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करोड़ों के भवन को आश्रय की दरकार

गड़बड़झाला पकिरलपार गांव में चार माह में ही ढहने लगा बाढ़ आश्रय स्थल मुरलीगंज प्रखंड के हरिपुरकला पंचायत के पकिरलपार गांव में आश्रय स्थल बाढ़ के समय में लोगों को आश्रय देने के लिए करोड़ों रुपये की लागत से बनाया गया था. लेकिन, भवन महज चार महीने में ही खुद आश्रय की आस में खड़ा […]

गड़बड़झाला पकिरलपार गांव में चार माह में ही ढहने लगा बाढ़ आश्रय स्थल

मुरलीगंज प्रखंड के हरिपुरकला पंचायत के पकिरलपार गांव में आश्रय स्थल बाढ़ के समय में लोगों को आश्रय देने के लिए करोड़ों रुपये की लागत से बनाया गया था. लेकिन, भवन महज चार महीने में ही खुद आश्रय की आस में खड़ा दिखाई दे रहा है.
मुरलीगंज : सरकार जहां सुशासन और भ्रस्टाचार मुक्त राष्ट निर्माण के लिए पुरजोर कोशिश कर रही है. वहीं सरकार के ही मुलाजिम उनके मंसूबों पर पानी फेरने के लिए जी तोड़ कोशिश कर रहे हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार और इनके मुलाजिमों के बीच पारस्परिक संबंध अच्छे नहीं है या जानबूझ कर लोगों को बेवकूफ बना अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते है.
तभी तो हर जगह हर सरकारी योजनाओं में लूट-खसोट हो रही है और संबंधित निकाय के पदाधिकारी मूक दर्शक बने तमाशा देख रहे हैं. यह जानकर आपको हैरानी होगी कि मुरलीगंज प्रखंड के हरिपुरकला पंचायत के पकिरलपार गांव में बना बाढ़ आश्रय स्थल बाढ़ के समय में लोगों को आश्रय देने के लिए करोड़ों रुपये की लागत से बनायीं गयी. भवन महज चार महीने में ही खुद आश्रय की आस में खड़ा दिखाई पर रहा है. प्रधानमंत्री राष्ट्रीय सहायता कोष द्वारा करोड़ों रुपये की लागत से बाढ़ आश्रय स्थल भवन का निर्माण किया गया. आज से चार महीने पूर्व ही निर्माण कार्य को पूर्ण नहीं हुआ है और आलम यह है कि भवन ढहने लगा है.
क्या है पूरा मामला : प्रखंड के पकिलपार में बना यह बाढ़ आश्रय स्थल के विषय में अगर सरजमी की बात की जाय तो यह सरकारी योजना में सिर्फ लूट-घसोट और इससे संबंधित लोग अपनी पॉकेट गर्म करने के लिए ही इसे बनवाया. पकिलपार वासियों को इस बाढ़ आश्रय स्थल का लाभ मिलने की दूर-दूर तक कोई गुंजाइस नहीं दिख रही है. क्योंकि यह भवन और पकिलपार गांव के बीच एक नदी है. और नदी के उस पार नदी के किनारे पर यह बाढ़ आश्रय स्थल बना हुआ है. चिंताजनक बात यह है कि बाढ़ आश्रय स्थल तक जाने का रास्ता नहीं है. रास्ता है भी तो नदी पार करके जाना पड़ेगा और नदी पर पुल नहीं है. अगर इस स्थिति में बाढ़ आती है
तो सबसे पहले पानी बाढ़ आश्रय स्थल भवन में प्रवेश करेगी. अगर लोग बाढ़ आश्रय स्थल का सहारा लेंगे तो उसे नदी तैरना होगा और जिन्हें तैरना नहीं आता है उनका क्या होगा. इस भवन निर्माण काम सरकार ने पुल निर्माण विभाग को दे रखा है. वह किस आधार पर किस को सवेदक नियुक्त कर निर्माण करवायी है. इसकी जिम्मेदारी पुल निर्माण विभाग की है.
