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उपज की कीमत दिलाने की योजना फ्लॉप

मधुबनीः किसानों को उपज की कीमत दिलाने की योजना हर फसल के विपणन मौसम में फ्लॉप साबित हो रहा है. विभिन्न वजह से जोर शोर से शुरू होने वाली योजना मूर्त्त रूप नहीं ले पा रहा है. रबी विपणन मौसम 2014-15 में गेहूं अधिप्राप्ति का हश्र भी यही हुआ है. गेहूं अधिप्राप्ति कार्यक्रम शुरू हुए […]

मधुबनीः किसानों को उपज की कीमत दिलाने की योजना हर फसल के विपणन मौसम में फ्लॉप साबित हो रहा है. विभिन्न वजह से जोर शोर से शुरू होने वाली योजना मूर्त्त रूप नहीं ले पा रहा है. रबी विपणन मौसम 2014-15 में गेहूं अधिप्राप्ति का हश्र भी यही हुआ है. गेहूं अधिप्राप्ति कार्यक्रम शुरू हुए एक माह बीत गया है लेकिन खरीद का काम शुरू नहीं किया जा सका है.

क्या है योजना

किसानों को उपज के बेहतर कीमत दिलाने के लिए सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाता है. इसके लाभ दिलाने एवं पीडीएस में आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए मौसम बार अनाज अधिप्राप्ति कार्यक्रम शुरू किये जाते हैं.

एसएफसी व पैक्स को मिली जिम्मेवारी

रबी विपणन के तहत विकेंद्रीकृत अधिप्राप्ति व्यवस्था के माध्यम से गेहूं की अधिप्राप्ति करने के लिए बिहार राज्य खाद्य निगम को नोडल एजेंसी बनाया गया है. निगम एवं पैक्स को अधिप्राप्ति अभिकरण के रूप में प्राधिकृत किया गया है. हर प्रखंड में इसके लिए क्रय केंद्र खोलकर काम किया जाना है.

पीडीएस सिस्टम होगा प्रभावित

राज्य खाद्य निगम विभिन्न पैक्स द्वारा खरीदे गये गेहूं एवं अपने क्रय केंद्रों पर किसानों से खरीदे गये गेहूं की गुणवत्ता की जांच का काम पूरा करेगा.इस गेहूं का उपयोग केंद्र सरकार से प्राप्त आवंटन के आलोक में लक्षित जनवितरण प्रणाली अंतर्गत किया जाता है. लेकिन चालू मौसम में खरीद कार्य बाधित रहने से इस योजना के प्रभावित होने की आशंका बढ़ गयी है. क्योंकि खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अनाज की अधिक मात्र की जरूरत होगी. जिसे पूरा करना अधिप्राप्ति नहीं होने से कठिन हो जायेगा.

बाजार भाव अधिक

मालूम हो कि सरकार ने गेहूं का समर्थन मूल्य 1400 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित कर रखा है. जबकि बाजार में इसकी कीमत अधिक है. बाजार के हवाले से बताया गया है कि थोक बाजार में पुराने गेहूं की कीमत 1650 से 1700 रुपये जबकि खुदरा बाजार में इसकी कीमत 1750 से 1800 रुपये है. वहीं नया गेहूं थोक में किसान बाजार में 1500 रुपये प्रति क्विंटल बेच रहे हैं. व्यापारी 1500 व इससे अधिक कीमत देकर किसान के घर जाकर खरीद कर ले रहे है. ऐसे में सरकारी एजेंसी को गेहूं बेचना कही से तर्कसंगत नहीं लगता है. मालूम हो कि सरकारी एजेंसी के हाथ अनाज बेचकर किसानों को गुणवत्ता के नाम पर शोषण का शिकार होना पड़ा है. भुगतान के लिए दौड़ लगानी पड़ती है. अनाज को केंद्र पर पहुंचाने की समस्या अलग से रहती है. किसान सोहन मिश्र, आफताब अंसारी, सुरेंद्र राय आदि ने बताया कि सरकारी स्तर पर अधिप्राप्ति का कार्यक्रम काफी जटिल होता है.

क्या कहते हैं अधिकारी

बिहार राज्य खा निगम के जिला प्रबंधक मो. गुलाब हुसैन ने बताया कि बाजार भाव अधिक होने से परेशानी है. हालांकि क्रय केंद्र को दुरुस्त कर दी गयी है. उम्मीद है शीघ्र अधिप्राप्ति के काम में तेजी आयेगी.

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