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अब भी दियारा में विकास की बाट जोह रहे हैं लोग

अब भी दियारा में विकास की बाट जोह रहे हैं लोग प्रतिनिधि, आलमनगर कोसी कछार व चार जिलों की सीमा पर अवस्थित आलमनगर विधान सभा क्षेत्र में लोकतंत्र के इस महापर्व में लोग अपने भविष्य के तारण हार को चुनने को तैयार है. देखना है कि कोसी दियरा में लगी वोटों की फसल को कौन […]

अब भी दियारा में विकास की बाट जोह रहे हैं लोग प्रतिनिधि, आलमनगर कोसी कछार व चार जिलों की सीमा पर अवस्थित आलमनगर विधान सभा क्षेत्र में लोकतंत्र के इस महापर्व में लोग अपने भविष्य के तारण हार को चुनने को तैयार है. देखना है कि कोसी दियरा में लगी वोटों की फसल को कौन काट पाते है. ज्ञात हो कि यह क्षेत्र मधेपुरा जिला के 50 से 70 किमी दूर कोसी के कछार पर बसा हुआ है एवं यह चार जिला भागलपुर, खगडि़या पूर्णिया एवं सहरसा की सीमा को छूती है. यह क्षेत्र हर वर्ष कोसी के कटाव के दंश एवं बाढ़ की विभीषिका से त्रस्त रहती है. विधान सभा की आधे से अधिक आबादी दियरा क्षेत्र में रहती है. जिसे वर्ष के पांच महीना नाव ही आवागमन का एक मात्र सहारा रहता है. खास कर सुदूर वर्ती एवं दियरा क्षेत्र होने से आवागमन की समस्या ज्यादा बनी रहती है. क्योंकि हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका से सड़क संपर्क भंग हो जाता है. यह विधान सभा क्षेत्र अपराधियों की शरण स्थली के रूप में भी जानी जाती है. चार जिला की सीमा रहने एवं आवागमन की दुरूह समस्या सहित कोसी की कछार पर लंबे – लंबे काश अपराधियों के लिए एशगाह बनी रहती है एवं दियरा क्षेत्र में अपराधियों के बीच बर्चस्व की लड़ाई भी सामने आते रहती है. खास कर किसानों के अपराधियों के द्वारा लेवी वसूलने का धंधा यहां खूब फुलते फलते है एवं लोग अपराधियों के हुक्म के गुलाम बनने को मजबूर भी होना पड़ता है. कभी यह क्षेत्र राजे रजवारे एवं जमीन दारों का क्षेत्र रहा करता था एवं लोग उनके भरोसे अपनी जीवन यापन करते थे. परंतु समय बदलने के साथ – साथ अब इस क्षेत्र में प्रजा की धमक कायम हो चुकी है एवं जनता अपने जनप्रतिनिधियों करे कसौटी पर खड़ा होकर चुनते रहे. कहा जाता है कि आलमनगर विधान सभा क्षेत्र की जनता जिन्हें सर आंखों पर उठा लेते है प्रदेश में उन्हीं की सरकार बनती है. वहीं इस क्षेत्र की जनता जिन्हें अपना जनमत देने के लिए कमर कस लेते है तो किसी की भी नहीं सुनते है. एवं जब यहां जनता अपनी नजरें डेढी करते है तो दुबारा उन्हें गले नहीं लगाते है. हालांकि आलमनगर विधान सभा क्षेत्र की धरती राजनीतिक रूप से काफी उर्वड़ा रहा है. एवं बिहार की राजनीति में यहां के नेताओं की धमक शुरू से ही बनी हुई है. इस क्षेत्र ने कई नेताओं को चुन कर विधान सभा भेज कर कई बार कई विभागों की विभिन्न दलों की सत्ता में यहां जनप्रतिनिधि मंत्री पद को सुशोभित करते रहे है. परंतु आज भी इस विधान सभा क्षेत्र में विकास की दरकार बरकरार है. यहां के 90 प्रतिशत लोगों की मुख्य आय खेती एवं मवेशी पालन है. यहां की मुख्य फसल मक्का जो कई देशों में जाती है. जिसे यहां के लोग पीला सोना के रूप में जानते है परंतु किसानों को आज भी मलाल है. उनके जनप्रतिनिधियों द्वारा उनके फसल का उचित मूल्य उन्हें नहीं दिला पाते है. आज भी किसानों को इस क्षेत्र में मक्का आधारित उद्योग की दरकार है. वहीं यह क्षेत्र दूध के लिए विख्यात है यहां भारी मात्रा में पशुपालकों द्वारा दूध का उत्पादन किया जाता है. जो दूसरे जिले में भी भेजे जाते है. हालांकि इस विधान सभा क्षेत्र में 15 प्रत्याशी अपने भाग्य को आजमा रहे है एवं सभी प्रत्याशियों द्वारा एक महीना से वोटों की उपज अधिक से अधिक करने के लिए दिन रात एक किये हुए है. लेकिन, अब बारी जनता की है. वे किसे इस वोटों की फसल की उपज ज्यादा से ज्यादा करते है. यह तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही पता चलेगा.

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