लोगों ने प्रशासन व संवेदक पर लगाया लूट-खसोट करने का आरोप
कहते हैं ग्रामीण
ग्रामीण निरंजन पासवान ने कहा कि भवन निर्माण कर रहे स्वेदक ने भवन निर्माण में भाड़ी गड़बड़ी और अनियमितता की गयी है. जिसके कारण यह हालत है. आजकल होता ही यही है आम नागरिक से किसी को कुछ लेना देना नहीं है सिर्फ अपना मतलब निकलना चाहिये. रंजन यादव पैक्स अध्यक्ष कहते है कि संवेदक ने सबंधित अधिकारी की मिलीभगत से अपनी मनमानी की है और भवन निर्माण में घटिया से घटिया सामग्री का प्रयोग किया है. जिसका नतीजा आज सब के सामने है
कि नया भवन में बरसात में छत से पानी टपकता है. दिलीप राय ने कहा चार महीने में ही भवन जर्जर होने लगी है. पता नहीं आखिर सरकारी खजानों का इस तरह कबतक लूट होता रहेगा. भवन निर्माण को ही अवैध बताया. उन्होंने कहा कि भवन निर्माण के लिए न ही उचित स्थान है और न ही पर्याप्त रास्ते है और न भवन सही बना है. अगर गांव में बाढ़ आयेगी तो सबसे पहले बाढ़ आश्रय भवन में ही पानी घुसेगा. स्थानीय कृष्णदेव यादव, फ्रेंड्स युवा क्लब के कार्यकर्ता संदीप कुमार कहते है जब बाढ़ नही आया है तब ये हाल है तो अगर बाढ़ आ गई तो क्या हाल होगा.
संवेदक की मनमानी की खुली पोल
बाढ़ आश्रय स्थल निर्माण कर रहे संवेदक के द्वारा भवन निर्माण में गड़बड़ी और अनियमितता कर घटिया सामग्री प्रयोग किये जाने की पुष्टि भवन की ताज़ा हालत चीख चीख कर बयां कर रही है. अभी हाल ही में भवन निर्माण कार्य पूरा किया गया है और लगभग चार महीने में ही भवन ढह जाने के हालत में पहुंच गया है.
पिछले दिनों हुई लगातार बारिश होने पर ही इसकी हालत बिगर गयी है तो तो यह बाढ में कितनी सुरक्षा प्रदान करेगा. नदी में जलस्तर बढने के कारण भवन के नदी किनार वाले स्थल का चयन कितना उपयोगी हो सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि जब भवन भुकंप रोधी बनायीं जाती है तो कैसे थोड़ी जल जमाव में पूरा का पूरा भवन हिल गया. मंजर यह है कि भवन दीवारों और पीलरों के बीच चारों ओर से बड़ी बड़ी दरारें निकल गयी है.
दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है मधेपुरा जिलेभर में बने बाढ आश्रय स्थल के निमाणॅ संबंधी गुणवत्ता की अगर जांच अच्छी कंपनी के कुशल तकनीकी विशेषज्ञों से करवायी जा. पुल निर्माण निगम ने जो मोटी रकम लेकर स्थानीय संवेदक को रख बाढ़ आश्रय स्थल के निर्माण में की गई घोर अनियमितता पर से परदा उठा है.
भवन की दुर्दशा को महीनों बीतने के बाद भी काई अधिकारी इनकी सूधी लेना मुनासिब नहीं समझ रही है. इस बाबत मुरलीगंज अंचलाधिकारी जय प्रकाश स्वर्ण कार ने बताया कि कुछ महीने पहले ही इसे हस्तगत किया गया है और इसकी स्थिति खराब हो चली है. अगर इसके निर्माण में अनियमितता बरती गई है और गुणवत्ता पूर्ण निर्माण नहीं हुआ है तो हम इसके निर्माण की गुणवत्ता की जांच करवाने के लिए पदाधिकारी को लिखेंगे एवं इसकी जांच करवायी जायेगी.

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