहा है तो कई निजी घरों में, कोई दर्जी की दुकान में काम कर रहा है तो कई निजी घरों में, इनके जीने के मकसद भी सीमित हैं. जब से शिक्षा का अधिकार कानून लागू हो गया है तो इन स्कूल से बाहर के बच्चों की तलाश करने की होड़ मची है.
कोई एनजीओ ऐसे बच्चे की पहचान कर उसे अपने केंद्र में दाखिला दिला कर अपनी पीठ खुद थपथपा रही है. वर्तमान में दस उत्प्रेरण केंद्रों में लगभग 500 छात्र छात्रओं को जो आउट ऑफ स्कूल माने जाते हैं को लाखों रूपये खर्च कर विशेष आवासीय प्रशिक्षण दिया जाता है. पर जिले में हजारों बच्चे बच्चियां ऐसी हैं जो नहीं पढ़ रही है. 31 जनवरी 2014 को सभी प्रखंड शिक्षा अधिकारियों को निर्देश जारी किया गया कि नीले प्रपत्र में 6 से 14 आयु वर्ग के वैसे बच्चे बच्चियों की सूची अद्यतन भेजे जो स्कूल से बाहर हैं. 6 जनवरी को भी ऐसा करने को कहा गया था.
पर निर्देश हवा में रह गया. 15 जनवरी बीत गया. अब फरवरी 2014 का इंतजार है. अगर फरवरी में भी सही सही आउट ऑफ स्कूल बच्चे की पहचान नहीं हुई तो 2014-15 के बजट में इन पर आने वाले खर्च का प्राक्कलन बनाना भी मुश्किल हो जायेगा. वार्षिक बजट 2014-15 17 फरवरी 2014 तक राज्य स्तर पर जमा होना है. अगर कोई बच्च चार दुकान, गैरेज, कृषि क्षेत्र, घर में या अन्य जगह पर काम कर रहा है तो यह उसके मौलिक अधिकार का हनन माना जायेगा. यह सुनिश्चित करना है कि सभी बच्चे स्कूल में उपस्थित हो रहे हैं और प्राथमिक शिक्षा पूर्ण कर रहे हैं. डीपीओ सर्वशिक्षा अभियान शैलेंद्र कुमार का कहना है कि सभी बीइओ को आउट ऑफ स्कूल सभी बच्चे बच्चियों की सूची जिला कार्यालय में भेजने का निर्देश दिया गया है.